दिल्ली से सटे यूपी में मिली तोप को लेकर खुल सकते हैं कई राज, मुगलों से जुड़ सकता है कनेक्शन
इतिहास के विशेषज्ञों ने दावा किया है कि तोप को देखकर ऐसा लगता है कि यह मुगल काल की हो सकती है लेकिन इसको लेकर कार्बन डेटिंग का सहारा लेना पड़ेगा।
ग्रेटर नोएडा [प्रवीण विक्रम सिंह]। दुश्मनों पर गरजने वाली तोप, मालखाने में एक दशक से खामोश है। सूत्रों ने दावा किया है कि सूरजपुर कोतवाली क्षेत्र स्थित एक गांव में एक दशक पहले खुदाई के दौरान मिली तोप पिछले 10 सालों से मालखाने में रखी हुई है। तोप को आज भी अपनी पहचान का इंतजार है। यदि पुरातत्व महत्व की इस तोप की ओर ध्यान दिया जाता तो यह किसी संग्रहालय में लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र रहती। इतिहास के विशेषज्ञों ने दावा किया है कि तोप को देखकर ऐसा लगता है कि यह मुगल काल की हो सकती है। विशेषज्ञों ने यह भी कहा कि कार्बन डेटिंग के माध्यम से पता चल सकता है कि तोप का निर्माण कब और किस काल में हुआ है।
दरअसल, ग्रेटर नोएडा की सूरजपुर कोतवाली में रखी ऐतिहासिक तोप के संबंध में कभी नहीं सोचा गया कि यदि तोप को इतिहास के पन्नों से जोड़ कर दर्शकों के लिए किसी संग्रहालय में प्रदर्शित किया जाए तो तोप को अपनी पहचान मिल सकती है।
विशेषज्ञों ने बताया कि यदि सरकार इस तोप का संज्ञान ले और इस पर शोध कराए तो इतिहास की कई ऐसी जानकारी मिल सकती जो कि आज के युग में कई लोगों को नहीं होगी। ऐसी संभावना जताई गई है कि इस तोप का इस्तेमाल मुगल काल में किया गया था। आशंका यह भी है कि 1857 विद्रोह के दौरान इस तोप का प्रयोग किया गया हो।
जिले का क्रांतिकारियों से रहा है सदियों पुराना नाता गौतमबुद्धनगर जिले का क्रांतिकारियों से सदियों पुराना नाता रहा है। अंग्रेजी शासन काल में गौतमबुद्ध नगर का नलगढ़ा गांव भगत सिंह, राजगुरु आदि क्रांतिकारियों की प्रमुख कर्मभूमि था। अंग्रेजों से लोहा लेने के लिए क्रांतिकारी यहां बम तैयार करते थे और हमले के बाद यहां आकर शरण लेते थे। इस दौरान यह इलाका घने जंगलों से अच्छादित था। मुगलकाल में दिल्ली पर मुगलों का शासन था। दिल्ली का नजदीकी क्षेत्र होने के कारण उस दौरान भी इस इलाके में दुश्मनों की सेना से दिल्ली को सुरक्षित रखने के लिए गतिविधियां संचालित होती थीं।
शासन को कराया जाएगा अवगत
वैभव कृष्ण (एसएसपी, गौतमबुद्धनगर) का कहना है कि कोतवाली के मालखाने में रखी तोप के संबंध में शासन को पत्र भेजकर अवगत कराया जाएगा। इसके बाद शासन से जो दिशा निर्देश मिलेंगे उनका पालन कराया जाएगा।
पता लगाया जाएगा, तोप का निर्माण कब हुआ
डॉ. विपुल सिंह (डिपार्टमेंट ऑफ हिस्ट्री, दिल्ली विश्वविद्यालय) के मुताबिक, तोप को देखकर ऐसा लगता है कि यह मुगल काल की है। कार्बन डेटिंग और वैज्ञानिक तरीके से पता लगाया जा सकता है कि तोप का निर्माण किस काल में हुआ है। सरकार को इस तरफ ध्यान देना चाहिए। जिससे कि तोप को अपनी पहचान मिल सकें।
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