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नहीं हारी हिम्मत, हौसले से आत्मनिर्भर बनीं राखी

पीलीभीतजेएनएन वह बाल्यकाल में एक गंभीर बीमारी से जूझ रही थीं। डाक्टर ने उनके लिए कह दिया था कि अगर पढ़ाई करेंगी तो जिदगी खतरे में पड़ जाएगी। इलाज के दौरान डाक्टर की सख्त सलाह थी कि पढ़ाई बंद करा दी जाए और केवल आराम करने दिया जाए लेकिन उनका पढ़ाई के लिए जुनून बीमारी पर भारी था। माता-पिता ने कठिन समय में साथ दिया और आज वह माता-पिता के अभिमान में नित्य वृद्धि कर रही हैं। यह कहानी है उपाधि स्नातकोत्तर महाविद्यालय की पहली महिला चीफ प्राक्टर व संस्कृत विषय की सहायक प्रवक्ता डा. राखी मिश्रा की।

By JagranEdited By: Published: Thu, 07 Oct 2021 12:13 AM (IST)Updated: Thu, 07 Oct 2021 12:13 AM (IST)
नहीं हारी हिम्मत, हौसले से आत्मनिर्भर बनीं राखी
नहीं हारी हिम्मत, हौसले से आत्मनिर्भर बनीं राखी

पीलीभीत,जेएनएन: वह बाल्यकाल में एक गंभीर बीमारी से जूझ रही थीं। डाक्टर ने उनके लिए कह दिया था कि अगर पढ़ाई करेंगी तो जिदगी खतरे में पड़ जाएगी। इलाज के दौरान डाक्टर की सख्त सलाह थी कि पढ़ाई बंद करा दी जाए और केवल आराम करने दिया जाए लेकिन उनका पढ़ाई के लिए जुनून बीमारी पर भारी था। माता-पिता ने कठिन समय में साथ दिया और आज वह माता-पिता के अभिमान में नित्य वृद्धि कर रही हैं। यह कहानी है उपाधि स्नातकोत्तर महाविद्यालय की पहली महिला चीफ प्राक्टर व संस्कृत विषय की सहायक प्रवक्ता डा. राखी मिश्रा की। जिन्होंने जज्बे, जुनून और परिश्रम से मेडिकल साइंस की भविष्यवाणी को गलत साबित कर ²ढ़तापूर्वक अपनी जिदगी को प्रेरक बनाया है।

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पूरनपुर में जन्मीं राखी मिश्रा शुरू से मेधावी छात्रा थीं। पिता डा. गजेंद्र स्वरूप मिश्र पढ़ाई के लिए सदैव प्रेरणा देते थे। माता मंजू मिश्रा अपने समय में बरेली कालेज की गोल्ड मेडलिस्ट रही थीं। घर में पढ़ाई का अच्छा माहौल था हालांकि आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी नहीं थी। राखी ने कक्षा आठ तक की शिक्षा सरस्वती विद्या मंदिर पूरनपुर से प्राप्त की। बेहतर पढ़ाई के लिए राजस्थान स्थित वनस्थली विद्यापीठ में प्रवेश लिया। कक्षा नौ से लेकर बीएससी (प्रथम वर्ष) तक वनस्थली विद्यापीठ में अध्ययन करने के दौरान अचानक उन्हें वापस आना पड़ा। ब्रेन में क्लाट के कारण हो जाती थीं बेहोश: राखी को कक्षा छह से ही अचानक बेहोश होने की समस्या थी। हालांकि यह तेज धूप में या कभी-कभार होता था तो इतना अधिक ध्यान नहीं दिया। वनस्थली में पढ़ाई के दौरान यह समस्या काफी बढ़ गई। जांच हुई तो राखी के ब्रेन में क्लाट पाया गया जिस कारण वह बेहोश हो जाया करती थीं। डाक्टर ने पढ़ाई छोड़ने की सलाह दी जिस कारण उन्हें वनस्थली छोड़कर घर आना पड़ा। राखी ने पढ़ने की जिद की तो डाक्टर ने उनके पिता से कह दिया- अगर पढ़ाई करेगी तो मर जाएगी। माता-पिता ने बढ़ाया हौसला: डाक्टर की सख्त चेतावनी के बावजूद राखी के पिता ने पढ़ाई जारी रखने की अनुमति दी। उन्होंने कहा कि अगर वह पढ़ना चाहती है तो जरूर पढ़ेगी। राखी का प्रवेश उपाधि महाविद्यालय में बीए कक्षा में हो गया। तबीयत खराब रहने व गंभीर समस्या होने के बाद भी राखी प्रतिदिन पूरनपुर से शहर स्थित कालेज आया करती थीं। इस दौरान माता-पिता के अलावा उनके सहयात्रियों का पूरा सहयोग मिला। पढ़ाई का क्षेत्र बदला, कितु इरादे नहीं: राखी बीमारी को पराजित करने के साथ-साथ अपने करियर को बेहतर बनाने की तरफ आगे बढ़ चुकी थीं। विज्ञान वर्ग से कला वर्ग में आने के बाद भी उनके इरादे नहीं बदले। बीए उत्तीर्ण होने के बाद परास्नातक के लिए बरेली कालेज में प्रवेश लिया। वहीं से अपना शोध प्रारंभ किया और राघवेंद्र महाकाव्य का समीक्षात्मक अध्ययन किया। इसके बाद वह डा. राखी मिश्रा के नाम से पहचानी जाने लगीं। इवनिग क्लास से चीफ प्राक्टर तक का सफर: वर्ष 2000 में राखी ने अपने शिक्षण कार्य का प्रारंभ किया। उपाधि महाविद्यालय की सांध्यकालीन कक्षाओं से शुरू हुआ सफर आज उन्हें कालेज की पहली महिला चीफ प्राक्टर तक ले आया है। इस दौरान वह कालेज में अनुशासन व शैक्षिक गतिविधियों के विकास के लिए प्रयासरत हैं। छात्राओं को मिशन शक्ति के माध्यम से आत्मनिर्भर बनने के गुर सिखा रही हैं। इनसेट--

घुड़सवारी से लेकर राइफल चलाने तक में सक्षम

डा. राखी बताती हैं कि उनके पिता ने आत्मनिर्भर बनने पर हमेशा बल दिया। शुरुआत से उनकी व बड़ी बहन जो पीसीएस अधिकारी हैं, दोनों की शिक्षा से लेकर व्यक्तित्व विकास में पिता ने महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। राखी ने बताया कि उनके पिता खेत में ले जाकर राइफल व रिवाल्वर से निशाना लगाना सिखाते थे। शुरुआत में झटका लगने पर हाथ में दर्द होता था लेकिन पापा ने कहा कि तुमको करना है। जब वनस्थली गई तो वहां घुड़सवारी व नृत्य सीखा। राखी के मुताबिक उनके पिता का हमेशा मानना रहा कि लड़कियों को सब कुछ आना चाहिए। उन्हें पैरों पर खड़ा होना चाहिए। यही सीख विद्यार्थियों को देती हूं।


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