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एमएलसी चुनाव में बढ़ गए दो गुना मतदाता

उत्तर प्रदेश प्रदेश विधान परिषद के लखनऊ खंड स्नातक व शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र में इस बार मतदाता दो गुना बढ़ गए हैं। मतदाताओं की संख्या में इजाफा होने से प्रत्याशियों की धड़कनें बढ़ गई हैं। एमएलसी चुनाव में मतदाता बनने को लेकर लोगों में उत्साह नहीं रहता है। इसकी वजह है कि चुनाव जीतने के बाद प्रत्याशी फिर छह साल तक मतदाताओं से दूर हो जाते हैं। इसलिए मतदाता बनाने के लिए उन लोगों को खासी मशक्कत करनी पड़ती है जिन्हें चुनाव लड़ना होता है।

By JagranEdited By: Published: Mon, 30 Nov 2020 10:28 PM (IST)Updated: Mon, 30 Nov 2020 10:28 PM (IST)
एमएलसी चुनाव में बढ़ गए दो गुना मतदाता
एमएलसी चुनाव में बढ़ गए दो गुना मतदाता

दिनेश सिंह, प्रतापगढ़ : उत्तर प्रदेश प्रदेश विधान परिषद के लखनऊ खंड स्नातक व शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र में इस बार मतदाता दो गुना बढ़ गए हैं। मतदाताओं की संख्या में इजाफा होने से प्रत्याशियों की धड़कनें बढ़ गई हैं।

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एमएलसी चुनाव में मतदाता बनने को लेकर लोगों में उत्साह नहीं रहता है। इसकी वजह है कि चुनाव जीतने के बाद प्रत्याशी फिर छह साल तक मतदाताओं से दूर हो जाते हैं। इसलिए मतदाता बनाने के लिए उन लोगों को खासी मशक्कत करनी पड़ती है, जिन्हें चुनाव लड़ना होता है। क्योंकि वह यह जानते हैं कि जिसका फार्म भरवाकर वह मतदाता बनाएंगे, वह वोट देने के दौरान उन पर विचार जरूर करेगा। इसीलिए प्रत्याशी चुनाव लड़ने से पहले मतदाता सूची बनने के दौरान खूब पसीना बहाते हैं।

प्रत्याशियों की मेहनत का नतीजा भी अबकी बेहतर दिखा। यही वजह रही कि पिछले चुनाव की अपेक्षा दोनों खंड निर्वाचन क्षेत्र में मतदाता बढ़कर दो गुना हो गए। पिछले चुनाव में लखनऊ खंड स्नातक क्षेत्र में जिले में कुल 16,853 मतदाता थे, जो इस बार बढ़कर 37,201 हो गए। यानी दो गुना से भी अधिक मतदाता हो गए। शिक्षक निर्वाचन क्षेत्र में पिछली बार 3417 मतदाता थे, जो इस बार बढ़कर 5559 हो गए।

मतदाताओं के बढ़ने से वे प्रत्याशी राहत महसूस कर रहे हैं, जिन्होंने खुद प्रयास करके शिक्षकों व स्नातकों को मतदाता बनाया है। दूसरी ओर उन प्रत्याशियों की धड़कनें बढ़ गईं है, जिन्होंने यहां के शिक्षकों व स्नातकों को मतदाता बनवाने में रुचि नहीं ली थी। तमाम प्रयास के बाद अभी भी हजारों युवा ऐसे हैं जो स्नातक पास है, लेकिन मतदाता नहीं बन सके। इसकी वजह रही कि मतदाता बनने में स्नातक पास लोगों की कोई रुचि नहीं थी और न ही किसी ने उनका नाम मतदाता सूची में शामिल कराने का प्रयास किया।


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