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बांस की खेती से बंजर जमीन होगी उपजाऊ

जल संरक्षण एवं पर्यावरण संरक्षण के ²ष्टिकोण से जिला प्रशासन ने सई नदी के किनारे के गांवों में बांस की खेती कराने का फैसला लिया है। एक ओर जहां बांस की खेती से किसानों की आमदनी बढ़ेगी वहीं दूसरी ओर जलवायु को सु²ढ़ बनाने और पर्यावरण संरक्षण में भी बांस की खेती का अहम योगदान होगा। बांस की खेती से बंजर जमीन को उपजाऊ बनाने में मदद मिलेगी। इससे भूमिहीनों सहित छोटे एवं मझोले किसाने और महिलाएं आत्मनिर्भर बनेंगी। इसके साथ ही उद्योगों को गुणवत्तायुक्त सामग्री उपलब्ध हो सकेगी। इस पर सीडीओ द्वारा कार्ययोजना तैयार की जा रही है। जल्द ही व्यापक स्तर पर बांस की खेती शुरू की जाएगी।

By JagranEdited By: Published: Fri, 11 Dec 2020 05:10 PM (IST)Updated: Fri, 11 Dec 2020 05:10 PM (IST)
बांस की खेती से बंजर जमीन होगी उपजाऊ
बांस की खेती से बंजर जमीन होगी उपजाऊ

संवाद सूत्र, प्रतापगढ़ : जल संरक्षण एवं पर्यावरण संरक्षण के ²ष्टिकोण से जिला प्रशासन ने सई नदी के किनारे के गांवों में बांस की खेती कराने का फैसला लिया है। एक ओर जहां बांस की खेती से किसानों की आमदनी बढ़ेगी, वहीं दूसरी ओर जलवायु को सु²ढ़ बनाने और पर्यावरण संरक्षण में भी बांस की खेती का अहम योगदान होगा। बांस की खेती से बंजर जमीन को उपजाऊ बनाने में मदद मिलेगी। इससे भूमिहीनों सहित छोटे एवं मझोले किसाने और महिलाएं आत्मनिर्भर बनेंगी। इसके साथ ही उद्योगों को गुणवत्तायुक्त सामग्री उपलब्ध हो सकेगी। इस पर सीडीओ द्वारा कार्ययोजना तैयार की जा रही है। जल्द ही व्यापक स्तर पर बांस की खेती शुरू की जाएगी।

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जिले के सदर, संडवा चंद्रिका, शिवगढ़, बाबा बेलखरनाथ धाम सहित अन्य कुछ ब्लाकों की ग्राम पंचायतों को बांस की खेती करने के लिए चिह्मित किया जा रहा है। इसके पीछे प्रशासन का मकसद है कि बंजर जमीन को उपजाऊ बनाया जा सके। साथ ही किसानों व गरीब लोगों को आत्मनिर्भर बनाया जा सके। खास बात यह है कि इससे जल का सरंक्षण भी होगा। इन ब्लाकों की ऐसी ग्राम पंचायतों में बांस की खेती होगी, जो नदी के किनारे के गांव हैं। बांस तैयार होने पर इसकी आपूर्ति एनटीपीसी में की जाएगी। इसके अलावा किसान स्थानीय स्तर पर और आसपास के जिलों में भी बिक्री कर सकेंगे। अनुमान है कि एक बांस की लंबाई 70 से 80 फिट होगा।

वैसे अभी तक किसान आबादी की जमीन और बाग में बांस लगाते थे। पहले बांस लगाने का मकसद छप्पर छाने सहित गृहस्थी के अन्य कामों

को निपटाने का था। किसान पहले बांस नहीं बेचते थे, सिर्फ घरेलू काम के लिए बांस लगाते थे। अब इसकी खेती आमदनी के नजरिए से की जा रही है। बांस की खेती में लागत भी न के बराबर है।


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