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दुर्गा महोत्सव : सिदूरखेला के साथ दुर्गा प्रतिमा का विर्सजन आज

शहर में विभिन्न स्थानों पर चल रहे दुर्गा महोत्सव का शुक्रवार को समापन हो जाएगा। सिदूर खेला के साथ माता की मूर्ति विसर्जित की जाएगीजिसकी तैयारियां पूर्ण कर ली गई है। जागरण संवाददाता ग्रेटर नोएडा शहर में विभिन्न स्थानों पर चल रहे दुर्गा महोत्सव का शुक

By JagranEdited By: Published: Thu, 14 Oct 2021 07:57 PM (IST)Updated: Thu, 14 Oct 2021 07:57 PM (IST)
दुर्गा महोत्सव : सिदूरखेला के साथ दुर्गा प्रतिमा का विर्सजन आज
दुर्गा महोत्सव : सिदूरखेला के साथ दुर्गा प्रतिमा का विर्सजन आज

जागरण संवाददाता, ग्रेटर नोएडा : शहर में विभिन्न स्थानों पर चल रहे दुर्गा महोत्सव का शुक्रवार को समापन हो जाएगा। सिदूर खेला के साथ माता की मूर्ति विसर्जित की जाएगी,जिसकी तैयारियां पूर्ण कर ली गई है। बृहस्पतिवार को विधि विधान से माता की आराधना की गई। विशेष पूजा के तहत पुष्पाजलि अर्पित की गई। महिलाएं धुनुची नृत्य पर जमकर थिरकी। आयोजित सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बंगाली संस्कृति व सभ्यता की झलक दिखी। शहर के पाई सेक्टर स्थित कालीबाड़ी मंदिर, गौर सिटी दादा-दादी पार्क समेत हिमालया प्राइड, पंचशील ग्रींस एक समेत अन्य स्थानों पर आयोजित दुर्गा महोत्सव में सुबह-शाम विधि-विधान से पूजन, आरती व प्रसाद का वितरण किया गया। बता दें कि नवरात्र का पावन त्योहार पूरे नौ दिन तक मनाया जाता है। इस दौरान लोग देवी दुर्गा के नवरूपों की पूजा करते हैं। वहीं बंगाल के लोग दुर्गा पूजा को महोत्सव के रूप में मनाते हैं। विधि विधान से देवी मां की पूजा की जाती है। विजयदशमी के दिन बड़ी धूमधाम से देवी मां का विसर्जन करने की प्रथा है।

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सदियों पुरानी है परंपरा

इस पर्व को मनाने की सदियों पुरानी परंपरा जुड़ी है। कहा जाता है कि इन दिनों देवी दुर्गा अपने मायके यानि धरती पर आकर रहती हैं। अपने भक्तों को आर्शीवाद देती हैं। फिर नौ दिन बीतने के बाद दशमी तिथि पर अपने घर वापस लौट जाती है। बंगाली समुदाय की महिलाएं इस खास पर्व पर दुर्गा विर्सजन से पहले सिदूर से होली खेलती है,जिसे सिदूर खेला कहा जाता है। कहा जाता है कि सिदूर खेला का पर्व पांच सौ साल पहले से मनाया जाता आ रहा है। मान्यता है कि इस पर्व को मनाने से देवी मां की असीम कृपा से सुहाग की लंबी उम्र होती है। महिलाएं एक दूसरे को सिदूर लगाकर बधाई देती है व देवी मां से अखंड सौभाग्य की कामना करती है। ज्यादातर स्थानों पर पर्यावरण की शुद्धता को ध्यान में रखकर धुलनशील मिट्टी से प्रतिमा स्थापित की गई है।


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