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.. छलकीं आंखें, कारसेवक बोले, अब टेंट में नहीं रहेंगे रामलला

यह न हार है न जीत । भगवान राम को रहने के लिए उनका घर मिला है और मुस्लिम भाइयों को इबादत के लिए नई जगह । सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्षों के साथ न्याय किया है। हां खुशी इस बात की है कि जिन रामलला को उनकी छत दिलाने के लिए हमने 27 साल तक तपस्या की उसका फल आज मिल गया है। हमारे रामलला अब टेंट में नहीं रहेंगे । यह कहना है उन कारसेवकों का जो वर्ष 1990 में रामजन्मभूमि आंदोलन में अपनी भूमिका निभाने के लिए घरों से तो निकले लेकिन अयोध्या पहुंचने से पहले ही उन्हें प्रशासन ने बीच रास्ते गिरफ्तार कर लिया था।

By JagranEdited By: Published: Sat, 09 Nov 2019 08:39 PM (IST)Updated: Sun, 10 Nov 2019 06:21 AM (IST)
.. छलकीं आंखें, कारसेवक बोले, अब टेंट में नहीं रहेंगे रामलला
.. छलकीं आंखें, कारसेवक बोले, अब टेंट में नहीं रहेंगे रामलला

जागरण संवाददाता, नोएडा :

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यह न हार है न जीत। भगवान राम को रहने के लिए उनका घर मिला है और मुस्लिम भाइयों को इबादत के लिए नई जगह। सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्षों के साथ न्याय किया है। हां खुशी इस बात की है कि जिन रामलला को उनकी छत दिलाने के लिए हमने 27 साल तक तपस्या की, उसका फल आज मिल गया है। हमारे रामलला अब टेंट में नहीं रहेंगे। यह कहना है उन कारसेवकों का जो वर्ष 1990 में रामजन्मभूमि आंदोलन में अपनी भूमिका निभाने के लिए घरों से तो निकले, लेकिन अयोध्या पहुंचने से पहले ही उन्हें प्रशासन ने बीच रास्ते में गिरफ्तार कर लिया था।

नोएडा के भंगेल निवासी राकेश राघव पुरानी यादों को ताजा करते हुए भावुक हो जाते हैं। राकेश के अनुसार 15 अक्टूबर 1990 को कारसेवकों को अयोध्या के लिए निकलना था। वह अपने साथी मनोज गुप्ता, अतर सिंह, राजवीर त्यागी और राजेश्वर त्यागी के साथ घर से निकलने की तैयारी ही कर रहे थे। तभी प्रशासन को इसकी भनक लग गई। हम चारों को घरों से ही उठाकर गिरफ्तार कर लिया गया। पुलिस पहले गाजियाबाद पुलिस लाइन लेकर गई और उसके बाद वहां से बसों में भरकर देवबंद भेज दिया गया। वहां दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री मदनलाल खुराना सहित तमाम बड़े नेता भी बंद थे, पुलिस ने अस्थायी जेल में रखा। मनोज गुप्ता कहते हैं कि उनके तीन साथी अतर सिंह, राजवीर और राजेश्वर इस दुनिया में नहीं हैं, लेकिन उनका संघर्ष आज सार्थक हो गया।

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करुणाशंकर 800 लोगों के साथ पैदल पहुंचे थे अयोध्या

सामाजिक समरसता नोएडा के संयोजक करुणाशंकर पाठक कहते हैं कि कारसेवा के लिए 800 लोगों को अयोध्या चलने के लिए चयनित किया गया। वह इनके साथ गाजियाबाद से ट्रेन द्वारा फैजाबाद के लिए निकले। सीतापुर में उन्हें रोक लिया गया। वहां से 100-200 लोगों को टुकड़ियों में बंटकर कच्चे रास्तों से हरदोई होते हुए लखनऊ और फिर वहां से फैजाबाद गए। रामलला की सेवा के लिए उन्होंने जो प्रयास किया था वह आज सुप्रीम कोर्ट ने रामलला को उनके सही स्थान का अधिकार दिलाकर पूरा कर दिया है। यह फैसला किसी को हराने या जीतने वाला नहीं आया है, बल्कि यह फैसला हिदू मुस्लिम के आपसी सद्भाव को बढ़ाने वाला रहा है। जो स्वागत योग्य है।


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