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सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करना नैतिक कर्तव्य

पीलीभीतजेएनएन सार्वजनिक संपत्ति का स्वामित्व सरकार के हाथ में होता है। इसकी सारी गतिविधियों का संचालन सरकार करती है। प्राथमिक उद्देश्य ही जनता की सेवा है। सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करना सिर्फ सरकार ही नहीं बल्कि प्रत्येक नागरिक का नैतिक दायित्व है। सार्वजनिक संपत्ति किसी प्रतिस्पर्धा से बहुत दूर रहकर सेवा प्रदान करती है।

By JagranEdited By: Published: Wed, 22 Sep 2021 11:58 PM (IST)Updated: Wed, 22 Sep 2021 11:58 PM (IST)
सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करना नैतिक कर्तव्य

पीलीभीत,जेएनएन : सार्वजनिक संपत्ति का स्वामित्व सरकार के हाथ में होता है। इसकी सारी गतिविधियों का संचालन सरकार करती है। प्राथमिक उद्देश्य ही जनता की सेवा है। सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा करना सिर्फ सरकार ही नहीं बल्कि प्रत्येक नागरिक का नैतिक दायित्व है। सार्वजनिक संपत्ति किसी प्रतिस्पर्धा से बहुत दूर रहकर सेवा प्रदान करती है। डाक सेवा, परिवहन सेवा, स्वास्थ्य सेवा, शिक्षा के क्षेत्र, विद्युत, सिचाई ,जल, खाद्य, दूरसंचार आदि की सेवाएं। अब प्रश्न यह है कि जब सार्वजनिक संपत्ति जनता की सेवा के लिए है तो जनता द्वारा इनका उपयोग किया जाना व इसकी सुरक्षा व सम्मान के लिए सरकार का मुंह देखना। सारा दायित्व सरकार पर छोड़ देना उचित नहीं है। सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाना कहीं न कहीं अपनी संपत्ति को समाप्त करने जैसा ही है। प्राय: प्रदर्शनों व आंदोलनों के दौरान सार्वजनिक संपत्ति को नुकसान पहुंचाने की प्रवृत्ति में बढ़ोतरी हुई है। प्रजातंत्र में ऐसी गतिविधियां यह सोचने पर मजबूर करती हैं कि यह प्रवृत्ति राष्ट्रहित है या राष्ट्रद्रोह। ऐसी परिस्थितियों में एक औपचारिक पुलिस रिपोर्ट अनजान भीड़ के नाम लिख दी जाती। जिससे सरकारी स्तर पर अपनी साख और खाल बचाना होता है न कि असामाजिक तत्वों को सजा देना। समय-समय पर उच्चतम न्यायालय ने कमेटी गठित कर प्रिवेंशन आफ डैमेज टू पब्लिक प्रॉपर्टी कानून 1984 को और प्रभावकारी व कठोर बनाने पर जोर दिया। सार्वजनिक संपत्ति की रक्षा के लिए अनेक कानून बनाए , जिसमें पांच वर्ष की सजा भी शामिल है। प्रश्न यह है कि क्या कानून व सरकार का नियंत्रण ही सार्वजनिक संपत्ति की सुरक्षा व्यवस्था के लिए पर्याप्त है। एक उदाहरण लेते हैं जब 2014 में मोदी जी प्रधानमंत्री बने तो उन्होंने सर्वप्रथम गंगा स्वच्छता अभियान की शुरुआत की। सामान्य नागरिकों का असहयोग उनमें जागरूकता का अभाव का परिणाम सभी के सामने है। इतना समय बीतने के बाद धन और सरकारी तंत्र का पर्याप्त उपयोग होने के बावजूद आज भी यह अभियान सफलता से दूर है जबकि कहा जाता है की गंगा हमारी मां और इसमें आस्था हमारे राष्ट्र प्रेम को दर्शाती है। राष्ट्रप्रेम के नाम पर राष्ट्र गान गाना व देश भक्ति गीत गाना ही काफी नहीं है। हमारे राष्ट्र की संपत्ति, सार्वजनिक संपत्ति के प्रति प्रेम भी राष्ट्रप्रेम है। प्राय: हम अपने अधिकारों की बात करते हैं। अधिकारों के लिए धरना-प्रदर्शन करते यह प्रतीत होता है कि हम अधिकारों के प्रति कितने सजग हैं। क्या वैसे ही हम अपने कर्तव्यों के प्रति भी सजग हैं। हमारे अपने मूल कर्तव्य जैसे भारत का संविधान, राष्ट्र ध्वज, राष्ट्रगान का सम्मान करना भारत की प्रभुता एकता व अखंडता की रक्षा करना उसी प्रकार हमें हर हाल में सार्वजनिक संपत्ति को सुरक्षित रखना और उसे नुकसान पहुंचाने से रोकना भी हमारा मूल कर्तव्य है। प्रत्येक नागरिक को अपने मूल कर्तव्यों का ज्ञान होना अति आवश्यक होता है तभी हम जागरूक बनेंगे औरों को बनाएंगे। जब हम सार्वजनिक संपत्ति को अपनी संपत्ति समझ कर उसका संरक्षण करेंगे, सही मायनों में हम राष्ट्रप्रेम करेंगे । यह सम्मान हमें विकासशील से विकसित की ओर ले जाएगा। हम स्वयं का सम्मान करें, दूसरों का सम्मान करें, अपनी संपत्ति का सम्मान करें, सार्वजनिक संपत्ति का सम्मान करें, हम नर है नारायण का सम्मान करें।

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-नीतू सिंह, शिक्षिका राजकीय बालिका इंटर कालेज पीलीभीत


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