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नई पीढ़ी को सिखा रहे अपने पैरों पर खड़ा होना

कर्तव्य पथ पर चलने के लिए खुद को तैयार करना पड़ता है। आत्मबल जब सशक्त होता है तो रिटायर होने के बाद भी जिम्मेदारी साथ नहीं छोड़ती। ऐसा ही उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं पीजी कालेज पट्टी के पूर्व प्राचार्य डा. गिरीश चंद्र शुक्ल। वह नई पीढ़ी को सुशिक्षित कर रहे हैं कि कैसे अपने ही घर-गांव में रोजगार पाया जा सकता है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 10 Jan 2022 11:08 PM (IST)Updated: Mon, 10 Jan 2022 11:08 PM (IST)
नई पीढ़ी को सिखा रहे अपने पैरों पर खड़ा होना

जागरण संवाददाता, प्रतापगढ़ : कर्तव्य पथ पर चलने के लिए खुद को तैयार करना पड़ता है। आत्मबल जब सशक्त होता है तो रिटायर होने के बाद भी जिम्मेदारी साथ नहीं छोड़ती। ऐसा ही उदाहरण प्रस्तुत कर रहे हैं पीजी कालेज पट्टी के पूर्व प्राचार्य डा. गिरीश चंद्र शुक्ल। वह नई पीढ़ी को सुशिक्षित कर रहे हैं कि कैसे अपने ही घर-गांव में रोजगार पाया जा सकता है। कैसे अपनी जड़ों से जुड़े रहकर आगे बढ़ा जा सकता है। इसकी कोई उम्र नहीं होती। दस बरस पहले रिटायर होने पर उन्होंने खुद को खाली नहीं रहने दिया। बुढ़ापे की व्यथा को पास फटकने नहीं दिया। उन्होंने तय किया कि समाज को कुछ न कुछ देते रहेंगे। उन्होंने अपने दो महाविद्यालयों की जिम्मेदारी पुत्र व पत्नी पर छोड़कर गो पालन शुरू कर दिया। शहाबपुर कुंडा में अपने गांव में एक एकड़ में गोशाला खोलकर वह हर दिन 250 लीटर से अधिक दूध का उत्पादन कर रहे हैं। डा. शुक्ल लोगों को पशुपालन से होने वाले लाभ के बारे में बताकर उनको भी पशुपालन के लिए प्रेरित करते हैं। इसका अभियान चलाते हैं। कोरोना काल में भी दूध की धारा बहती रही। बहुत से संकटग्रस्त लोगों की इन्होंने मदद की। गांव व आसपास के बच्चों को गोशाला में बुलाकर उनको शिक्षा देते हैं। संस्कारों को सिखाते हैं। पौधारोपण कराते हैं। यानि हर तरह से इनका प्रयास यही है कि समाज सुशिक्षित हो।

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इन्हें मिला रोजगार

वह क्षेत्र के अन्य गोपालकों के दूध खरीदकर उसे डेयरी पर बेचकर लोगों को रोजगार से जोड़ रहे हैं। दर्जनों को गोशाला में भी रोजगार से जोड़े हुए हैं। पशुओं की देखरेख के लिए गाजियाबाद से दो प्रशिक्षित कर्मी दयाराम यादव व प्रदीप यादव हैं। राम आसरे, मो. नजम व पंकज गुप्ता समेत दर्जनों लोगों को रोजगार मिला है।

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जैविक खाद पर बल

जैविक खाद पर भी पूर्व प्राचार्य जोर देते हैं। ताकि खेत की उर्वरा शक्ति न कम हो। वह किसानों को इसके बारे में बताते हैं। पशुओं के गोबर से बनने वाली खाद का अपने खेतों में उपयोग कर हरी सब्जियां पैदा करते हैं। मौसमी सब्जी आलू, मटर, गाजर, करेला, कद्दू, भिडी, लौकी को देखा जा सकता है।


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