सुशिक्षित समाज की सोच को सार्थक बनाने में जुटी नीशू मिश्रा
पारुल रांझा नोएडा शिक्षा के बिना जीवन अधूरा है। इसी उद्देश्य से नीशू मिश्रा शहर की झुग्गियों में बच्चों को पढ़ाकर उनके जीवन में शिक्षा का उजियारा फैला रही है। कोरोना के चलते जब जिदगी थम गई स्कूल-कालेजों में ताले लटके थे ऐसे में सुशिक्षित समाज की सोच को सार्थक करते हुए 23 वर्षीय नीशू मिश्रा ने शिक्षा की लौ को मंद नहीं पड़ने दिया।
पारुल रांझा, नोएडा : शिक्षा के बिना जीवन अधूरा है। इसी उद्देश्य से नीशू मिश्रा शहर की झुग्गियों में बच्चों को पढ़ाकर उनके जीवन में शिक्षा का उजियारा फैला रही है। कोरोना के चलते जब जिदगी थम गई, स्कूल-कालेजों में ताले लटके थे, ऐसे में सुशिक्षित समाज की सोच को सार्थक करते हुए 23 वर्षीय नीशू मिश्रा ने शिक्षा की लौ को मंद नहीं पड़ने दिया। कोरोना महामारी में भी शारीरिक दूरी का पालन करते हुए जरूरतमंद बच्चों के लिए ज्ञान की गंगा प्रवाहित कर रही हैं। यही वजह है कि सेक्टर-62 बस्ती में रहने वाले बच्चे अब उन्हें 'टीचर दीदी' कहते हैं। वैसे तो वह पिछले चार वर्षों से जरूरतमंद बच्चों को पढ़ाने का काम कर रही हैं, लेकिन कोरोनाकाल में विशेष रूप से उन्होंने इन बच्चों पढ़ाने की जिम्मेदारी उठाई है। अपनी जान की परवाह किए बगैर वह कोरोनाकाल में घर से निकलकर झुग्गियों में जाकर बच्चों को पढ़ाने-लिखाने के साथ उन्हें कोरोना के प्रति जागरूक भी कर रही हैं। 50 से अधिक बच्चों को कर रहीं शिक्षित: समाज को साक्षर बनाने का बीड़ा उठाने वाली नीशू का सपना झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले बच्चों के खुरदरे आंगन में खुशियों के दीप जलाने का है। वह दिन में सेक्टर के बच्चों को ट्यूशन पढ़ाने के अलावा स्वयं सिविल सर्विस परीक्षा की तैयारी कर रही हैं। शाम को वह झुग्गी के उन बच्चों को पढ़ाती हैं जो स्कूल नहीं जाते हैं। करीब पचास से अधिक बच्चों को अलग-अलग समय पर वह शिक्षित कर रही हैं। अपनी पुरानी किताबों से भी बच्चों को पढ़ाती हैं ताकि इसमें भाषा से लेकर सामान्य ज्ञान के बारे में उन्हें बताया जा सके। सेक्टर के बच्चों से मिली ट्यूशन की फीस जरूरतमंद बच्चों को बेहतर शिक्षा देने के लिए खर्च करती हैं। पठन-पाठन के इस कार्य में कोरोना नियमों का उल्लंघन न हो, इसका भी विशेष ध्यान रखा जाता है। मां से प्रेरित होकर बच्चों को पढ़ाना किया शुरू : नीशू बताती हैं कि जब वह स्कूल में पढ़ाई करती थी इस दौरान उनकी मां जरूरतमंद बच्चों को घर में पढ़ाया करती थीं। उन्हीं से प्रेरित होकर चार साल पहले बच्चों को पढ़ाना शुरू किया था। झुग्गी-झोपड़ी में जाकर बच्चों के घर वालों को शिक्षा के प्रति जागरूक किया। इसे बाद अभिभावक बच्चों को पढ़ाने के लिए भेजने लगे। बच्चों को निश्शुल्क शिक्षा के साथ किताबें कापी, कलम व पेंसिल आदि सामग्री भी उपलब्ध कराई जाती है। किताबी शिक्षा संग नैतिक मूल्यों और संस्कारों की शिक्षा दी जाती हैं।