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पराली प्रबंधन पर सरकार ने लगाई मुहर

तराई के जिले में पराली प्रबंधन का जो फार्मूला लागू किया गया उस पर योगी सरकार ने भी मुहर लगा दी है। सरकार ने बजट में इसे शामिल करते हुए धनराशि का प्रावधान कर दिया है।

By JagranEdited By: Published: Tue, 18 Feb 2020 10:54 PM (IST)Updated: Tue, 18 Feb 2020 10:54 PM (IST)
पराली प्रबंधन पर सरकार ने लगाई मुहर
पराली प्रबंधन पर सरकार ने लगाई मुहर

जागरण संवाददाता, पीलीभीत : तराई के जिले में पराली प्रबंधन का जो फार्मूला लागू किया गया, उस पर योगी सरकार ने भी मुहर लगा दी है। सरकार ने बजट में इसे शामिल करते हुए धनराशि का प्रावधान कर दिया है। दरअसल सुप्रीम कोर्ट एवं राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण की सख्ती के बाद तराई के इस जिले में खेतों पर पराली जलाने पर प्रभावी अंकुश लगाने के लिए जिला प्रशासन सक्रिय हुआ। शुरुआती दौर में सैकड़ों किसानों पर मुकदमे दर्ज हुए। जुर्माना भी वसूला गया,लेकिन इसी बीच पराली प्रबंधन का फार्मूला भी खोज लिया गया। फार्मूला कुछ इस तरह से तैयार किया गया, जिससे किसानों पर आर्थिक बोझ न पड़े और प्रदूषण की समस्या का भी समाधान हो जाए। फार्मूला इतना कारगार है कि इसे प्रदेश के अन्य जिलों में भी लागू किए जाने के आदेश पिछले साल ही जारी हो चुके हैं।

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पराली (फसलों के अवशेष) खेतों में ही जलाने की प्रवृत्ति कोई नई नहीं है। हालांकि इससे पर्यावरण को बहुत नुकसान होता रहा है। खेतों में पराली जलने से उठने वाला धुआं आसमान की ओर ऊंची पर जाकर जम जाता है। इससे प्रदूषण की स्थिति काफी गंभीर हो जाती रही है। सुप्रीम कोर्ट के साथ ही राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने पराली जलाने की प्रवृत्ति पर रोक लगाने के सख्त निर्देश जारी किए थे। जिले में पराली प्रबंधन की शुरुआत पिछले साल भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान दिल्ली की ओर से तैयार किए गए डी-कंपोजर कैप्सूल के उपयोग से हुई। इस फार्मूले के तहत एक एकड़ की पराली के लिए दो कैप्सूल का इस्तेमाल किया जाता है। ये कैप्सूल ज्यादा महंगे भी नहीं हैं। एक कैप्सूल की कीमत सिर्फ पांच रुपये लगती है। इस तरह से होता है पराली प्रबंधन

खेतों से फसल अवशेष (पराली) को एकत्र कर लिया जाता है। इसके बाद कहीं पर एक गड्ढा खोदवाकर पराली उसी में डाल दी जाती है। इसके बाद दो कैप्सूल खोलकर थोड़ी मात्रा में बेसन और गुड़ को पानी में मिलाकर घोल तैयार किया जाता है। इसी घोल में कैप्सूल खोलकर उसके अंदर की दवा मिला दी जाती है। इसके बाद गड्ढे में भरी पराली में इस घोल का अच्छी तरह से छिड़काव कर दिया जाता है। बाद में गड्ढे को ढंक देना पड़ता है। एक महीने के भीतर गड्ढे में एकत्र पराली जैविक खाद में तब्दील हो जाएगी। इसका किसानों को यह फायदा मिलेगा कि पराली का निस्तारण हो जाएगा और साथ अगली फसल के लिए उन्हें जैविक खाद मुफ्त में मिल जाएगी। पराली प्रबंधन को मनरेगा से जोड़ा

जिलाधिकारी ने पराली प्रबंधन फार्मूला को मनरेगा से जोड़ दिया है। पराली प्रबंधन में मनरेगा में पंजीकृत श्रमिकों से काम लिया जाएगा और मजदूरी का भुगतान मनरेगा के श्रमिक मद से होगा। खेतों से पराली एकत्र करने, गड्ढों को खोदने, पराली लाकर उसमें डालने का कार्य मनरेगा श्रमिक करेंगे। किसानों को इसके लिए अपने पास से कुछ भी खर्च नहीं करना पड़ेगा। मनरेगा के जो श्रमिक इस कार्य पर लगाए जाएंगे, उनको मजदूरी का भुगतान बैंक खातों के माध्यम से भेजा जाएगा। फैक्ट फाइल

- जिले में खेती योग्य कुल भूमि 2.25 लाख हेक्टेयर

- जिले में कुल किसानों की संख्या लगभग 350 लाख

- करीब डेढ़ लाख हेक्टेयर में होती है गेहूं और धान की खेती

- लगभग 80 हजार हेक्टेयर में किसान करते हैं गन्ना की फसल

पराली जलाने की गंभीर समस्या थी। पहले हमने मशीन के जरिये पराली निस्तारण करने का निर्णय लिया था, लेकिन यह खर्चीला था। डी-कंपोजर कैप्सूल का माध्यम अपनाना। जिले के किसानों ने भी हाथों हाथ लिया। किसानों के हित में हमने पराली प्रबंधन को मनरेगा से जोड़ दिया। फार्मूले से किसानों को प्रति एकड़ पांच से छह हजार रुपये का फायदा खाद के रूप में होगा। फार्मूले को शासन के अपर मुख्य सचिव अवनीश अवस्थी तथा मंडलायुक्त रणवीर प्रसाद ने सराहना की थी। अब राज्य सरकार की ओर से इसके लिए बजट का प्रावधान किए जाने का निर्णय हमारे लिए गर्व की बात है। इससे हमें और ज्यादा नए कार्य करने की प्ररेणा मिलेगी।

- वैभव श्रीवास्तव, जिलाधिकारी


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