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अमरिया के बाघों के अध्ययन को बनेगी टीम

टाइगर रिजर्व के जंगल से बाहर अमरिया क्षेत्र में रहने वाले करीब दर्जन भर बाघों की गतिविधियों एवं उनके स्वभाव का अध्ययन विशेषज्ञों की टीम करेगी। इसके बाद ही इन बाघों के लिए किसी प्रोजेक्ट पर काम किया जाएगा।

By JagranEdited By: Published: Sun, 12 Jul 2020 11:37 PM (IST)Updated: Sun, 12 Jul 2020 11:37 PM (IST)
अमरिया के बाघों के अध्ययन को बनेगी टीम
अमरिया के बाघों के अध्ययन को बनेगी टीम

जेएनएन, पीलीभीत: टाइगर रिजर्व के जंगल से बाहर अमरिया क्षेत्र में रहने वाले करीब दर्जन भर बाघों की गतिविधियों एवं उनके स्वभाव का अध्ययन विशेषज्ञों की टीम करेगी। इसके बाद ही इन बाघों के लिए किसी प्रोजेक्ट पर काम किया जाएगा।

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दो दिवसीय दौरे पर आए राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) के डीआइजी निशांत वर्मा ने पीटीआर के जंगल में भ्रमण कर निरीक्षण करने के साथ ही अमरिया क्षेत्र में उस स्थान का भी दौरा किया, जहां करीब एक दर्जन बाघों का वास स्थल बताया जाता है। यह इलाका पीलीभीत टाइगर रिजर्व के जंगल से बाहर है। यहां पर सामाजिक वानिकी वन्यजीव प्रभाग की ओर से पिछले कई साल की मेहनत के बाद जंगल तैयार कर दिया गया है। कई साल पहले जो पौधे लगाए गए थे, वे वृक्ष बन चुके हैं। वर्ष 2012 में निकटवर्ती उत्तराखंड के सुरई रेंज के जंगल से एक बाघिन तीन शावकों के साथ निकलकर इस इलाके में आ गई थी। वर्तमान में जितने भी बाघ हैं। वे सभी उसी बाघिन की संतति हैं। कई साल बाद बाघिन चली गई थी। शावक बड़े होकर खुद शिकार करने लगे थे। वर्तमान में यहां बाघों की संख्या 11-12 के आसपास मानी जा रही है। पहले पीटीआर की ओर से यहां के बाघों की सुरक्षा एवं संरक्षण के लिए प्रोजेक्ट तैयार करके शासन को भेजा गया था लेकिन अब डीआइजी ने नए सिरे से यहां के बाघों का अध्ययन किए जाने की आवश्यकता पर जोर दिया है। इसके लिए पीटीआर, सामाजिक वानिकी एवं वन्यजीव प्रभाग, एनटीसीए व डब्ल्यूआइआइ के विशेषज्ञों को अध्ययन दल में शामिल किया जाएगा। इसके लिए पीटीआर प्रशासन ने तैयारी शुरू कर दी है।

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अमरिया क्षेत्र में पिछले कई सालों से बाघों ने जो अपना वास स्थल बना रखा है, वह काफी महत्वपूर्ण है। वहां के बाघ मानव के साथ समझौता कर रहना सीख गए हैं। वन्यजीव से जुड़ी सभी संस्थाओं से एक-एक सदस्य को लेकर टीम गठित करेंगे। टीम अमरिया के बाघों पर अध्ययन करेगी। एनटीसीए की गाइडलाइन के हिसाब से फिर से जल्द ही अध्ययन शुरू किया जाएगा। इसमें पीटीआर, सामाजिक वानिकी, एनटीसीए व डब्ल्यूआइआइ के विशेषज्ञ भी जोड़े जाएंगे।

डॉ. एच. राजामोहन, फील्ड डायरेक्टर, पीटीआर


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