बांस की खेती से किसान बनेंगे आत्मनिर्भर, मिलेगी आजीविका
जल संरक्षण एवं पर्यावरण संरक्षण को लेकर जिला प्रशासन ने बैंबू मिशन एवं जैव ऊर्जा बोर्ड के तहत बांस की खेती कराने का निर्णय लिया है।
प्रवीन कुमार यादव, प्रतापगढ़ : जल संरक्षण एवं पर्यावरण संरक्षण को लेकर जिला प्रशासन ने बैंबू मिशन एवं जैव ऊर्जा बोर्ड के तहत बांस की खेती कराने का निर्णय लिया है। बांस की खेती से किसानों की आय में वृद्धि के साथ-साथ जलवायु को बेहतर बनाने और पर्यावरण संरक्षण में भी योगदान होगा। बांस की खेती से बंजर जमीन को उपजाऊ करने में मदद मिलेगी। इससे भूमिहीनों सहित छोटे एवं मझोले किसानों और महिलाओं को आजीविका मिलेगी और उद्योग को गुणवत्ता संपन्न सामग्री उपलब्ध हो सकेगी। इस पर मनरेगा विभाग कार्ययोजना तैयार कर रहा है। आने वाले दिनों में व्यापक स्तर पर बांस की खेती होनी शुरू हो जाएगी।
जिले में नदी के तट वाले इलाकों में बांस की खेती कराने को लेकर व्यापक स्तर पर कार्रवाई चल रही है। इसके पीछे जिला प्रशासन का मकसद है कि बंजर जमीन उपजाऊ हो। किसानों व गरीब लोगों को आजीविका मिले। खास बात यह है कि इससे पानी व मिट्टी की बचत होगी। इसके लिए कुंडा, लक्ष्मणपुर, संडवा चंद्रिका व मानधाता सहित अन्य कुछ ब्लाकों को चिह्नित किया गया है। इन ब्लाकों की ऐसी ग्राम पंचायतों में बांस की खेती होगी, जो नदी के किनारे के गांव हैं। बांस तैयार होने पर इसे एनटीपीसी में सप्लाई की जाएगी। इसके अलावा किसान लोकल की बाजारों व आसपास के जिलों में भी बिक्री कर सकेंगे। आय से वह आत्मनिर्भर बनेंगे।
बांस से बनेगा अचार
बांस का इस्तेमाल खाने में भी होता है। इसका अचार बनता है। इसके अलावा इसका उपयोग सीढ़ी, फर्नीचर, झाबे आदि में भी किया जाता है। पहले की अपेक्षा देखा जाय तो बांस की पैदावार काफी कम हो गई है। जरूरत पड़ने पर काफी महंगे दाम पर बांस मिलता है। इससे एक बार फिर बांस की उपज व्यापक स्तर पर जिले में देखने को मिलेगी।