नोएडा-ग्रेनो में अपशकुन बना भ्रष्टाचार की जड़
धर्मेंद्र चंदेल, ग्रेटर नोएडा : नोएडा, ग्रेटर नोएडा में आने से कुर्सी चले जाने की चर्चाओं ने जिले के
धर्मेंद्र चंदेल, ग्रेटर नोएडा : नोएडा, ग्रेटर नोएडा में आने से कुर्सी चले जाने की चर्चाओं ने जिले के तीनों प्राधिकरणों में भ्रष्टाचार की जड़ें मजबूत की। अधिकारियों में मुख्यमंत्री के न आने और विकास कार्यों की समीक्षा करने का कोई खौफ नहीं था। अपनी मर्जी से उन्होंने प्राधिकरणों में नियम-कानूनों को तोड़कर विकास कार्यों पर पैसा खर्च किया। बसपा शासन काल में तो कमीशन के चक्कर में अच्छी खासी सड़कों को तोड़कर फिर से बनाया गया। करोड़ों रुपये सड़कों की मरम्मत पर खर्च कर दिए गए। उन गांवों में भी सीवर लाइन डाल दी गई, जिनमें मुख्य लाइन पहुंचने में अभी 20 से 25 वर्ष लगेंगे। दलित प्रेरणा स्थल को कई बार बनाया गया और तोड़ा गया। इसका कोई हिसाब लेने वाला नहीं था। नोएडा, ग्रेटर नोएडा से दूरी बनी रहने की वजह से तत्कालीन मुख्यमंत्रियों को यहीं पता नहीं चल पाता था कि दोनों शहरों में क्या चल रहा है। अधिकारी जो बता देते थे, उसे ही सही मान लिया जाता था।
सरकार की अनुमति के बिना ही जगह-जगह इंडस्ट्री की जमीन का भू-उपयोग परिर्वतित कर बिल्डरों को जमीन बेच दी गई। सरकार को भू-उपयोग की जानकारी तब हुई, जब जमीन आवंटन के बाद फ्लैटों का निर्माण शुरू हो गया।
शहर के विकास की असली तस्वीर मुख्यमंत्री तक नहीं पहुंच पाती थी। हालांकि, पिछले 29 वर्ष में बसपा सुप्रीमों मायावती ने नोएडा, ग्रेटर नोएडा आने के मिथक को तोड़ा। 2007 से 2011 के बीच उनके तीन दौरे हुए। इस दौरान मुख्यमंत्री को दिखाने के लिए तमाम कार्य रातों-रात पूरे किए गए। जिन अधूरे कार्यों को सालों से पूरा नहीं किया जा रहा था, मुख्यमंत्री के दौरे के मद्देनजर उनकी कायापलट कर दी गई। उन्होंने गौतमबुद्ध विवि व ग्रेटर नोएडा मल्टीस्पेशलिटी अस्पताल में तमाम खामियां देखी। इसकी गाज तत्काल अधिकारियों पर गिरी। प्राधिकरण के तत्कालीन डीसीईओ और महाप्रबंधक परियोजना के साथ एडीएम एल को निलंबित कर दिया गया।
मायावती के भाई का उछला था नाम
जिले में तीन दौरा करने के बाद मायावती ने भी नोएडा, ग्रेटर नोएडा मुंह मोड़ लिया। बताया जाता है कि अघोषित रूप से उनके भाई आनंद कुमार का यहां पर सिक्का चलने लगा। आरोप तो यहां तक रहे कि आनंद कुमार की मर्जी से ही तीनों प्राधिकरणों में अधिकारी तैनात किए जाते थे। अधिकारी आनंद और उनके करीबियों को आसानी से साध लेते थे। वह दिल्ली में बैठकर ही दिशा-निर्देश देते थे। बताया जाता है कि उनके एक दर्जन करीबियों ने मायावती के शहर में न आने का जमकर लाभ उठाया। वे अपने संबंधों की आड़ में अधिकारियों पर रौब जमाकर गलत काम भी करा लेते थे।
नोएडा-ग्रेटर नोएडा में वर्चस्व के लिए हुआ कुनबे में कलह!
सपा सरकार आने के बाद अखिलेश यादव ने भी नोएडा, ग्रेटर नोएडा से दूरी बनाकर रखी। आरोप रहे कि यहां का जिम्मा उनके चाचा रामगोपाल यादव को चला गया। जानकारों का तो यहां तक कहना है कि सपा कुनबे में लड़ाई की एक वजह नोएडा, ग्रेटर नोएडा में रामगोपाल यादव का हस्तक्षेप होना रहा। शिवपाल यादव की बात को नोएडा, ग्रेटर नोएडा के अधिकारी अनसुना कर देते थे। यही बाद में सपा कुबने में विवाद की जड़ बना। जिले के कई अन्य नेताओं ने भी अखिलेश यादव का करीबी बताकर बालू खनन, जमीन कब्जाने से लेकर टेंडर तक में मनमर्जी चलाई। सपा सरकार में प्राधिकरणों में दलालों का राज शुरू हो गया था।
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मुलायम ¨सह के जमाने में अमर सिंह रहे चर्चा में
2004 से 2007 तक मुलायम ¨सह यादव सरकार में दोनों शहरों में अमर ¨सह के नाम की खूब चर्चा रही। आरोप रहे कि जमीन आवंटन से लेकर विकास कार्यों के टेंडर तक में अमर ¨सह की मर्जी चलती थी। मुलायम ¨सह यादव को मुख्यमंत्री होते हुए भी यहां की कोई जानकारी नहीं होती थी। जो अमर ¨सह कर देते थे, वहीं अंतिम निर्णय होता था।