लाकडाउन में घर लौटे तो गांव में ही बस गया परिवार
लाकडाउन के चलते शहरों में काम कामकाज जब ठप हो गया तो उन लोगों को भी अपना गांव याद आने लगा जो कई वर्षों से बेगाने हो गए थे। उन्हें वही गांव अब ताहरणहार दिखने लगा जहां की मिट्टी से उठकर वह परदेस गए थे। ऐसे में लाकडाउन के दौरान जब वह पूरे परिवार के साथ घर पहुंचे तो उन्होंने अपना आशियाना व कारोबार यहीं पर ही फैला लिया। फिर तो गांव में ऐसा मन रमा कि यहीं के होकर रह गए।
संवाद सूत्र, कुंडा: लाकडाउन के चलते शहरों में काम कामकाज जब ठप हो गया तो उन लोगों को भी अपना गांव याद आने लगा, जो कई वर्षों से बेगाने हो गए थे। उन्हें वही गांव अब ताहरणहार दिखने लगा, जहां की मिट्टी से उठकर वह परदेस गए थे। ऐसे में लाकडाउन के दौरान जब वह पूरे परिवार के साथ घर पहुंचे तो उन्होंने अपना आशियाना व कारोबार यहीं पर ही फैला लिया। फिर तो गांव में ऐसा मन रमा कि यहीं के होकर रह गए।
विकास खंड कुंडा के मौली गांव निवासी राजू श्रीवास्तव पुत्र स्व. छोटेलाल श्रीवास्तव मुंबई के धारावी इलाके में अपने भाई रोशन, राजन व मां सविता देवी समेत पूरे परिवार के साथ रहते थे। इसमें राजू व रोशन की शादी हो चुकी थी। कुल मिलाकर परिवार के 13 सदस्य वहीं पर जीवन यापन कर रहे थे। जहां पर पूरा परिवार फिल्मी सितारों को कपड़े व विद्यालय में पढ़ने वाले बच्चों के ड्रेस के सिलाई का काम करते थे। 22 मार्च 2020 को जब पूरे देश में लाकडाउन लगा तो कारोबार पर ताला लग गया। ऐसे में अब परिवार के सामने जीविकोपार्जन की समस्या खड़ी होने लगी। देखते ही देखते दो माह का समय बीत गया। ऐसे में राजू ने बीते 16 मई को एक दोस्त के सहयोग से गांव लौटने के लिए एक ट्रक को बुक किया। ट्रक चालक ने उन्हें घर पहुंचाने के लिए 85 हजार रूपये की मांग की। राजू पूरे परिवार के साथ घर लौटने के लिए रकम देने को तैयार हो गया। आखिरकार उसी दिन पूरा परिवार ट्रक पर बैठकर कर घर के लिए रवाना हो गया। पचास घंटे का सफर तय करने के बाद राजू अपने पूरे परिवार के साथ घर मौली पहुंचा। अब राजू के सामने पूरे परिवार का खर्च उठाने का संकट आ गया। ऐसे में राजू ने कुंडा करेटी रोड पर महुंआ तर के पास थोडी से जमीन ली और उस पर एक मकान का निर्माण कराकर उसी में परचून व सिलाई का काम शुरू कर दिया। धीरे-धीरे पूरा परिवार अब उसी के सहयोग में खड़ा हो गया। देखते ही देखते राजू ने अपना कारोबार फैला दिया। जागरण टीम से मुलाकात के दौरान राजू ने बताया कि मुंबई से आने के बाद अपने गांव में ही अपना कारोबार फैला चुका है। अपनों का इतना प्यार और सहयोग मिला कि अब फिर से मुंबई जाकर बसने की इच्छा नहीं रही। यहीं पर बहुत कुछ करने को है, अपना गांव अपना ही होता है।