हुनर से उकेरीं किस्मत की नई लकीरें
हाथों में लकीरें तो उसके भी थीं, लेकिन मुफलिसी और अभावों के अलावा बहुत कुछ नहीं मिला।
पीलीभीत : हाथों में लकीरें तो उसके भी थीं, लेकिन मुफलिसी और अभावों के अलावा बहुत कुछ नहीं मिला था। उसने उन्हीं हाथों को हुनर से भरा, संघर्ष किया और कुरेद डालीं किस्मत की नई लकीरें। सिलाई, कढ़ाई, जरी के काम में मेहनत कर परिवार की आर्थिक रीढ़ बनी शमीम बी। अपने जैसी लड़कियों को हुनरमंद बनाकर उनमें स्वरोजगार की प्रेरणा भी भर रही हैं।
जिले के माधोटांडा क्षेत्र की निवासी शमीम बी नफीस खां की मझली बेटी हैं। पिता बैब घास के बान बनाकर बेचते थे। बमुश्किल घर का खर्च चल पाता था। घर की जरूरतों के कारण शमीम बहुत ज्यादा पढ़ नहीं सकीं। उसने पढ़ाई की कमी को अपनी कमजोरी नहीं बनने दिया। इसे हुनर से पूरा किया। पारिवारिक बान का काम, साड़ियों की कढ़ाई करनी हो या हाथों पर मेहंदी लगानी हो, उसने सीखा। धीरे-धीरे लोगों ने हुनर को पहचाना। सराहा। काम मिलने लगा तो पैसे भी मिलने लगे। अब परिवार के लिए बेटी नहीं, बल्कि बेटा है तो छोटे भाई-बहनों के लिए अभिभावक की तरह।
हिन्दू हो या मुस्लिम परिवार शमीम की अपनी पहचान
इसे हुनर की पहचान कहें या कौमी एकता का जरिया। डिजाइनर मेहंदी लगाने की बात हो तो क्षेत्र में लोग हिन्दू-मुस्लिम का भेद भूलकर शमीम बी को याद करते हैं। उनकी लगाई मेहंदी किसी फैशन डिजाइनर से कम नहीं लगती। जरी जरदोजी के काम में भी शमीम को महारत हासिल है।
भरी स्वरोजगार की प्रेरणा
परिवार की आर्थिक रीढ़ बनी शमीम अब अन्य लड़कियों, महिलाओं को भी प्रशिक्षण देती हैं। दर्जनों लड़कियों को हुनरमंद बना चुकी हैं। वह भी निश्शुल्क। खुद ही उनके लिए संसाधन, किट आदि का भी प्रबंध करती हैं, ताकि जिन अभावों में उसने दिन गुजारे उनका सामना किसी अन्य बेटी को न करना पड़े। ख्वाहिश है कि बहनें व भाई पढ़कर कामयाब इंसान बनें।