अंकुर की सौगात दे, भोग रहा बंजर का अभिशाप
रमेश त्रिपाठी प्रतापगढ़ शहर में स्थापित देश के एक मात्र सनई अनुसंधान केंद्र कभी अंकुर
रमेश त्रिपाठी, प्रतापगढ़ : शहर में स्थापित देश के एक मात्र सनई अनुसंधान केंद्र कभी अंकुर, प्रांकुर जैसी नई प्रजाति की खोज कर भारत के राजपत्र में शामिल होकर पूरे देश में छाया था। आज उसी सनई अनुसंधान केंद्र में पिछले दो वर्षों से एक भी नई प्रजाति की खोज नहीं हो सकी। अब यहां अलसी रेशा उत्पादन करने की रणनीति तैयार की जा रही है। कई बीघे में स्थित यह केंद्र बंजर बना हुआ है। सनई की नई प्रजाति अंकुर पर रिसर्च वर्ष 2013 में तत्कालीन वैज्ञानिक डॉ. मनोज त्रिपाठी ने किया था। उन्होंने अपने कार्यकाल में सनई की पांच नई प्रजातियों की खोज की थी। उनके यहां से जाने के बाद एक भी नई प्रजाति पर रिसर्च नहीं हो सका। अंकुर, प्रांकुर जैसी प्रजाति की खोज करने वाला यह संस्थान अब पूरी तरह से बंजर हो चुका है। पूर्व में सनई अनुसंधान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक रहे डा. मनोज त्रिपाठी, डा. बबिता चौधरी व डा. हरीश की टीम ने सनई की नई प्रजाति अंकुर तथा प्रांकुर की खोज की थी। इसके बाद केंद्र में वर्ष 2019 में सनई की नई प्रजाति कविता की खोज तत्कालीन वैज्ञानिक डॉ. बबिता चौधरी ने की।
इसके पूर्व अनुसंधान केंद्र द्वारा वर्ष 2005 में शैलेश, वर्ष 2009 में स्वास्तिक की खोज की गई थी। इस नई प्रजाति को खोजने के लिए दो पौधों में क्रासकर नया पौधा तैयार किया गया था। छह वर्षों तक इसका प्यूरीफिकेशन करने के उपरांत आल इंडिया नेटवर्क प्रोजेक्ट के माध्यम से कई स्थानों पर ट्रायल हुआ था। अब वर्तमान में सनई अनुसंधान केंद्र में अलसी रेशा की खेती प्रभारी वैज्ञानिक शिवा कुमार के निर्देशन में होने जा रही है। इसी नवंबर माह में इसकी बोआई कराई जाएगी। 110 से 120 दिन में इसकी फसल तैयार हो जाएगी। केंद्र में एक हेक्टेयर में अलसी रेशा की खेती की जाएगी। ---- इनसेट--- फोटो- सनई अनुसंधन केंद्र में वर्ष 2019 के बाद सनई की नई वेराइटी की खोज नहीं की जा सकी। अब केंद्र पर अलसी रेशा का उत्पादन किया जाएगा। एक हेक्टेयर में इसकी खेती कर बीज तैयार किया जाएगा। -शिवा कुमार, प्रभारी वैज्ञानिक, सनई अनुसंधान केंद्र।