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सहानुभूति 21वीं सदी का सबसे महत्वपूर्ण कौशल

सहानुभूति ईश्वरीय गुण है। जब हम दूसरों के जज्बातों की कद्र करना जान जाते हैं तो ये सहानुभूति का सबसे अच्छा रूप माना जाएगा। सहानुभूति इस दुनिया में जिम्मेदार और दूसरों के काम आने वाले इंसान लिए महत्वपूर्ण है। यह निश्चित रूप से प्रत्येक बच्चे में महत्वपूर्ण है जो एक दिन दुनिया में एक अच्छे व्यक्ति के रूप में बड़ा होकर अपने परिवार का नाम रोशन करे। अगर बड़े बच्चों की गलती पर दंडात्मक कारवाई न कर उसका कारण जानकर सहानुभूति पूर्वक पेश आने से बच्चे के सर्वांगीण विकास में सहायक होगा।

By JagranEdited By: Published: Wed, 16 Sep 2020 11:09 PM (IST)Updated: Wed, 16 Sep 2020 11:09 PM (IST)
सहानुभूति 21वीं सदी का सबसे महत्वपूर्ण कौशल
सहानुभूति 21वीं सदी का सबसे महत्वपूर्ण कौशल

जासं, पीलीभीत : सहानुभूति ईश्वरीय गुण है। जब हम दूसरों के जज्बातों की कद्र करना जान जाते हैं तो ये सहानुभूति का सबसे अच्छा रूप माना जाएगा। सहानुभूति इस दुनिया में जिम्मेदार और दूसरों के काम आने वाले इंसान लिए महत्वपूर्ण है। यह निश्चित रूप से प्रत्येक बच्चे में महत्वपूर्ण है जो एक दिन दुनिया में एक अच्छे व्यक्ति के रूप में बड़ा होकर अपने परिवार का नाम रोशन करे। अगर बड़े बच्चों की गलती पर दंडात्मक कारवाई न कर उसका कारण जानकर सहानुभूति पूर्वक पेश आने से बच्चे के सर्वांगीण विकास में सहायक होगा।

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हालांकि स्कूल स्तर पर हमारी शिक्षा व्यवस्था इस पर कोई खास •ाोर नहीं देती। एक रिपोर्ट कार्ड में गणित, विज्ञान, अंग्रेजी, सामाजिक विज्ञान या हिदी के साथ सहानुभूति या दया वाले कोई रिमार्क का कोई महत्व है,लेकिन फिर भी देश का जिम्मेदार नागरिक बनाने में इसकी महत्ता को कमतर नहीं आंका जाना चाहिए। हम चाहे समाज में हर एक ची•ा से मालामाल क्यों न हों लेकिन सहानुभूति की •ारूरत कई मौकों पर हमें हिम्मत देती है।

चूंकि हम सामाजिक हैं इसलिए एक दूसरे पर निर्भर हैं। कोविड -19 महामारी ने करोड़ों लोगों को हर तऱीके से प्रभावित किया है,इसलिए यह हमारी जिम्मेदारी और कर्तव्य है कि हम अपने बच्चों को अन्य व्यक्तियों के प्रति विनम्रता और मदद करने वाला बनाएं। छात्रों में अच्छे मूल्यों को विकसित करने के लिए उन्हें शिक्षक और माता-पिता के रूप में अच्छे रोल मॉडल की आवश्यकता होती है। बच्चे परिवारों से बहुत कुछ सीखते हैं शिक्षक उसको तराशने का काम करता है। एक बच्चा शिक्षकों, माता-पिता और साथियों को देख कर अनुसरण करता है। अगर मां-बाप और शिक्षक बच्चे में ये गुण डालना चाहते हैं तो खुद रोल मॉडल बनना पड़ेगा। बच्चा जब हमे किसी गरीब की मदद करते देखता है तो उसके अंदर सहानुभूति जैसे गुण का विकास होना तय है। अक्सर लोग नौकरों से डांट डपट और अभद्रता से पेश आते हैं या फिर रिक्शावाला हो या म•ादूर उससे किया गया हमारा सुलूक बच्चे के दिलों दिमाग पर गहरा असर छोड़ता है। जब शिक्षक दिखाते हैं कि वे स्कूल में हर बच्चे की परवाह करते हैं और छात्रों से भी ऐसा ही करने की अपेक्षा करते हैं, इसका परिणाम सकारात्मक ही आता है।

किसी भिखारी या परेशान हाल आदमी को देख हमे उससे सहानुभूति तो होती है लेकिन •ामीन पर उसके किसी काम न आना भी बेकार है। शिक्षक युवाओं का मार्गदर्शन करता है। इस प्रकार स्कूल में शिक्षक छात्रों के चरित्र का निर्माण कर सकते हैं और उन्हें किसी अन्य व्यक्ति के ²ष्टिकोण से स्थिति को देखने में मदद कर सकते हैं, भावनात्मक और सामाजिक कौशल को बढ़ावा दे सकते हैं। मतभेदों का सम्मान करना सीखा सकते हैं। छात्रों को सहानुभूतिपूर्ण और दयालु बनाने के लिए हमें आवश्यकता है।

हमें यह सुनिश्चित करना होगा कि हमारे छात्रों के जीवन का सार्थक हिस्सा बनने के लिए करुणा, सहानुभूति और समझ हो। हम अपने छात्रों को बाहरी प्रभावों से अनदेखा या पूरी तरह से सुरक्षित नहीं रख सकते - चाहे तस्वीर कितनी भी बदसूरत हो। शिक्षकों के पास कोविड-19 जैसी मुश्किल घड़ी में बच्चों में समाजसेवा की भावना जगानी पड़ेगी।

हम एक ऐसे युग में रह रहे हैं, जहां हम अपने व्यक्तिगत जीवन को सोशल मीडिया पर शेयर कर लेते हैं, पर यह ध्यान रहे कि मर्यादा के अंदर सोशल मीडिया का इस्तेमाल किया जाना चाहिए सही बॉडी लैंग्वेज या व्यवहार •ारूरत के हिसाब से अपने बच्चों को सीखाना चाहिए।

सहानुभूति एक दो-तरफा सड़क है जिसमें कई ची•ाों के बीच सहयोग और समझौते की आवश्यकता है। दयालुता, सहानुभूति का इ•ाहार करना अपना गुणगान करने के लिए नहीं है। बल्कि चरित्र को विकसित करने वाले ²ष्टिकोणों और विश्वास के बारे में है। शिक्षक कक्षा में दया का पाठ पढ़ा सकता है लेकिन इसका असर •ामीन पर दिखे तब ये सार्थक हो। आपको खुद से पूछना चाहिए कि आपके दिन का सबसे कठिन हिस्सा क्या था। क्या आपका कोई ऐसा मित्र है जिसका आप विशेष रूप से सम्मान करते हैं अगर हाँ तो क्यों। शिक्षकों के रूप में हमारा पहला और महत्वपूर्ण काम यह सुनिश्चित करना है कि हमारे छात्र दुनिया में हर ऐतबार से सफल होने के लिए तैयार रहें। विज्ञान और गणित जैसे मुख्य विषयों को सीखने के साथ अगर करुणा और दया का भाव नहीं है तो की जाने वाली पढ़ाई का असल म़कसद पूरा नहीं होता। छात्रों को पता चलता है कि जब वे लोगों के साथ असभ्य या निर्दयी तरीके से पेश आते हैं तो इसका स्थायी प्रभाव पड़ता है।

छात्र यह भी सीखते हैं कि उनके पास हर स्थिति में दो विकल्प हैं- देखभाल और चिता की पेशकश करना या एक दूसरे को अलग कर लेना। अंत में यह कह सकते हैं कि सहानुभूति या करुणा 21 वीं सदी के सबसे महत्वपूर्ण कौशल में से एक है।

इन बातों पर दें ध्यान

1-छात्रों की व्यक्तिगत समस्याओं से रूबरू होना बहुत •ारूरी होता है।

2-खराब भाषा, टूट कर बोलना या आत्मकेंद्रित होने की हालत में उनकी कॉउंसलिग कराना •ारूरी है।

3-केवल सकारात्मक, आनंदित और प्रशंसात्मक भाषा बोलने से छात्रों में इन गुणों का विकास होगा। माता-पिता या अध्यापकों को झुंझलाहट त्यागना पड़ेगा।

4-स्कूल परिवार में अच्छी और स्वस्थ व्यवस्था कायम करने के लिए जिम्मेदार रवैया अपनाने के लिए विद्यार्थी परिषद (छात्र कैबिनेट) का मार्गदर्शन होना चाहिए।

5-टकराव होने पर न्याय बगैर किसी पक्षपात के हो।

6-स्कूल का माहौल विद्यार्थियों पर बड़ा असर डालता है।

7- सबसे महत्वपूर्ण समस्याओं पर ध्यान देना चाहिए। न•ारअंदा•ा न करते हुए गलती करने पर नकारात्मक छवि न बनने देना चाहिए।

8-शिक्षकों को क्षमताओं के विपरीत जोर देने, तुलना करने, दूसरों को पराजित करने जैसी गलाकाट प्रतिस्पर्धा से बचाना चाहिए। ये सब सहानुभूति जैसे गुण के विकास में सबसे बड़ा अवरोधक है।

9-स्कूल के बेहतर वातावरण को बनाने में दंडात्मक कार्रवाई से बचना चाहिए और उनके अच्छे कार्यों को स्कूल डायरी में लिखना चाहिए। -सिस्टर अंजलि सीजे, प्रधानाचार्या सेंट जोसफ स्कूल पूरनपुर पीलीभीत


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