चीन से तनाव के बीच दिल्ली से सटे ग्रेटर नोएडा में बढ़ा मिट्टी के बर्तनों का कारोबार
लद्दाख की गलवन घाटी में हिंसक झड़प में 20 भारतीय जवानों के शहीद होने के बाद लोग चीन के सामान का बहिष्कार कर स्वदेशी वस्तुओं को अपना रहे हैं। लोगों का स्वदेशी चीजों की तरफ तेजी से रुझान बढ़ा है।
ग्रेटर नोएडा [अजब सिंह भाटी]। मिट्टी के बर्तनों में लोग स्वास्थ्य और पोषण तलाश रहे हैं। ग्रामीण अंचलों में ही नहीं, बल्कि सेक्टर व सोसायटियों में भी बर्तनों में तैयार व्यंजनों की सोंधी खुशबू महकने लगी है। मांग बढ़ने पर बाजार गुलजार हैं। बर्तनों का पुश्तैनी कारोबार करने वाले आमदनी बढ़ने से बेहद खुश हैं। इस कला से जुड़े लोग बर्तनों को नया लुक दे रहे हैं।
बढ़ी स्वदेशी वस्तुओें की डिमांड
लद्दाख की गलवन घाटी में हिंसक झड़प में 20 भारतीय जवानों के शहीद होने के बाद लोग चीन के सामान का बहिष्कार कर स्वदेशी वस्तुओं को अपना रहे हैं। लोगों का स्वदेशी चीजों की तरफ तेजी से रुझान बढ़ा है। लोग मिट्टी के बर्तन जो नई-नई डिजाइन के बाजारों में आए हैं, उनको खूब खरीद रहे हैं।
मिट्टी के दीयों से रोशन होगी दीवाली
आधुनिकता के दौर में मिट्टी के दीयों समेत अन्य सामानों की चमक फीकी पड़ने लगी थी। बाजार में तरह-तरह के बिजली के सजावटी सामानों के बीच कुम्हारों की कला ओझल हो गई थी। नतीजतन कई लोगों ने तो इस पुश्तैनी धंधे से तौबा कर ली, लेकिन स्वदेशी वस्तुओं के प्रति लोगों के बढ़े रुझान के बाद कारिगरों में खुशी की लहर है। पुस्तैनी कारिगरों को उम्मीद है कि अबकी दीवाली मिट्टी के दीयों से रोशन होगी।
कोरोना ने बदली सोच
कोरोना ने लोगों की सोच को बदलकर रख दिया है। लोग मिट्टी के बर्तनों में स्वास्थ्य और पोषण तलाश रहे हैं। दरअसल खाना बनाने के लिए एल्युमिनियम और स्टील के बर्तनों को इस्तेमाल किया जाता है। इनका इस्तेमाल करना तो आसान है, लेकिन इससे आपके शरीर को बहुत नुकसान भी पहुंचता है। इसकी बजाय मिट्टी के बर्तन में बना खाना सेहत के लिए ज्यादा फायदेमंद होता है। प्राचीन काल में मिट्टी के बर्तनों में खाना बनाया जाता था, इसलिए लोग पहले बीमार भी कम पड़ते थे।
अनिल कुमार सिंह (सीडीओ, गौतमबुद्धनगर) का कहना है कि कुम्हारी कला से जुड़े पुश्तैनी कारोबारियों को प्रशासन प्रोत्साहित कर रहा है। प्रशासन पुश्तैनी कारीगरों को प्रशिक्षण के साथ आर्थिक मदद भी कर रहा है।
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