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मल्टीनेशनल कंपनी छोड़ पुष्पजीत ने अपनाई जैविक खेती

मल्टीनेशनल कंपनी छोड़ खेती करने

By JagranEdited By: Published: Thu, 19 May 2022 11:54 PM (IST)Updated: Thu, 19 May 2022 11:54 PM (IST)
मल्टीनेशनल कंपनी छोड़ पुष्पजीत ने अपनाई जैविक खेती
मल्टीनेशनल कंपनी छोड़ पुष्पजीत ने अपनाई जैविक खेती

मल्टीनेशनल कंपनी छोड़ पुष्पजीत ने अपनाई जैविक खेती

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पीलीभीत,जेएनएन : इंजीनियरिंग कर दिल्ली में मल्टीनेशनल कंपनी में लाखों की जाब छोड़कर पुष्पजीत सिंह उद्यान और जैविक खेती में नए आयाम स्थापित कर किसानों के लिए नजीर बन गए हैं। परंपरागत खेती से हटकर जहां उन्हें एक अलग पहचान मिली वहीं अब वह लोगों को रोजगार भी दे रहे हैं। किसानों को साथ जोड़कर खेती में नए प्रयोगों से मिसाल कायम कर रहे हैं। पूरनपुर तहसील क्षेत्र के गांव पचपेड़ा प्रहलादपुर निवासी पुष्पजीत सिंह की प्रारंभिक शिक्षा राजस्थान के बिरला पब्लिक स्कूल में हुई। राजस्थान में इंटरमीडियट की पढ़ाई करने के बाद उस समय इंजीनियरिंग का क्रेज होने पर उन्होंने लखनऊ से बीटेक किया। उनकी सबसे बड़ी बहन शिप्रा सिंह हैं। उनसे छोटे भाई विश्वजीत सिंह जो अधिवक्ता हैं वह दिल्ली में प्रैक्टिस करते हैं। वह सबसे छोटे हैं। उनकी पत्नी रसवीन सिंह भी एमबीए हैं। मल्टीनेशनल कंपनी दिल्ली में जाब करती है। पुष्पजीत ने बीटेक कर वर्ष 2006 में दिल्ली की मल्टीनेशनल कंपनी लेसर नेटवर्क लिमिटेड में 12 लाख रुपये पैकेज पर जाब शुरू किया। वर्ष 2015 तक उन्होंने जाब किया। अच्छी लाइफ स्टाल और सैलरी होने के बाद भी उनका मन नहीं लगा। अपनी माटी से प्रेम होने और पिता से विरासत में मिली नौ एकड़ जमीन में किसानी करने का मन बनाया। अन्य किसानों की तरह धान, गेहूं, गन्ना की परंपरागत खेती न कर उद्यान और जैविक खेती की शुरुआत की। इसके लिए उन्होंने इंटरनेट मीडिया का सहारा भी लिया। उद्यान के रूप में सबसे पहले जिले में केला (फ्रूड) की खेती शुरू की। उद्यान खेती की शुरूआत करने पर परंपरागत खेती करने वाले किसानों ने मनोबल गिराया लेकिन उन्होंने अपना निर्णय बरकरार रखा। केला की खेती उन्होंने बड़ी संख्या में किसानों को कराई। वर्ष 2018 में उन्होंने जिले में सबसे पहले सेवा नाम से एफपीओ (फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी) बनाई जिसमें अब तक 166 किसान जुड़ चुके हैं जो जैविक और उद्यान खेती कर रहे हैं। यह सभी किसान एफपीओ के जरिये फसलों की आसानी से आनलाइन खरीद और बिक्री कर रहे हैं। वर्तमान समय में उनका पांच वर्ष पहले लगाया गया कटहल का बाग तैयार हो गया है। साढ़े चार एकड़ में केला लगा है। मूंग और उड़द की फसल भी तैयार हो चुकी है। प्रति वर्ष 20 लाख रूपये सालाना उपज से प्राप्त कर रहे हैं। किसानों को भी वह पेस्टीसाइड के प्रयोग से जहरीली हो रही परंपरागत खेती से अलग हटकर खेती करने को प्रोत्साहित कर रहे हैं। एफपीओ का मिल रहा बेहद फायदा सेवा नाम से उन्होंने एफपीओ (फार्मर प्रोड्यूसर कंपनी) बनाई है। वह बताते हैं इससे जुड़े किसानों को कंपनी का बेहद फायदा मिलता है। किसानों को सब्सिडी पर कृषि यंत्र, महत्वाकांक्षी योजनाओं का लाभ आसानी से मिल रहा है। उनके उत्पाद भी आपसी सहयोग से दिल्ली सहित कई प्रदेशों में बिक्री हो जाते हैं। मधुमेह की तरफ है उनका रूझान उद्यान और जैविक खेती के जरिये उनका रूझान तेजी से बढ़ रही मधुमेह की बीमारी पर अंकुश लगाने में सहयोग करने का भी है। वह बताते हैं कि जिस काला धान का उत्पादन कर रहे हैं उसका चावल मधुमेह रोगी खा सकता है। इसके अलावा कटहल की खेती उन्होंने शुरू की है जिसका वह आटा बनाकर बिक्री करेंगे। मधुमेह रोगियों के लिए कटहल का आटा बेहद लाभकारी होता है। मशरूम और ब्रोकली की भी करते हैं खेती पिछले कई सालों से किसान पुष्पजीत सिंह ठंड की सीजन में ब्रोकली और मशरूम की खेती करते चले आ रहे हैं। ब्रोकली को लखनऊ के उच्च स्तरीय होटलों में बिक्री करते हैं। मशरूम को भी वह कभी भी मंडी और बाजार में बिक्री नहीं करते। उसे बैंक्विट हाल में बिक्री करते हैं। इससे उन्हें सही दाम मिल जाता है। तैयार करते हैं जैविक खाद जैविक और उद्यान खेती में प्रयोग करने के लिए वह जैविक खाद तैयार कर उसकी बुवाई करते हैं। इसके लिए कुछ दूर पर स्थित गौशाला से गायों का गोबर, गोमूत्र लाकर अपने फार्म पर ही खाद बनाते हैं। उसी का प्रयोग फसलों में करते हैं। परंपरागत खेती से जैविक और उद्यान खेती में लागत बेहद कम आती है। मुनाफा ज्यादा होता है। काला धान लगाने की तैयारी पुष्पजीत सिंह बताते पिछले कई वर्षों से खेत में बेहद अलग किस्म का धान तैयार करते हैं। इसबार काला नमक नामक धानका बीज संत कबीर से मंगाया है। वह इस काला धान की साढ़े तीन एकड़ में रोपाई करेंगे। इस धान का चावल 250 रूपये किलो बिक्री होता है। इसका चावल शुगर फ्री है। इसको मधुमेह रोगी भी खा सकते हैं। यूपी राज्य जैविक प्रमाणीकरण से संबद्ध उनकी उद्यान और जैविक खेती उत्तर प्रदेश राज्य जैविक प्रमाणीकरण से संबद्ध है। प्रत्येक साल उन्हें इसका रिन्यूवल करना पड़ता है। इसके लिए वह फीस भी अदा करते हैं। वह बताते हैं कि सरकार की तरफ से उनके उत्पाद को बिक्री का प्लेटफार्म नहीं मिल पा रहा है। काला धान का उत्पादन तो वह करते हैं लेकिन उसकी बिक्री सरकारी नहीं हो पाती। पांच बार किए जा चुके हैं पुरस्कृत पुष्पजीत बताते हैं कि जिले में सबसे पहले उन्होंने एफपीओ बनाया था। साथ ही जैविक और उद्यान खेती भी शुरू की थी। इस क्षेत्र में सब्जी वाले केले की फसल होती थी। उन्होंने फ्रूड वाला केला तैयार किया। कई किसानों को प्रोत्साहित भी किया। पांच बार वह जिला स्तरीय कार्यक्रमों में पुरस्कृत हो चुके हैं। वह लगातार जैविक खेती को बढ़ावा देते रहेंगे।


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