भट्टा पारसौल आंदोलन में शामिल किसानों पर दर्ज दो मुकदमें वापस
भट्टा पारसौल आंदोलन में शामिल किसान पर दर्ज किए गए 20 मुकदमें में से दो मुकदमें प्रदेश सरकार की तरफ से वापस लिए गए है।
मुस्तकीम खान, दनकौर : भट्टा पारसौल आंदोलन में शामिल किसान पर दर्ज किए गए 20 मुकदमें में से दो मुकदमें प्रदेश सरकार की तरफ से वापस लिए गए है। भूमि अधिग्रहण आंदोलन को लेकर उत्तर प्रदेश समेत संपूर्ण भारत मे भट्टा-पारसौल कांड काफी दिनों तक चर्चा में रहा था। प्रशासन और ग्रामीणों के बीच हिसक हुए आंदोलन में दो पुलिसकर्मियों और दो किसानों की मौत हुई थी। सात मई 2011 को याद करके ग्रामीण आज भी सहम जाते हैं। किसान दो वर्ष तक जेल में भी रह चुके हैं। वापस हुए दोनों ही मुकदमें किसान नेता मनवीर तेवतिया समेत अन्य किसानों के खिलाफ दनकौर कोतवाली में दर्ज हुए थे।
योगी सरकार की तरफ से राज्यपाल आनंदीबेन पटेल को मुकदमें वापसी के भेजे गए प्रस्ताव पर मंजूरी मिल गई है। साथ ही सरकार ने लोक अभियोजक को मुकदमे वापस लेने की भी अनुमति दे दी है। वहीं अब भट्टा पारसौल, आछेपुर और मुतैना गांव के करीब 30 किसानों के खिलाफ अब केवल तीन मुकदमें बाकी हैं। कुछ मुकदमें पूर्व सरकार के दौरान भी वापस लिए गए थे।
विधायक धीरेंद्र सिंह के मुताबिक, सरकार ने भट्टा पारसौल आंदोलन से जुड़े किसानों के खिलाफ दर्ज किए गए मुकदमों में से दो मामले वापस ले लिए हैं। इनमें एक मुकदमा पीएसी के जवानों पर हमला करने और उनके हथियार लूटने के आरोप में दर्ज किया गया था। दूसरा मुकदमा हथियार रखने के आरोप में मनवीर तेवतिया और 30 अन्य किसानों के खिलाफ दर्ज किया गया था। सरकार के इस फैसले से चार गांवों के किसानों को बड़ी राहत मिली है।
---
यह था भट्टा पारसौल कांड
जमीन अधिग्रहण को लेकर किसान नेता मनवीर तेवतिया के नेतृत्व में भट्टा गांव में छह जनवरी से सैंकड़ों किसान धरना दे रहे थे। कई बार प्रशासन के उच्चाधिकारी किसानों के बीच पहुंचे और उनकी समस्याओं को सुनकर समाधान करने का आश्वासन दिया गया, लेकिन किसान संतुष्ट नही हुए। धरना करीब चार महीने तक चला। सात मई 2011 को यहां प्रशासन और किसानों के बीच जमकर हिसप झड़प हुई। दोनों तरफ से हुई गोलाबारी में दो पुलिसकर्मी और दो किसानों की मौत हो गई थी। किसानों के खिलाफ लूट, डकैती, अपहरण, बलवा, आगजनी, अवैध हथियारों का उपयोग, सरकारी कार्य में बाधा पहुंचाने, सरकारी कर्मचारियों पर हमला करने, हत्या का प्रयास और हत्या जैसे आरोपों में 20 मुकदमे दर्ज किए गए थे। आलम यह हुआ था कि करीब 50 वर्ष से कम आयु के व्यक्ति और युवा कुछ महीनों के लिए गांव से पलायन कर गए थे।
---
सात मई 2011 का वह भयावह मंजर आज भी याद आता है तो सहम जाता हूँ। अनुमान नहीं था कि जमीन अधिग्रहण को लेकर दिया गया धरना ऐसा रूप ले लेगा। प्रशासन द्वारा घरों में काफी तोड़फोड़ भी की गई थी और कई दिनों तक पशु भी भूखे-प्यासे बंधे रहे थे। इस कांड के बाद मुझे दो वर्ष तक जेल में रहना पड़ा।
नीरज मलिक, ग्रामीण पारसौल गांव
---
मैं सेना से सेवानिवृत्त हूं और उस समय छुट्टी पर गांव आया हुआ था। ग्रामीणों और प्रशासन में हुई हिसक झड़प के दौरान मुझे जानकारी नहीं हुई और अचानक लोगों को भागते हुए देखा। इसी दौरान घर मे घुसकर पुलिसकर्मियों द्वारा मुझ पर जमकर लाठियां बरसाई गई। सरकार द्वारा मुकदमें वापस लेने के फैसले का स्वागत करता हूँ।
राजकुमार शर्मा, ग्रामीण पारसौल
---
मेरा सपना था कि मेरा बेटा सीमा पर रहकर देश की सेवा करें, लेकिन हिसक झड़प होने के बाद पूरा परिवार बर्बाद हो गया। मेरे बेटे का चयन सेना में हो गया था उस दौरान उसे भी आरोपित बना दिया गया जिसके चलते उसकी भर्ती प्रक्रिया पूरी नहीं हो सकी। वर्तमान में वह बेरोजगार है।
-गजे सिंह, ग्रामीण भट्टा गांव