ड्यूटी के फर्ज पर डटी, बच्चों पर न्योछावर प्यार
जिदगी की शाम ना जाने किस मोड़ पर हो जाए कुछ इसी अंदाज में हर कोई डरा-सहमा सा है। कोरोना महामारी ने जिदगी पर ऐसा ग्रहण लगाया कि हर कोई चोट खाए मुसाफिर की तरह सफर काट रहा है। ऐसे संकट में भी कई महिला कर्मी वीरांगना बनकर सामने आई हैं। धन्य हैं वो और उनके जज्बे को सलाम है। हर मुश्किल का सामना करते हुए अपने फर्ज पर भी डटी हैं और अपने बच्चों पर प्यार भी न्योछावर कर रही हैं।
राजेंद्र तिवारी, गौरा : जिदगी की शाम ना जाने किस मोड़ पर हो जाए, कुछ इसी अंदाज में हर कोई डरा-सहमा सा है। कोरोना महामारी ने जिदगी पर ऐसा ग्रहण लगाया कि हर कोई चोट खाए मुसाफिर की तरह सफर काट रहा है। ऐसे संकट में भी कई महिला कर्मी वीरांगना बनकर सामने आई हैं। धन्य हैं वो और उनके जज्बे को सलाम है। हर मुश्किल का सामना करते हुए अपने फर्ज पर भी डटी हैं और अपने बच्चों पर प्यार भी न्योछावर कर रही हैं।
सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र गौरा में एएनएम पद पर तैनात नीतू सिंह आजमगढ़ जिले के सगड़ी जीयनपुर तहसील की कांखभार गांव की रहने वाली हैं। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र गौरा में एएनएम हैं। मार्च 2020 में कोरोना का संक्रमण फैला तो उनकी भी ड्यूटी संक्रमित मरीजों की सेवा के लिए लगा दी गई। कोरोना के शुरुआती दौर से ही उन्हें वैक्सीनेशन अधिकारी के तौर पर सीएचसी गौरा में अतिरिक्त जिम्मेदारी सौंप दी गई। तमाम झंझावातों के बीच मरीजों को कोरोना वैक्सीन लगाने की जिम्मेदारी का निर्वहन करना शुरू किया और लगातार सेवा देती आ रही हैं। यही नहीं अस्पताल में ड्यूटी के साथ ही गांव-गांव में संक्रमण बढ़ने पर उन्हें वहां भी भेजा जाता रहा। कई बार वह संक्रमित होते-बोते बचीं, मगर अपनी जिम्मेदारी की राह नहीं छोड़ पायीं। नीतू सिंह के पति अशोक राय गांव में ही रहते हैं। नीतू सिंह की दो बेटियां और एक बेटा है। बड़ी बेटी सेजल मां से दूर अपने पैतृक गांव में ही पिता के साथ रहकर 11वीं में पढ़ती है। दूसरी बेटी जिया राय भी कक्षा नौ की छात्रा है और गांव में रह रही है। बेटा सक्षम राय सातवीं का छात्र है, जो यहां मां के साथ रहता है। नीतू सिंह सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र गौरा के कैंपस में सरकारी आवास में ही बेटे के साथ रहती हैं । 12-12 घंटे की कड़ी ड्यूटी और संक्रमण का मंडराता खतरा, इसी बीच बच्चों के लिए समय निकालना, दोनों तरफ का पलड़ा बराबर रखने का प्रयास करने वाली नीतू सिंह जागरण से कहती हैं। दोनों बेटियां पिता के पास रहती हैं, महीनों हो गए, मुलाकात नहीं हुई। दोनों जिद करती हैं, किसी तरह घर आ जाओ। उन्हें समझा-बुझाकर शांत कर देती हूं। उनसे सिर्फ यही कहती हूं तुम्हारे जैसे बच्चों के ना जाने कितने माता-पिता इन दिनों कोरोना महामारी के शिकार होकर जब अस्पताल आते हैं, तो उनकी देखभाल करनी पड़ती है। अगर हम इस समय पीछे हट जाएंगे तो ना जाने कितने बच्चे अनाथ हो जाएंगे। उन्हें फिर कौन प्यार देगा, कौन उनकी जिदगी संवारेगा, यह कहने पर बेटियां चुप हो जाती हैं, दोनों समझदार हैं। कभी-कभी ऐसा भी वक्त आता है जब दूसरा कर्मचारी किसी कारणवश नहीं आता, उन्हें उसकी जगह भी काम करना पड़ जाता है। ऐसे में पड़ोसियों का सहारा मिल जाता है। नीतू कहती हैं कि उन्हें यही लगता है कि जिन बच्चों के माता-पिता दोनों ही कोरोना पाजिटिव हो जाते हैं, उनके बच्चों को कौन देखता होगा, यही कष्ट याद आते ही ड्यूटी का जुनून और भी बढ़ जाता है।