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Valentines day: स्टालिन की बेटी के प्यार में बंध गए थे कालाकांकर के राजकुमार, जानें कैसे प्रतापगढ़ से जुड़ा मास्को

सोवियत संघ के तानाशाह जोसेफ स्टालिन की बेटी स्वेतलाना ने प्रतापगढ़ के कालाकांकर के राजकुमार ब्रजेश सिंह से बेहद प्यार किया था।

By Nawal MishraEdited By: Published: Wed, 13 Feb 2019 06:47 PM (IST)Updated: Wed, 13 Feb 2019 06:47 PM (IST)
Valentines day: स्टालिन की बेटी के प्यार में बंध गए थे कालाकांकर के राजकुमार, जानें कैसे प्रतापगढ़ से जुड़ा मास्को
Valentines day: स्टालिन की बेटी के प्यार में बंध गए थे कालाकांकर के राजकुमार, जानें कैसे प्रतापगढ़ से जुड़ा मास्को

प्रतापगढ़ (रमेश त्रिपाठी)। सोवियत संघ के तानाशाह जोसेफ स्टालिन की बेटी स्वेतलाना ने प्रतापगढ़ के कालाकांकर के राजकुमार ब्रजेश सिंह से बेहद प्यार किया था। कालाकांकर राजघराने के कुंवर ब्रजेश सिंह उन कम्युनिस्ट नेताओं में से थे, जिन्होंने 1930 के बाद सोवियत संघ के मास्को को अपना घर बनाया। वह पूर्व विदेश मंत्री स्व. राजा दिनेश सिंह के चाचा थे। वर्ष 1963 में मास्को के एक अस्पताल में उनकी और स्वेतलाना की मुलाकात हुई। पहली नजर में ही दोनों में एक-दूसरे को प्यार हो गया। ब्रजेश सिंह के व्यक्तित्व और उनकी सौम्यता ने स्वेतलाना को काफी प्रभावित किया। वह उनकी दीवानी हो गईं। इस प्रेम कहानी ने भारत, रूस और अमेरिका के राजनीतिक व कूटनीतिक संबंधों में तनाव पैदा कर दिया था।

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कालाकांकर में प्रेम कहानी की स्मृतियां 

तानाशाह स्टालिन की बेटी स्वेतलाना प्रतापगढ़ के कालाकांकर में काफी समय तक रही हैं। स्वेतलाना एलिल्युयेवा और राजकुमार ब्रजेश सिंह की प्रेम कहानी 60 के दशक की सबसे चर्चित और विवादित कहानी रही। आज भी इनकी प्रेम कहानी की स्मृतियां कालाकांकर में मौजूद हैं। यहां का ब्रजेश अस्पताल उनकी निशानी था, जिसमें अब एक स्कूल चल रहा है।  इस स्कूल के दीवारों पर स्वेतलाना और ब्रजेश सिंह की तस्वीरें लगी हैं। उस समय तत्कालीन प्रधानमंत्री श्रीमती इंदिरा गांधी ने स्वेतलाना को देश की नागरिकता नहीं दी और उन्हें यहां से वापस जाना पड़ा। सोवियत सरकार ने दोनों की शादी की इजाजत नहीं दी। हालांकि स्वेतलाना की ब्रजेश सिंह से शादी नहीं हुई, लेकिन उन्होंने जीवन भर उन्हें अपना पति माना। 1966 में ब्रजेश सिंह की मौत हो गई। उनकी अंतिम इच्छा पूरी करने के लिए स्वेतलाना कालाकांकर आईं और गंगा तट पर उनकी अस्थियां विसर्जित की। 22 नवंबर, 2011 को स्वेतलाना भी दुनिया को अलविदा कह गईं।  

इंदिरा गांधी ने नहीं दी थी इजाजत 

ब्रजेश ङ्क्षसह की अस्थियों का जब विसर्जन हुआ तो हजारों लोगों की भीड़ स्वेतलाना को देखने के लिए जमा हो गई। वह कार चला रही थीं और गांव वाले कार के पीछे धक्का-मुक्की कर रहे थे। स्वेतलाना ने अपनी किताब में इसका जिक्र किया है। अस्थि विसर्जन के बाद भारत में उन्होंने बसने की इच्छा जताई, मगर इंदिरा गांधी की तत्कालीन सरकार ने इजाजत नहीं दी। उस समय सोवियत संघ और भारत के रिश्ते काफी अच्छे थे और भारत को सोवियत संघ की नाराजगी का डर था। 

दो महीने से ज्यादा रहीं कालाकांकर में

कुंवर ब्रजेश सिंह से स्वेतलाना को इतना लगाव था कि  वह यहां से जाना नहीं चाहती थीं। दो महीने से ज्यादा समय तक वह कालाकांकर में रहीं। मदन मोहन मालवीय कॉलेज कालाकांकर के रिटायर्ड क्लर्क एमएल गुप्ता बताते हैं कि स्वेतलाना राजभवन के प्रकाश गृह में रहती थीं। 

डॉ. केके लाल ने सिखाई हिंदी

स्वेतलाना को सिर्फ ब्रजेश सिंह से लगाव नहीं था, बल्कि उनकी वेशभूषा, परंपरा, रीति-रिवाज और उनकी भाषा से भी मोहब्बत थी। कालाकांकर में उनकी अस्थियां विसर्जित करने के बाद जब वह यहां रुकीं तो उन्होंने ङ्क्षहदी सीखने की भी ठान ली। एमएल गुप्ता बताते हैं कि मदन मोहन कॉलेज के संस्कृत विभाग के अध्यक्ष डॉ. केके लाल ने उन्हें ङ्क्षहदी सिखाई थी। 


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