बाघों में बहार है... चुनौतियों के बीच बढ़ रहा बाघों का कुनबा, कामयाबी के संकेत
वर्ष 2017-18 में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के निर्देश पर गणना हुई तो कुनबा एक बार फिर बढ़ा और 54 बाघ पाए गए।
पीलीभीत [मनोज मिश्र] : नेपाल और उत्तराखंड के बॉर्डर को छूने वाला पीलीभीत का जंगल। यह जितना रोमांच देने वाला है, बाघों के लिए उतना ही मुफीद या यूं कहें कि पीलीभीत के जंगल में बाघों के लिए बहार है। वह इसलिए, क्योंकि इस क्षेत्र में बाघों का कुनबा लगातार बढ़ रहा। यह अच्छे संकेत हैं, क्योंकि बाघों की घटती संख्या से हर कोई चिंतित था। छह साल पहले इन क्षेत्र के जंगल में 37 बाघ थे। उसी साल संरक्षण के प्रयास बढ़े और आठ जून 2014 को इस क्षेत्र को टाइगर रिजर्व घोषित कर दिया गया। तब एक बार फिर गिनती हुई तो 42 बाघ मिले। वर्ष 2017-18 में राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण के निर्देश पर गणना हुई तो कुनबा एक बार फिर बढ़ा और 54 बाघ पाए गए।
वैसे तो पिछले एक साल में गणना के बाद कितने बाघ मिले, इसका आंकड़ा राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण 29 जुलाई को दिल्ली में बताएगा, मगर स्थानीय अधिकारियों की मानें तो इस बार कुल बाघों की संख्या 65 हो चुकी है। माना जा रहा है कि बाघों की संख्या में वृद्धि के संकेत इनके संरक्षण के लिए चलाए जा रहे प्रयासों के कारगर साबित होने का संकेत हैं।
पीलीभीत टाइगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर एच. राजामोहन के मुताबिक, बाघ गणना के लिए जंगल के कोर और बफर दोनों जोन में लेजर तकनीक पर आधारित ट्रैप कैमरे लगाए जाते हैं। बाघ की आहट होते ही कैमरा स्वत: सक्रिय हो जाता है। जैसे ही बाघ कैमरे के सामने आता है, उसकी तस्वीर कैद हो जाती है। एक निश्चित अवधि तक कैमरे लगे रहने के बाद हटा लिए जाते हैं। कई बार एक ही बाघ की तस्वीर कैमरों में कैद हो जाती है।
ऐसे में बाघ के शरीर की धारियों का अध्ययन के आधार पर उसे चिन्हित कर पहचाना जाता है और गणना की जाती है ताकि गणना में दोहराव न हो सके। अब सभी की निगाहें सोमवार को प्रधानमंत्री द्वारा जारी की जाने वाली रिपोर्ट पर टिक गई हैं, जिसमें देश भर में बाघों की बढ़ी और सही संख्या की जानकारी सामने आएगी। उल्लेखनीय है कि देश में इससे पहले तीन बार बाघों की संख्या को लेकर सरकार की ओर से रिपोर्ट जारी की जा चुकी है।
...लेकिन थम नहीं रहा है मानव-बाघ संघर्ष
पीलीभीत टाइगर रिजर्व में बाघ और मानव संघर्ष कई बार हुआ। आसपास 275 गांव बसे हैं। वहां के लोग लकड़ी काटने के लिए जंगल में घुसे तो बाघों के हमले हुए और अब तक 24 लोग मारे जा चुके। बाघ जब जंगलों से निकलकर खेतों में पहुंचने लगे तो गांव वाले हमलावर हुए, जिसमें पांच सालों में सात बाघ मारे जा चुके हैं। राहत की बात यह है कि इसके बावजूद बाघों की संख्या बढ़ी है।
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