अयोध्या केस: 1990-92 के हालात पर पूर्व DGP ने किए कई अहम खुलासे, आया मुलायम का भी जिक्र
Ayodhya Case verdict 2019 पूर्व डीजीपी वीपी कपूर ने बताया कि केंद्र में कांग्रेस सरकार होने के कारण कांग्रेस के नेता मनमानी पर उतारू थे।
नोएडा [कुंदन तिवारी]। अयोध्या मामले पर वर्ष 1990 से लेकर 1992 तक कानून व्यवस्था की हालत बहुत खराब थी। तत्कालीन मुख्यमंत्री कल्याण सिंह के इस्तीफा देने के बाद स्थिति और भी भयावह हो चुकी थी। उस समय मैं खुद डीजी होम गार्ड सिविल डिफेंस के रूप में लखनऊ में तैनात था। ऐसे में केंद्र सरकार को राष्ट्रपति शासन लगाना पड़ा और राज्यपाल मोती लाल बोहरा ने कमान संभाली। उस समय प्रदेश में कानून व्यवस्था संभालना बड़ी चुनौती थी। यह कहना है उत्तर प्रदेश के पूर्व डीजीपी वीपी कपूर का। वीपी कपूर कहते हैं कि अयोध्या मामले पर सुप्रीम कोर्ट का फैसला अब तक का सबसे बेहतरीन फैसला है।
उन्होंने बताया कि वर्ष 2002 में मैंने एक किताब ‘द कम्बलिंग एडिफिक’ लिखी है, जिसका विमोचन खुद दिवंगत केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली (तत्कालीन केंद्रीय कानून मंत्री) ने किया था। किताब के चैप्टर 13 में पेज नंबर 250 से 272 में अयोध्या मामले के बाद से वर्ष 1993 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान कानून व्यवस्था को लेकर सारी गतिविधियों का जिक्र है। इस दौरान प्रदेश में कानून व्यवस्था की बहाली कितनी बड़ी चुनौती थी। अयोध्या में माहौल गर्म होने के बाद दिसंबर 1993 में चुनाव हुआ। 4 दिसंबर 1993 को मुलायम सिंह यादव के नेतृत्व में सरकार बनी। यह पूरा चुनाव में प्रदेश में बिना किसी भी प्रकार की घटना हुए संपन्न कराया।
वीपी कपूर आगे कहते हैं कि नई सरकार का गठन होते ही मैंने खुद पद छोड़ दिल्ली जाने की बात कही थी, क्योंकि मुझे पता था कि नई सरकार आने के बाद अपना डीजीपी और मुख्य सचिव तत्काल बदलती है, लेकिन तत्कालीन मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव ने जाने नहीं दिया।
कांग्रेस नेताओं की मनमानी पर लगाया था अंकुश
वीपी कपूर ने बताया कि केंद्र में कांग्रेस सरकार होने के कारण कांग्रेस के नेता मनमानी पर उतारू थे। उस दौरान प्रदेश के प्रभारी कांग्रेस नेता अर्जुन सिंह थे। वह बार-बार सहमत संस्था के माध्यम से अयोध्या में सरयू नदी के तट पर कार्यक्रम का दबाव राज्यपाल के माध्यम से बनवा रहे थे, लेकिन मैंने कानून व्यवस्था का हवाला देकर साफ मना कर दिया।
इसी प्रकार से मेरठ के कांग्रेस नेता राज्यपाल पर प्रधानमंत्री का कार्यक्रम लगवाने का दबाव बना रहे थे, लेकिन सर्किट हाउस से यह दूरी काफी थी, यह दोनों समुदाय की मिश्रित आबादी थी, किसी भी प्रकार की अप्रिय घटना को रोका नहीं जा सकता था, प्रधानमंत्री के कार्यक्रम की जिम्मेदारी डीजीपी की ही होती है, लिहाजा मना कर दिया। राज्यपाल मध्य प्रदेश से थे, उन्हें प्रदेश की वास्तविक स्थिति का ठीक ठाक अंदाजा नहीं था।
केंद्रीय मंत्रियों को किया नजर बंद
वीपी कपूर ने बताया कि वर्ष 1993 विधानसभा चुनाव के दौरान बड़ी चुनौती बवाल को रोकने की थी। चुनाव दौरान मैंने एसपी के ऊपर डीआइजी की तैनाती कर दी, कुछ जगह एडिशनल डीजी बैठा दिया। उन्हें मेरी तरफ से पूरी छूट थी कि वह तत्काल कार्रवाई कर सकते थे। चुनाव के दौरान इटावा व आजमगढ़ में बवाल की संभावना प्रबल थी, चूंकि इटावा में केंद्रीय मंत्री बलराम यादव की मुलायम सिंह से नहीं बनती थी। उधर, केंद्रीय मंत्री कल्पनाथ राय आजमगढ़ बाधित कर रहे थे। ऐसे में दोनों को चुनाव वाले डाक बंगले में बुलाकर बंद कर चाबी बीएसएफ को सौंप दी गई। मतदान प्रक्रिया पूरी होने के बाद छोड़ने को कहा गया। ठीक ऐसा ही हुआ।
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