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मिशन कायाकल्प से परिषदीय स्कूलों की बदली तस्वीर

एक समय ऐसा भी रहा जब गांव के सरकारी स्कूल भवन प्राय बदहाल थे। ऐसे में बच्चों को स्कूलों से भावनात्मक रूप से कोई लगाव नहीं होता था। प्राय वे नियमित रूप से स्कूल जाने में भी आनाकानी करने लगते। ऐसे में उनकी शिक्षा प्रभावित होने लगती मगर अब तस्वीर बदल चुकी है। बेसिक शिक्षा परिषद की ओर से बच्चों को स्कूल के प्रति आकर्षित करने के लिए गांव में सबसे अच्छा भवन स्कूल ही दिखने लगे हैं।

By JagranEdited By: Published: Wed, 24 Feb 2021 10:37 PM (IST)Updated: Wed, 24 Feb 2021 10:37 PM (IST)
मिशन कायाकल्प से परिषदीय स्कूलों की बदली तस्वीर
मिशन कायाकल्प से परिषदीय स्कूलों की बदली तस्वीर

पीलीभीत,जेएनएन : एक समय ऐसा भी रहा, जब गांव के सरकारी स्कूल भवन प्राय: बदहाल थे। ऐसे में बच्चों को स्कूलों से भावनात्मक रूप से कोई लगाव नहीं होता था। प्राय: वे नियमित रूप से स्कूल जाने में भी आनाकानी करने लगते। ऐसे में उनकी शिक्षा प्रभावित होने लगती, मगर अब तस्वीर बदल चुकी है। बेसिक शिक्षा परिषद की ओर से बच्चों को स्कूल के प्रति आकर्षित करने के लिए गांव में सबसे अच्छा भवन स्कूल ही दिखने लगे हैं। जिले के दर्जनों गांवों में सिर्फ कुछ ही स्कूल भवन ही ऐसे हैं,जो सबसे ज्यादा सुंदर दिख रहे हैं।

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बेसिक शिक्षा परिषद के स्कूलों पर सरकार हर साल भारी बजट खर्च करती है। इन स्कूलों में पढ़ने वाले बच्चों को मध्याह्न भोजन, निश्शुल्क पाठ्य पुस्तकें, जूते-मोजे, यूनिफार्म, स्कूल बैग प्रदान करने की व्यवस्था वर्षों से लागू है, इसके बावजूद बच्चों के नियमित रूप से स्कूल न पहुंचने की समस्या प्राय: आती रही है। ऐसे में योजनाबद्ध ढंग से स्कूल भवन को आकर्षक बनाने के लिए मिशन कायाकल्प शुरू हुआ। कई प्रधानाध्यापकों ने तो कंपोजिट ग्रांट की धनराशि स्कूलों को आकर्षक बनाने में व्यय करने के साथ ही कई तरह की सुविधाएं स्वयं के खर्च पर जुटाई। परिणाम यह रहा कि स्कूलों की बदहाली दूर होने लगी। पिछले दिनों जिलाधिकारी पुलकित खरे ने मिशन कायाकल्प के प्रति निजी रुचि दिखाई। लगातार समीक्षा की। मिशन कायाकल्प के तहत पहले सर्वे कराया गया कि स्कूलों को किन किन सुविधाओं की आवश्यकता है, इसके बाद तेजी से कार्य शुरू कराए। उन कार्यों की मानीटरिग के लिए कंट्रोल रूम स्थापित कराया गया। परिणाम भी बेहतर आए हैं। जिले में 1760 स्कूलों का कायाकल्प होना था, इनमें से अब तक 1604 का पूरी तरह से कायाकल्प हो चुका है। अब ये सभी स्कूल काफी आकर्षक नजर आने लगे हैं। अनेक स्कूल तो कान्वेंट स्कूलों की व्यवस्थाओं को मात देते प्रतीत हो रहे। गांव में घुसते ही स्कूल को देखकर ऐसा लगने लगता है कि इससे अच्छा अन्य कोई भवन वहां नहीं है। स्कूलों को आकर्षक बनाने के पीछे उद्देश्य यह है कि बच्चों का उससे भावनात्मक लगाव बढ़े। उन्हें ऐसा महसूस हो कि अपना स्कूल गांव का सबसे सुंदर भवन है। ऐसे में वे खुशी-खुशी प्रतिदिन स्कूल आने लगेंगे। इससे बच्चों की उपस्थिति बढ़ेगी। साथ ही शिक्षण में भी स्कूल का माहौल सहायक सिद्ध होगा जो स्कूल शेष बचे हैं, उन्हें भी जल्द ही भव्य बनाया जाएगा।

चंद्रकेश सिंह, जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी


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