आत्मसंयम से बुरी आदतों पर काबू पाना आसान
आत्मसंयम अर्थात मन को वश में करना इंद्रियों को वश में रखना। यह अत्यंत कठिन काम है परंतु जिसने भी अपने मन पर इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर ली वह कभी भी अपने पथ से नहीं भटक सकता। मनुष्य की पहचान उसके मन से होती है और मन की गति बहुत तीव्र होती है।
पीलीभीत,जेएनएन : आत्मसंयम अर्थात मन को वश में करना, इंद्रियों को वश में रखना। यह अत्यंत कठिन काम है परंतु जिसने भी अपने मन पर इंद्रियों पर विजय प्राप्त कर ली, वह कभी भी अपने पथ से नहीं भटक सकता। मनुष्य की पहचान उसके मन से होती है और मन की गति बहुत तीव्र होती है। मन पर नियंत्रण रखने वाला व्यक्ति आत्म-संयम के साथ जीवन सुख पूर्वक व्यतीत करता है, कितु जो मन पर काबू नहीं रख पाता, उसे भारी कष्ट उठाना पड़ता है
उदाहरण के लिए एक छात्र को ही लीजिए, अपनी पढ़ाई करते समय, कोर्स तैयार करते समय, परीक्षा की तैयारी करते समय यदि उसका मन इधर-उधर भागेगा तो उसका मन पढ़ाई में नहीं लगेगा और वह परीक्षा में अच्छे अंक लाने से वंचित रह जाएगा। बहुत से विद्यार्थी सब कुछ याद होते हुए भी परीक्षा में केवल इसलिए मात खा जाते हैं कि प्रश्न-पत्र देखते ही धैर्य खो बैठते हैं जल्दी-जल्दी प्रश्न पत्र करने के कारण आधा भूल जाते हैं या फिर गलत उत्तर लिख देते हैं, यदि पढ़ाई करते समय उन्हें मन पर, भावनाओं पर नियंत्रण रखना, धैर्य के साथ प्रश्न-पत्र को पढ़कर प्रश्नों को समझकर उनका उत्तर लिखने की शिक्षा दी जाए तो प्रदर्शन में बहुत सुधार हो सकता है।
इस प्रकार आत्म संयम का अर्थ हुआ धैर्य। जिस व्यक्ति में संयम, धैर्य या संकल्प नहीं, वह मृत व्यक्ति के समान है। ऐसा व्यक्ति जीवन भर विचार, भाव और इंद्रियों का गुलाम बनकर ही रहता है। धैर्य और संकल्प के अभाव में व्यक्ति के मन में क्रोध, भय, हिसा और व्याकुलता बनी रहती है, जिसके कारण उसकी जीवन शैली अनियंत्रित हो जाती है। संकल्प है तो संयत अर्थात धैर्य भी रखना जरूरी है। जब मन पूर्ण रूप से स्थिर व एकाग्र होता है, तब हम उसका प्रयोग सकारात्मक कार्यों में कर सकते हैं। क्रोध, ईष्या, द्वेष, लोभ, मोह, स्वार्थ- ये सब मन भटकाने के की कारण हैं। आत्मनियंत्रण से ही प्रबल इच्छा शक्ति उत्पन्न होती है। इस इच्छा शक्ति के कारण ही व्यक्ति प्रगति के पथ पर अग्रसर हो सकता है। संसार में कोई भी नियम बिना आत्म संयम के संभव नहीं। शारीरिक संयम भी उसकी सहायता के बिना नहीं चल सकता। हम आवेश में आकर कार्य तो शुरू कर सकते हैं, लेकिन अन्तिम सीढी आत्म संयम ही है, जिसके द्वारा ही लक्ष्य को प्राप्त कर सकते हैं।
यदि कोई कहे कि मैं चाय के बिना नहीं रह सकता। सुनने में हास्यास्पद लगता है कि मानव ने इस छोटी-छोटी वस्तुओं का अपने को दास बना लिया, क्योंकि उसका अपनी इंद्रियों पर नियंत्रण नहीं है। उसमें आत्म बल नहीं है, आत्म संयम नहीं है। नित्य प्रति अनेक ऐसी घटनाएं देखने व सुनने को मिलती है कि अमुक व्यक्ति ने आत्महत्या कर ली, अमुक ने आग लगा ली। इसका कारण भी आत्म संयम की कमी ही है। परिस्थितियां किसी के भी सामने आ सकती हैं। यदि मनुष्य उन परिस्थितियों में सोच समझकर तथा ²ढता से काम लें, तो उपरोक्त घटनाएं ही न घटें। हम इंद्रियों के वशीभूत रहकर स्वयं उन्नति में बाधक बन जाते हैं। हमारी कितनी ही छोटी से छोटी कमजोरियां जीवन को भ्रष्ट कर नाश करने में उतनी ही सफल हो जाती हैं, जैसे बडे़ जहाज को डुबोने के लिए एक छोटा सा छेद।
निश्चित रूप से मन को वश में करना बहुत कठिन है, किंतु यह भी सत्य है कि वैराग्य के अभ्यास के द्वारा ऐसा किया जा सकता है। अकारण ही अस्थिरता के कारण मन चंचल होता है और इधर उधर भागता है, किंतु आत्मसंयम के माध्यम से इसे वश में किया जा सकता है। कठिनाई के समय ही आत्म संयम की परीक्षा है और उस समय अभ्यासी ही विजयी होते हैं। आत्म संयम के लिए निरन्तर प्रयत्न करना चाहिए , ताकि अपनी बुराइयों, कमजोरियों और बुरी आदतों पर काबू पाया जा सके।
- सुनीता मित्तल, उप प्रधानाचार्य कैम स्कॉलर्स विद्यालय, बीसलपुर