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पंचायत चुनाव में शाही घराने गा रहे लोकतंत्र के तराने

जिले की दूसरी कई रियासतों के महल और कोठी का अस्तित्व समाप्त हो गया है।

By JagranEdited By: Published: Sat, 10 Apr 2021 11:13 PM (IST)Updated: Sat, 10 Apr 2021 11:13 PM (IST)
पंचायत चुनाव में शाही घराने गा रहे लोकतंत्र के तराने
पंचायत चुनाव में शाही घराने गा रहे लोकतंत्र के तराने

रायबरेली : जिले की दूसरी कई रियासतों के महल और कोठी का अस्तित्व समाप्त हो गया है। जबकि, खजूरगांव का महल अब भी रियासत की आन-बान-शान का अहसास कराता है। सपा के पूर्व विधायक देवेंद्र सिंह इसी राज घराने से हैं। पंचायत चुनाव में उनकी पत्नी, बहू व बेटा बीडीसी मेंबर पद के लिए खड़े हुए थे। बेटे ने पर्चा वापस ले लिया। पत्नी और बहू निर्विरोध जीत गईं।

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डीह क्षेत्र का टेकारी दांदू गांव कभी रियासत थी। इसी राज घराने की बहू समीक्षा सिंह गांव से प्रधान पद का चुनाव लड़ रहीं हैं। वह मध्य प्रदेश के एक राज घराने की बेटी भी हैं। आजादी के बाद जब-जब सीट सामान्य हुई, गांव में इसी परिवार का सदस्य प्रधान बना। ये हैं जिले के कुछ शाही परिवार। कभी जिनकी अपनी रिसायतें होती थीं। कई पुश्तों का जिसमें राज चलता था। बड़ी-बड़ी कोठियां और महल, हाथी-घोड़ा, नौकर-चाकर जैसे ठाठ थे। इनकी अपनी अदालतें लगती थीं, जहां सिर्फ इनके ही नियम और कायदे चलते थे। आजादी के बाद जमींदारी का अस्तित्व मिटा तो ये शाही घराने लोकतंत्र का तराना गाने लगे। पूर्व विधायक और एमएलसी तो पहले से ही हैं। अब तो राजनीति में सबसे छोटे माने जाने वाले गांवों के चुनाव में भी इनकी खासा रुचि दिख रही है।

जिले में छोटी-बड़ी मिलाकर करीब एक दर्जन रियासतें हैं। इनमें शिवगढ़, रहवां, खजूरगांव, नयन, सेमरी, टेकारी, चंदापुर, शंकरगंज, पाहो, अरखा रियासतों के नाम प्रमुख हैँ। अब ये सिर्फ नाम की रियासत रह गईं हैं, लेकिन ऐसे परिवारों से जुड़े सदस्य अब भी इलाकों में राजा, रानी और कुंवर के नाम से पुकारे जाते हैं। इनमें से कुछ परिवार ऐसे हैं, जिनका अब सत्ता से कोई खास मोह नहीं रहा। जबकि, तमाम ऐसे भी हैं, जो राजनीति के सहारे क्षेत्र में राज करने की चाहत रहते हैँ। लगभग हर चुनाव में इनकी दिलचस्पी रहती है। इन परिवारों से जुड़े कई लोग विधायक और एमएलसी तो पहले ही रह चुके हैं। अब त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव भी इनकी काफी रुचि दिख रही है।

दूसरों के लिए वोट मांग रहे कुंवर और राजा

जिले में कई राज घराने ऐसे भी हैं जिन्हें आरक्षण ने पंचायत चुनाव से बाहर कर दिया है। इनमें कई परिवार गांव में प्रधानी का चुनाव लड़ते थे और जीतते भी थे। अबकी बार किसी और का समर्थन कर रहे हैं। इसी तरह एक पूर्व विधान परिषद सदस्य इस चुनाव में जिला पंचायत सदस्य पद से खड़े एक पूर्व विधायक के लिए वोट मांग रहे हैं।


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