फसल अवशिष्ट प्रबंधन को मिलेगी मदद
तराई के जिले में विभिन्न तरह की फसलों के अवशिष्ट खेतों में जलाए जाने से होने वाले नुकसान से बचाव के लिए अब जिला प्रशासन ने मनरेगा से मदद का प्रावधान किया है। मनरेगा के माध्यम से नरई प्रबंधन पर प्रति एकड़ 3640 रुपये तथा पताई के लिए 2548 खर्च किए जाएंगे।
जागरण संवाददाता, पीलीभीत : तराई के जिले में विभिन्न तरह की फसलों के अवशिष्ट खेतों में जलाए जाने से होने वाले नुकसान से बचाव के लिए अब जिला प्रशासन ने मनरेगा से मदद का प्रावधान किया है। मनरेगा के माध्यम से नरई प्रबंधन पर प्रति एकड़ 3640 रुपये तथा पताई के लिए 2548 खर्च किए जाएंगे। फसल अवशिष्ट प्रबंधन का कार्य किसानों के खेतों पर ही गड्ढा बनाकर मनरेगा के श्रमिक करेंगे। इससे किसानों को दोहरा फायदा होगा। एक तो उन्हें मुफ्त में जैविक खाद प्राप्त हो जाएगी और दूसरे खेतों की उर्वरा शक्ति भी क्षीण नहीं होगी।
जिलाधिकारी वैभव श्रीवास्तव के अनुसार धान, गेहूं व गन्ना तीनों फसलों के अवशिष्ट का प्रबंधन मनरेगा के माध्यम से सुनिश्चित कराया जाएगा। इसके लिए योजना तैयार कर ली गई है। योजना के अंतर्गत किसान अपने खेत में व्यक्तिगत गड्ढा तैयार कर फसल के अवशिष्ट को जैविक खाद में बदल सकेंगे। इसके लिए वेस्ट डी कंपोजर व पूसा डी कंपोजर कैप्सूल व घोल भी किसानों को मनरेगा के तहत दिया जाएगा। इस योजना के तहत प्रति एकड़ धान की पराली एवं गेहूं की नरई के प्रबंधन पर मनरेगा से 3640 रुपये व गन्ना की पताई के लिए 2548 रुपये श्रमांश के रूप में मनरेगा के जॉबकार्ड धारक श्रमिकों को देय होगा। डीएम ने सभी किसानों से आग्रह किया कि वे अपने ग्राम प्रधान, ग्राम पंचायत सचिव व खंड विकास अधिकारी से संपर्क करके इस योजना का लाभ उठाएं। उन्होंने ग्राम प्रधानों से भी अपील की कि अपने अपने गांवों में किसानों को योजना की जानकारी देकर कृषि अवशिष्ट जलाने की घटना न होने दें। ऐसे होगा फसल अवशिष्ट प्रबंधन
पूसा डी कम्पोजर कैप्सूल भारतीय कृषि अनुसंधान संस्थान दिल्ली ने विकसित कर उपलब्ध कराया है। 5 लीटर पानी में 150 ग्राम गुड व 50 ग्राम बेसन में कैप्सूल की किट डालकर सात दिन में घोल तैयार हो जाता है। तैयार घोल के 5 लीटर का छिड़काव कर डेढ टन कृषि अवशेष को जैविक खाद के रूप में परिवर्तित कर सकते हैं। इसके साथ ही साथ किसान वेस्ट डी कंपोजर नामक दवाई के उपयोग के माध्यम से भी पराली/पताई का उचित प्रबंधन कर सकते हैं।वेस्ट डी कम्पोजर के माध्यम से 200 लीटर पानी में 2 किलो गुड के घोल तैयार कर उसमें वेस्ट डी कंपोजर को मिलकर 5 से 7 दिन रखने पर प्रयोग केलिए तैयार हो जाता है। जिसके द्वारा कई एकड की पराली/पताई को जैविक खाद के रूप में परिवर्तित किया जा सकेगा। फोटो-11पीआइएलपी-26
कृषि के अवशिष्ट जलाने से प्रदूषण तो बढ़ता ही है। इसके साथ साथ खेतों की मिट्टी में मौजूद मित्र कीट जलकर नष्ट हो जाते हैं। साथ ही सूक्ष्म पोषक तत्वों की भी कमी हो जाती है, जो अगली फसलों के लिए नुकसानदेह है। ऐसे में पराली, नरई और पतेल के प्रबंधन को मनरेगा से जोड़ दिया गया है। किसानों पर कोई आर्थिक बोझ नहीं पड़ेगा बल्कि फसलों के अवशिष्ट से उन्हें जैविक खाद प्राप्त होगी। खेतों की उर्वरा शक्ति बढ़ेगी।
-वैभव श्रीवास्तव, जिलाधिकारी