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शहरी क्षेत्र में शामिल हो चुके ग्रामीणों का छलका दर्द

आसमान से गिरे खजूर पर अटके। गौतमबुद्ध नगर में पांच साल पहले नोएडा ग्रेटर नोएडा व यमुना इंडस्ट्रियल टाउनशिप में शामिल हुए 2

By JagranEdited By: Published: Fri, 21 Jan 2022 08:48 PM (IST)Updated: Fri, 21 Jan 2022 08:48 PM (IST)
शहरी क्षेत्र में शामिल हो चुके ग्रामीणों का छलका दर्द
शहरी क्षेत्र में शामिल हो चुके ग्रामीणों का छलका दर्द

जागरण संवाददाता, ग्रेटर नोएडा : आसमान से गिरे खजूर पर अटके। गौतमबुद्ध नगर में पांच साल पहले नोएडा, ग्रेटर नोएडा व यमुना इंडस्ट्रियल टाउनशिप में शामिल हुए 287 गांवों की हालत कुछ ऐसे ही है। नोएडा, ग्रेटर नोएडा और यमुना प्राधिकरण से प्रभावित गांवों में कोई जनप्रतिनिधि नहीं है। सांसद, विधायक भी इन गांवों को लेकर उदासीन हैं। पंचायतीराज व्यवस्था समाप्त होने के बाद गांवों की हालत बद से बदतर है। गांवों के इंडस्ट्रियल टाउनशिप में शामिल होने के बाद ग्रामीण शासन द्वारा संचालित पेंशन, किसान सम्मान निधि आदि योजनाओं के लाभ से भी वंचित हैं। ग्रामीणों का कहना है कि उनके साथ सौतेला व्यवहार हो रहा है। स्थानीय जनप्रतिनिधि चुप्पी साधे हैं। गांवों में प्रतिनिधित्व समाप्त होने के बाद गांवों के विकास कार्य प्रभावित हुए हैं। विकास कार्य कराने का जिम्मा प्राधिकरणों का है, लेकिन अधिकारी ध्यान नहीं देते। निवासियों के सब्र का बाध टूट रहा है।

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वर्जन.. लोगों को विकास का सब्जबाग दिखाकर धोखा दिया गया। इंडस्ट्रियल टाउनशिप में शामिल होने के बाद गांवों में कोई प्रतिनिधित्व करने वाला भी नहीं है। जनप्रतिनिधि भी उदासीन हैं। गांवों में बिजली, पानी जैसी मूलभूत सुविधाएं तक नहीं हैं।

-धीरज आर्य, खेड़ा चौगानपुर ---

प्राधिकरणों के जाल में फंसकर ग्रामीण छटपटा रहे हैं। आबादी, अतिरिक्त मुआवजा, लीजबैक के फेर में ही ग्रामीण उलझे हैं। गांवों में विकास दूर की कौड़ी हो गई है।

-सुरजीत, समाजसेवी, सादुल्लापुर ----- गांवों की जमीन का अधिग्रहण करने के दौरान विकास के सब्जबाग दिखाए गए, लेकिन प्राधिकरण कोई वादा न निभा सका। जनप्रतिनिधि भी उदासीन बने रहे। कोई सुनने को तैयार नहीं है।

-श्रीनिवास , तुस्याना

---- विकास तो दूर शासन की वेबसाइट से प्राधिकरण के गांवों के नाम ओझल है। लोग योजनाओं के लाभ से वंचित है। अधिकारी सुनने तो तैयार नहीं। जनप्रतिनिधि भी उदासीन बने हैं। कहीं कोई सुनवाई नहीं होती।

-अनिल भाटी, डेरीन


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