खेतिया तौ बिहानौ कइ लेब, चुनवना रोज न होए..
वह खेतिहर हैं तो खेत ही उनकी दुनिया है। यह सही नहीं है। किसानों में भी युवाओं की तरह लोकतंत्र के महायज्ञ में शामिल होने का उत्साह है। वह अपने वोट से तय करना चाहते हैं कि उनके गांव का मुखिया कौन बने। सोमवार को मतदान के दौरान किसानों को बूथों पर सुबह से ही देखा गया। दैनिक जागरण टीम ने कुछ किसानों से बात की। कुछ लोग अपने बेटे पौत्र के साथ आए थे तो कुछ कमर को लाठी के सहारे थामकर पहुंचे थे। टीम ने उनसे जानने का प्रयास किया कि उनकी इस खास दिन की वरीयता में खेती रही या चुनाव।
राज नारायण शुक्ल राजन, प्रतापगढ़ : वह खेतिहर हैं तो खेत ही उनकी दुनिया है। यह सही नहीं है। किसानों में भी युवाओं की तरह लोकतंत्र के महायज्ञ में शामिल होने का उत्साह है। वह अपने वोट से तय करना चाहते हैं कि उनके गांव का मुखिया कौन बने। सोमवार को मतदान के दौरान किसानों को बूथों पर सुबह से ही देखा गया। दैनिक जागरण टीम ने कुछ किसानों से बात की। कुछ लोग अपने बेटे, पौत्र के साथ आए थे तो कुछ कमर को लाठी के सहारे थामकर पहुंचे थे। टीम ने उनसे जानने का प्रयास किया कि उनकी इस खास दिन की वरीयता में खेती रही या चुनाव।
सराय महिमा के राम बहादुर यादव वोट देकर निकले थे। कहने लगे..अरे भइया इहौ कौनो पूछै कै बात आ, खेती कै काम खतमै समझा। जौन बचा बा ओका बिहानौ कइ लेब, इ चुनवना तौ रोज न होए। इही बरे हम आज दतुइन-कुल्ला कइके चाह पिए औ सीधे ओट देइ आइ गए। न घाम लगा, न करोना के खतरा रहा। शकतपुर के सूर्यपाल बड़ी बेबाकी से कहने लगे..गोहूं कटि गा बा। कउनो टेंशन नाहीं बा। आज तौ हम सबसे पहिले ओट देहे, बाद में खेत-बारी देखब। उसरी गांव के सहदेव वर्मा बूथ से लौटते मिले। टीम ने रोका, पूछा, कहां से आ रहे हैं। उनका जवाब सुनिए..गा रहे ओट देइ। गदेलवन कहने कि बाबू भीड़ से बचै का बा तो अबहीं चला जा तो हम आइ गए। ओट देहे के बाद बहुत सकून मिला कि एक बड़ा काम होइ गा। अब चाहे जे जीतै, चाहे हारै। घनोर के अवधेश मौर्य सब्जी की अच्छी किसानी करते हैं, लेकिन वह दोपहर तक खेतों की ओर नहीं गए थे। बात चली तो कहने लगे कि साग-सब्जी बोए अही। ओका रोज देखै जाइथा, मुल आज तौ अलेक्शन अहै। हम नवै बजे ओट दइ देहे। आखिर गांव-देस के बात अहै। ओट तौ जरूर देइ का चाही।
गाड़ी आगे बढ़ी तो आ गया खैरा गौरबारी गांव। यहां मिल गए ब्रह्मादीन। बूथ की ओर चले जा रहे थे। पूछने पर बोले..का बात अहै भइया। काहे रोकत अहा। जात अही ओट देय। पंदरह रोज से घरे से निकरत नाय रहे, बस ओट देइ के बरे निकरा अही। का करी। जवन बिमारी फइली बा कि मारे मनई के मरत अहैं। संझा कि खेतौ जाइ का बा। गौराडांड़ के शोभनाथ सिंह से चर्चा हुई तो कहने लगे कि आज हम नहाय-खाय के पहिले बूथे पै गए। आपन वोट देहे, घर वालेन का देवाए। अब एकरे बाद बाकी कै काम-काज कीन जाए। इसी तरह घुइसरनाथ धाम के मथुरा प्रसाद शुक्ल, जूही के सतीश चंद्र शुक्ल, फेनहा के रामसुख यादव समेत किसानों में मतदान का उतसाह स्वस्थ लोकतंत्र व मजबूत पंचायती राज का संदेश देते रहे।