राजा अज ने लकड़ी बेचकर दी गुरु दक्षिणा
ग्राम भदारा में चल रही श्रीमद्भागवत कथा सप्ताह में कथावाचिका माला शास्त्री ने राजा अज की गुरु दक्षिणा कथा सुनाई। एक बार राजा अज ने गुरु वशिष्ठ को महल में आमंत्रित कर यज्ञ कराया।
संवाद सहयोगी, बीसलपुर (पीलीभीत) : ग्राम भदारा में चल रही श्रीमद्भागवत कथा सप्ताह में कथावाचिका माला शास्त्री ने राजा अज की गुरु दक्षिणा कथा सुनाई। एक बार राजा अज ने गुरु वशिष्ठ को महल में आमंत्रित कर यज्ञ कराया। यज्ञ पूर्ण होने के बाद राजा अज ने गुरु से यज्ञ की दक्षिणा लेने को कहा, तभी गुरु वशिष्ठ ने कहा कि हम दक्षिणा तो लेंगे ही लेकिन महाराज अज दक्षिणा में हम आप से क्या लेना चाहते हैं यह तो आपको सोचकर बताएंगे। कुछ देर विचार करने के बाद गुरु वशिष्ठ ने महाराजा अज की ओर देखा और पूछा आप दक्षिणा में क्या देना चाहते हो। इस पर राजा अज ने कहा कि अगर मेहनत की कमाई लेना चाहते हो तो आप को रुकना पड़ेगा। गुरु वशिष्ठ बोले रुक जाएंगे। रात होते ही महाराजा अज महल से बाहर निकल गए। महल में ऐसा कुछ भी नहीं था जो राजा ने मेहनत से कमाया हो। इसलिए वह मेहनत करने के लिए जंगल की ओर चल पड़े। जंगल से कुछ लकड़ियां तोड़कर राज्य की सीमा से बाहर रख दिया और लकड़ी की बिक्री करने लगे। लकड़ी खरीदने को लोग एकत्र होने लगे। किसी को यह नहीं मालूम था कि यह महाराज अज हैं। खरीदारों मे से एक व्यक्ति ने महाराजा अज से पूछा कि लकड़ी की कीमत क्या है तो बताओ। महाराजा ने कहा कि आप ने अपनी जिदंगी में जो भी कमाया हो वही दे दो। इस पर खरीदार ने कहा कि महाराज एक रुपये में काम चल जाएगा। राजा ने कहा कि बिल्कुल चलेगा। एक रुपया लेकर महाराज वहां से आ गए। राजा अज को वापस आते देखकर गुरु वशिष्ठ ने कहा कि कुछ कमाकर लाए हो। राजा ने कहा कि गुरुजी अपनी जिदगी में मात्र एक रुपये ही कमाया है। गुरु वशिष्ठ कहने लगे, लाओ एक रुपया ही दे दो। यही हमारे लिए काफी है। इसके बाद वह वहां से वह वापस चले गए। यहीं पर महाराजा अज की दक्षिणा की कथा संपन्न हो जाती है। कथा संपन्न होने के बाद श्रद्धालुओं को प्रसाद वितरित किया गया।