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अवैध वसूली में हिस्सा न मिलने से उठे बवंडर ने खोला काला चिठ्ठा

मनीष तिवारी, ग्रेटर नोएडा : पुलिस विभाग में एसओजी टीम द्वारा विशेष कार्रवाई का कोई बड़ा मामला भले ही

By JagranEdited By: Published: Fri, 18 May 2018 09:02 PM (IST)Updated: Fri, 18 May 2018 09:02 PM (IST)
अवैध वसूली में हिस्सा न मिलने से उठे बवंडर ने खोला काला चिठ्ठा
अवैध वसूली में हिस्सा न मिलने से उठे बवंडर ने खोला काला चिठ्ठा

मनीष तिवारी, ग्रेटर नोएडा : पुलिस विभाग में एसओजी टीम द्वारा विशेष कार्रवाई का कोई बड़ा मामला भले ही प्रकाश में न आया हो। लेकिन वर्दी की हनक दिखा लाखों रुपये की वसूली करने का बड़ा मामला प्रकाश में आ गया है। वायरल मैसेज से साफ हो गया है कि प्रतिमाह लाखों रुपये की वसूली हो रही है। जिसका हिस्सा अधिकारियों तक जाता था। डीजीपी कार्यालय पर पहुंची शिकायत के काले चिट्ठे के बाद वर्दी पर बड़ा दाग लग गया है। साथ ही लग्जरी कारों को लूटने वाले बदमाश श्रवण के एनकाउंटर पर भी सवाल खड़ा हो गया है।

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एसएसपी द्वारा टीम को भंग कर जांचकर कार्रवाई का दम भले ही भरा जा रहा हो, लेकिन वसूली की सच्चाई सामने आ चुकी है।

सच्चाई स्वयं विभाग के पुलिस जवान ने ही खोली है। इस कारण वसूली से न नुकुर का सवाल ही नहीं पैदा होता। यह भी स्पष्ट है कि वसूली सीमेंट, गैस एजेंसी, होटल आदि स्थानों से होती थी।

जिले में बड़े पैमाने पर होती है अवैध वसूली

सूत्रों की मानें तो वसूली का जो काला चिठ्ठा सामने आया है वह एक छोटा हिस्सा है। शराब की दुकानों, बाजार, अस्पताल, बैंक, ज्वेलर्स, पेट्रोल पंप, बड़ी एजेंसी संचालक, स्पा सेंटर, मसाज सेंटर व बीपीओ सहित अन्य स्थानों से भी वसूली होती थी। इन स्थानों से दस से पचास हजार रुपये महीने तक की वसूली होती थी। सरिया गिरोह व शराब के अवैध करोबार से होती है बड़ी उगाही

जिले में शराब का अवैध करोबार बड़े पैमाने पर चल रहा है। हरियाणा मार्का शराब जिले में बेची जा रही है। यमुना नदी के किनारे पड़ने वाले गांवों में अवैध शराब बनाई जाती है। उस पर हरियाणा मार्का का लोगो लगाकर सस्ती दर पर बेच दिया जाता है। इस गोरखधंधे में जिले के नामी बदमाश, राजनेता और पुलिसकर्मी शामिल हैं। इनके गठजोड़ से जनपद में यह धंधा खूब फल-फूल रहा है। ग्रामीण अवैध शराब बेचे जाने की शिकायत आए दिन पुलिस प्रशासन से करते रहते हैं, लेकिन हैरत की बात यह है कि अवैध शराब के कारोबार से जुड़े लोगों पर कोई कार्रवाई नहीं होती। वहीं निर्माणाधीन बिल्डर साइटों से सरिया चोरी होती है। इसमें भी नामी बदमाश शामिल हैं। पुलिस को भी इसका हिस्सा जाता है। खनन माफिया से भी है पुलिस का गठजोड़

जिले में यमुना और हरनंदी से बालू का अवैध खनन बड़े पैमाने पर होता है। इसके अलावा प्राधिकरण क्षेत्र में मिट्टी खनन भी किया जाता है। इस गोरखधंधे में शामिल लोगों से भी पुलिस का गठजोड़ है। ठेकेदार पर होता है वसूली का जिम्मा

अवैध वसूली का पूरा जिम्मा व हिसाब किताब एसओजी में एक जवान को दिया जाता है। जवान को विभाग में ठेकेदार बोला जाता है। ठेकेदार द्वारा विभिन्न प्रकार से दबाव बना लोगों से अवैध वसूली की जाती है। इस काम में नजर बचाकर ठेकेदार के द्वारा हर माह चोरी से मोटा मुनाफा कमा लिया जाता है। एसओजी के लिए लगाते हैं जुगाड़

थाने व चौकी में तैनाती के मुकाबले एसओजी में तनाव कम व छूट ज्यादा होती है। इस कारण जवानों की इच्छा एसओजी में जाने की होती है। जगह-जगह से वसूली का खेल भी खुलकर होता है। टीम में जाने के लिए जवान जगह-जगह से जुगाड़ लगाते हैं। सूत्रों की माने तो वर्तमान टीम में जितने जवान थे सभी को वरिष्ठ अधिकारियों या सफेदपोश का संरक्षण प्राप्त था। श्रवण एनकाउंटर पर भी उठे सवाल

खुलासे के बाद श्रवण एनकाउंटर पर भी सवाल उठ गया है। डीजीपी कार्यालय जो ट्वीट किया गया है उसमें लिखा गया है कि श्रवण का काम कराने वाले व्यक्ति को पचास हजार रुपये दिए गए। अभी पचास हजार रुपये और देने हैं। साथ ही यह भी लिखा है कि चालीस हजार रुपये में दो पिस्टल खरीदी गई। यह भी स्पष्ट है कि एसओजी के द्वारा अवैध हथियार भी खरीदे जाते हैं। लंबे समय से चल रहा वसूली का काम

सूत्रों की माने तो वसूली का काम लंबे समय से चल रहा है। वसूली का पैसा माह के अंत में सभी में बंटता है। इस पैसे से ही पुलिस विभाग के अधिकारियों के काम भी होते हैं। जिसमें उन्हें विभिन्न सुविधाएं मुहैया कराई जाती हैं। वसूली की जानकारी विभाग के सभी अधिकारियों को होती है। लेकिन सुविधा मिलने के कारण वह चुप रहते हैं। खर्चा अधिक होने से फंसा विवाद

वसूली का खेल लंबे समय से चल रहा था। अधिकारियों व विभागीय काम पर खर्च के बाद बचे पैसे का आपस में बंदरबाट हो जाता है। पिछले तीन माह से टीम के जवानों को वसूली में हिस्सा नहीं मिल पा रहा था। जिसका प्रमुख कारण था कि वसूली सीमित व विभागीय खर्च ज्यादा होने से पैसा नहीं बचा। टीम के बीच उठे बवंडर ने सारा राज खोल दिया। कुछ ने स्वीकारा, कुछ ने नकारा

वसूली का जो काला चिट्ठा डीजीपी कार्यालय भेजा गया है कि उसमें उन लोगों के मोबाइल नंबर भी लिखे हैं, जिनसे वसूली की जाती है। जागरण टीम ने सभी से संपर्क किया। कुछ के फोन स्वीच आफ मिले। कुछ ने वसूली देने की बात से इन्कार किया। तो कुछ ने नाम न छापने की शर्त पर दबी जुबान से स्वीकारा कि वर्दी का रौब दिखाकर उनसे वसूली होती है।


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