..रेलवे की सरजमीं पर फिर बसे तालों का सुंदर किनारा
जल संरक्षण की बात चले और रेलवे विभाग अछूता रह जाए ऐसा कैसे हो सकता है। सबसे ज्यादा भू संपदा वाले इस विशालकाय विभाग के पास आज भी हजारों बीघे जमीन है। हालांकि उदासीनता के चलते खेती के लिए उपयुक्त जमीन भी बंजर का एक हिस्सा बनकर रह गई है। जंक्शन चिलबिला स्टेशन और भूपियामऊ स्टेशन के आसपास की खाली पड़ी जमीन का क्षेत्रफल ही करीब पांच हजार बीघा के आसपास है। कभी यहां पर कई तालाब हुआ करते थे और उनमें वर्ष भर पानी भरा रहता था। जल संरक्षण के लिए रेलवे ने अभी हाल ही में पहल की है। हालांकि इसका धरातल पर कहीं स्वरूप देखने को नहीं मिल रहा। विशेषज्ञों की मानें तो रेलवे की पांच हजार बीघे जमीन पर जल संचयन करके भूगर्भ जल स्तर को बढ़ाने में काफी मदद मिल सकती है। रेलवे अगर इस तरफ पहल करे तो सबसे ज्यादा फायदा प्रतापगढ़ की धरा को मिल सकता है।
जासं, प्रतापगढ़ : जल संरक्षण की बात चले और रेलवे विभाग अछूता रह जाए, ऐसा कैसे हो सकता है। सबसे ज्यादा भू संपदा वाले इस विशालकाय विभाग के पास आज भी हजारों बीघे जमीन है। हालांकि उदासीनता के चलते खेती के लिए उपयुक्त जमीन भी बंजर का एक हिस्सा बनकर रह गई है। जंक्शन, चिलबिला स्टेशन और भूपियामऊ स्टेशन के आसपास की खाली पड़ी जमीन का क्षेत्रफल ही करीब पांच हजार बीघा के आसपास है। कभी यहां पर कई तालाब हुआ करते थे और उनमें वर्ष भर पानी भरा रहता था। जल संरक्षण के लिए रेलवे ने अभी हाल ही में पहल की है। हालांकि इसका धरातल पर कहीं स्वरूप देखने को नहीं मिल रहा। विशेषज्ञों की मानें तो रेलवे की पांच हजार बीघे जमीन पर जल संचयन करके भूगर्भ जल स्तर को बढ़ाने में काफी मदद मिल सकती है। रेलवे अगर इस तरफ पहल करे तो सबसे ज्यादा फायदा प्रतापगढ़ की धरा को मिल सकता है।
कभी जंक्शन के आसपास और दस किलोमीटर के दायरे में तमाम बड़े जलाशय हुआ करते थे। ये हमेशा पानी से लबालब रहते थे। बेसहारा पशुओं को पानी मिलता था और भूगर्भ जल स्तर को संजीवनी मिला करती थी। समय के साथ-साथ तालाबों पर अतिक्रमण होते चले गए और एक के बाद एक करके तालाबों का अस्तित्व समाप्त होता चला गया। गौर करने की बात है कि रेलवे प्रशासन के अपने राजस्व रेकार्ड में सिर्फ एक तालाब का ही जिक्र है। कभी पचास बीघे में अपनी सुंदरता बिखेरे रहने वाला यह तालाब भी अब अपना अस्तित्व खो चला है। अब कुल छह-सात बीघे में सिमट कर रह गए इस तालाब पर किए गए अतिक्रमण की शिकायत रेलवे प्रशासन द्वारा की गई है, मगर सिस्टम से हारा रेलवे विभाग भी अपना यह तालाब बचा पाने में नाकामयाब रहा। कभी इस तालाब में कमल का गट्टा और सिघाड़े की खेती हुआ करती थी, मगर अब यह महज इतिहास है। इस तालाब के शेष बचे रह गए हिस्से पर जलकुंभी ने अपना बसेरा कर लिया है। कुछ इसी तरह का हश्र चिलबिला से लेकर जंक्शन के आसपास और फिर भूपियामऊ स्टेशन के आसपास के तालाबों का हो गया, अब ये समाप्त हो चुके हैं। रेलवे की जमीन पर अवैध अतिक्रमण की लंबी फेहरिस्त है। कहीं मकान, स्कूल, खेती, मंदिर-मस्जिद, मजार, डेयरी, गौशाला और फूलों की नर्सरी के शक्ल में ये अवैध अतिक्रमण मुंह चिढ़ाते नजर आते हैं। प्रशासन भी इनके आगे बौना नजर आता है। ------- नए भवन में वाटर हार्वेस्टिग सिस्टम
अंग्रेजों के जमाने की बनी बिल्डिग में वाटर हार्वेस्टिग सिस्टम अब खराब हो चुके हैं, मगर नई बिल्डिग में वाटर हार्वेस्टिग सिस्ट्म की व्यवस्था ठीक से की गई है। स्टेशन अधीक्षक त्रिभुवन मिश्रा उत्साहित हैं, कहते हैं कि जल संरक्षण के लिए यात्रियों और कर्मचारियों को जागरूक किया जा रहा है। उसका फायदा मिल रहा है। रेलवे अपने कैंपस में वाटर सेविग के लिए निरंतर प्रयास कर रहा है।