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कोरोना काल की कालिमा में देवदूत बनी आशा

पारुल रांझा नोएडा अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी आंचल में है दूध और आंखों में पानी। नारी की तस्वीर अब ऐसी नहीं है। वह सबला हो गई है। अपनी योग्यता के बूते घर से लेकर बाहर तक की जिम्मेदारी संभाल रही है। आज आधी आबादी फर्ज के हर मोर्चे पर पूरी तन्मयता कर्तव्य बहादुरी व संकल्पबद्धता से जुटी हैं।

By JagranEdited By: Published: Mon, 12 Apr 2021 07:44 PM (IST)Updated: Mon, 12 Apr 2021 07:44 PM (IST)
कोरोना काल की कालिमा में देवदूत बनी आशा
कोरोना काल की कालिमा में देवदूत बनी आशा

पारुल रांझा, नोएडा : अबला जीवन हाय तुम्हारी यही कहानी, आंचल में है दूध और आंखों में पानी। नारी की तस्वीर अब ऐसी नहीं है। वह सबला हो गई है। अपनी योग्यता के बूते घर से लेकर बाहर तक की जिम्मेदारी संभाल रही है। आज आधी आबादी फर्ज के हर मोर्चे पर पूरी तन्मयता, कर्तव्य, बहादुरी व संकल्पबद्धता से जुटी हैं। कोरोनाकाल में जब लोग आंगन की चौखट लांघते समय बाहर निकलने में सौ बार सोचते थे कि कहीं कोरोना की जद में न आ जाएं, इन तमाम खतरों व नाच रही मौत के बीच भी स्वास्थ्य सेवाओं से जुड़ी महिलाओं ने जिम्मेदारी को जिस तरह पूरा किया वह सराहनीय है। खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में आशा कार्यकर्ताओं ने पारिवारिक समस्याओं को दरकिनार कर, सामाजिक असहयोग का सामना करते हुए लोगों को इस महामारी से बचाने में कोई कसर नहीं छोड़ी। कोरोनाकाल में अपनी व परिवार की सुरक्षा करते हुए दोनों में गजब का सामंजस्य दिखाया। तभी तो कहा गया है कि नारी तू नारायणी। स्वयं से ज्यादा समाज की परवाह : बरौला पीएचसी में आशा कार्यकर्ता के तौर पर कार्यरत 47 वर्षीय मंजू अपने हुनर, ज्ञान व क्षमता के अनुसार कोरोना को हराने में समाज के साथ मनोयोग से जुटी हैं। कोरोना के मरीजों की लगातार बढ़ती संख्या के बावजूद जान जोखिम में डालकर दिन-रात सेवाएं दे रही हैं। इनका कार्य भले ही कई मामलों में चुनौतीपूर्ण है, लेकिन कोरोना संक्रमण की परवाह किए बिना वह पीड़ितों की पीड़ा बड़े सलीके से सुनती हैं। ग्रामीणों के बीच एक सेतु का काम करते हुए सर्वे के दौरान संक्रमण का खतरा तो होता है, लेकिन उन्हें स्वयं से ज्यादा समाज की परवाह है। कोरोना से जंग जीतने की उम्मीद संग वह कर्तव्य का निर्वहन कर रही हैं। दिनभर गांवों में पैदल करती हैं मुआयना : 50 वर्षीय सुमन लता पिछले पांच वर्षो से आशा कार्यकर्ता के तौर पर कार्यरत हैं। वह रोज झुग्गी-झोपड़ियों व ग्रामीण इलाकों में घर-घर जाकर लोगों को साफ-सफाई और घर में रहने की नसीहत देती हैं। लोगों को कोरोना के प्रति जागरूक करने के साथ हाल-चाल लेती हैं। सुमन बताती है कि सुबह घर के काम निपटाती हैं। अपने बच्चों को घर में छोड़कर चिलचिलाती धूप में दिनभर गांवों में पैदल मुआयने पर निकल जाती हैं। सर्वे के दौरान कोरोना के प्रति डर के चलते कई लोग जानकारी देने से कतराते है। कई तरह के सवाल करते हैं। इन तमाम परेशानियों को नजरअंदाज कर उन्हें केवल लोगों की सुरक्षा की चिता रहती है। शाम को घर लौटने के बाद परिवार से दूरी बनाकर रखती हैं।

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