बेटी ने दी पिता को मुखाग्नि, कहा मैं अपने पापा का बेटा हूं
पिता की चिता में मुखाग्नि सिर्फ बेटा ही दे सकता है बेटियां चिता को आग नहीं लगा सकतीं। इस सामाजिक सोच से ऊपर उठकर नगर में एक बेटी ने न सिर्फ पिता की अंतिम शवयात्रा में कंधा लगाया बल्कि मुखाग्नि प्रदान कर बेटा होने का फर्ज निभाया। अंतिम संस्कार की सारी रस्में खुद निभाई। समाज की रूढिवादिता से ऊपर उठकर बेटी ने समाज को एहसास करा दिया कि बेटा और बेटी में कोई फर्क नहीं होता।
पीलीभीत,जेएनएन : पिता की चिता में मुखाग्नि सिर्फ बेटा ही दे सकता है, बेटियां चिता को आग नहीं लगा सकतीं। इस सामाजिक सोच से ऊपर उठकर नगर में एक बेटी ने न सिर्फ पिता की अंतिम शवयात्रा में कंधा लगाया बल्कि मुखाग्नि प्रदान कर बेटा होने का फर्ज निभाया। अंतिम संस्कार की सारी रस्में खुद निभाई। समाज की रूढिवादिता से ऊपर उठकर बेटी ने समाज को एहसास करा दिया कि बेटा और बेटी में कोई फर्क नहीं होता।
बीसलपुर के मुहल्ला ग्यासपुर निवासी सुशील सक्सेना उर्फ लल्ला बिलसंडा नगर पंचायत से दो वर्ष पूर्व जलकर सुपरवाइजर के पद से सेवानिवृत्त हुए थे। धर्मपत्नी गीता सक्सेना और इकलौती बेटी पारूल सक्सेना हैं। पारूल की शादी रामपुर में हरजिदर के साथ होने के बाद वह ससुराल में रहती हैं। सुशील सक्सेना का एक पुत्र रजत सक्सेना था वह बीमारी से कई वर्ष पहले गुजर गया था। बेटी और दामाद उनके जीवन के सारथी बन चुके थे। पुत्र की मौत के बाद सुशील सक्सेना गमजदा इस कदर हो गए कि बीमार रहने लगे। कई वर्षों से भंयकर बीमारी का दंश झेल रहे सुशील सक्सेना को जिदगी देने का हर संभव प्रयास पत्नी व इकलौती बेटी पारूल सक्सेना करती रहीं। विवाह के बंधन में बंधने के बाद ससुराल में बहू तो मायके में बाप के लिए बेटे का भी फर्ज निभाया। सुशील सक्सेना बीमारी से बेटी के सहारे लंबे समय तक जंग लेते रहे। आखिरकार उनको जिदगी की जंग रविवार की शाम चार बजे हारनी ही पड़ी। सुशील सक्सेना के निधन के बाद सवाल उठा कि उनके बेटा तो है नहीं आखिर मुखाग्नि कौन देगा। सगे भाई राजेश सक्सेना भतीजे शुभम सक्सेना, सचिन सक्सेना, मुकेश सक्सेना समेत सभी मुखाग्नि देने को तैयार थे, लेकिन भीड़ को चीर कर एक रोती बिलखती आवाज सुनाई दी नहीं मैं अपने पापा का बेटा हूं। और मैं ही पापा को मुखाग्नि दूंगी। लोगों ने निगाह उठाकर देखा तो वह आवा•ा थी बेटी पारूल सक्सेना की जो अपने पापा की लाडली बहुत रही। भाई के निधन के बाद बेटा बनकर उनके साए की तरह साथ रही। पारूल का कहना है कि उनके पापा ने हमेशा हमेशा बेटे जैसा प्यार दिया तो उसने भी बेटी के साथ बेटे का फर्ज निभाया है। वह इस बात पर काफी संतुष्ट दिखी कि उसके ससुराल वालों ने उसके इस निर्णय पर भरपूर साथ दिया। सास ससुर पति सभी उसके निर्णय के साथ खड़े दिखाई दिए। चिता को मुखाग्नि सिर्फ बेटे ही दे सकते हैं बेटियां नहीं। बेटी पारुल सक्सेना ने पिता की अंतिम संस्कार की सारी रस्में निभा कर समाज को आईना दिखाने का काम किया है।
मुकेश सक्सेना बेटा और बेटी में कोई अंतर नहीं होता जब बेटे नहीं होते हैं तो बेटियां माता-पिता की सहारा बनती हैं। बेटी पारुल ने सही समय पर सही निर्णय लेकर पिता की चिता में मुखाग्नि देकर सराहनीय काम किया है।
नरेश चंद शर्मा
रूढि़वादी सोच से ऊपर उठकर बेटी पारुल ने पिता का अंतिम संस्कार कर समाज को सही दिशा दिखाई है। बेटियां भी बेटों से कम नहीं है।
कुसुमलता अग्रवाल