गगनचुंबी इमारतें छोड़ जमीन बेचने के लिए आतुर हुए बिल्डर
जागरण संवाददाता ग्रेटर नोएडा आर्थिक संकट में फंसे बिल्डर इस संकट से उबरने को नए रास्ते तलाश रहे हैं। निर्माणाधीन परियोजनाओं से बची भूमि पर बिल्डर बहुमंजिला इमारतें खड़ी करने की बजाय उन्हें भूखंड के रूप में बेचने की योजना पर काम कर रहे हैं। इसके लिए बिल्डरों ने प्राधिकरण से अनुमति मांगी है। इसे लेकर प्राधिकरण का रुख भी सकारात्मक है। इससे बिल्डरों पर फंसा प्राधिकरण का पैसा निकालने का रास्ता भी तैयार होने की उम्मीद है। प्राधिकरण बिल्डरों को भूखंड बेचने की अनुमति जल्द जारी कर सकता है।
जागरण संवाददाता, ग्रेटर नोएडा : आर्थिक संकट में फंसे बिल्डर इस संकट से उबरने को नए रास्ते तलाश रहे हैं। निर्माणाधीन परियोजनाओं से बची भूमि पर बिल्डर बहुमंजिला इमारतें खड़ी करने की बजाय उन्हें भूखंड के रूप में बेचने की योजना पर काम कर रहे हैं। इसके लिए बिल्डरों ने प्राधिकरण से अनुमति मांगी है। इसे लेकर प्राधिकरण का रुख भी सकारात्मक है। इससे बिल्डरों पर फंसा प्राधिकरण का पैसा निकालने का रास्ता भी तैयार होने की उम्मीद है। प्राधिकरण बिल्डरों को भूखंड बेचने की अनुमति जल्द जारी कर सकता है।
दिल्ली-एनसीआर में रियल एस्टेट मार्केट ने कुछ वर्षो पहले जबरदस्त उड़ान भरी थी। इसका नतीजा यह हुआ कि प्राधिकरणों ने बिल्डरों को दोनों हाथों से भूखंड आवंटित किए और बिल्डर एक के बाद एक परियोजना लांच करते गए। एक परियोजना से जुटाई रकम को दूसरे में निवेश करने के कारण बिल्डरों की परियोजनाएं अधर में लटक गई। ज्यादातर बिल्डर आर्थिक संकट में फंसे हैं और परियोजना में बुकिग कराने वाले लोग कब्जे के लिए भटक रहे हैं। प्राधिकरण की रीशेड्यूलमेंट पॉलिसी से स्थिति में थोड़ा बहुत असर पड़ा है। बिल्डरों का अब बहुमंजिला इमारतों के निर्माण से मोहभंग हो चुका है। निर्माण के लिए बिल्डरों के पास पैसे नहीं हैं, इसके साथ ही इन इमारतों में फ्लैट के खरीदार भी बाजार में नहीं हैं।
निर्माणाधीन परियोजना से खाली बची जमीन को बिल्डर भूखंड के रूप में बेचने की तैयारी में हैं। इससे बिल्डरों का आर्थिक संकट कुछ हद तक दूर होगा। भूखंड बेचने से बिल्डरों के हाथों में राशि आएगी। इससे निर्माणाधीन परियोजनाओं के लिए रकम का बंदोबस्त हो जाएगा। भूखंड बेचने के लिए बिल्डरों को सिर्फ ढांचागत विकास की ही जरूरत होगी। वहीं प्राधिकरण को भी इसमें अपना फायदा नजर आ रहा है। बिल्डरों पर प्राधिकरणों के हजारों करोड़ रुपये बकाया है। यमुना प्राधिकरण का ही करीब चार हजार करोड़ से अधिक बकाया है। बिल्डरों के हाथ में रकम आने से प्राधिकरण को भी अपना बकाया भुगतान मिलने की संभावना बढ़ेगी। लेआउट प्लान में करना होगा बदलाव
परियोजना के निर्माण से पहले बिल्डर को प्राधिकरण से लेआउट प्लान मंजूर कराना होता है। पॉलिसी के तहत प्राधिकरण तय शर्तो पर बिल्डरों को निर्माण की अनुमति देता है। अगर बिल्डरों को भूखंड बेचने की अनुमति दी जाएगी तो इसके लिए लेआउट प्लान में संशोधन की जरूरत होगी। वर्जन
तीन-चार बिल्डरों ने भूखंड बेचने की अनुमति की मांगी है। बिल्डरों की इस मांग पर विचार किया जा रहा है। प्राधिकरण परियोजनाओं में फ्लैट खरीदारों के हितों को भी ध्यान में रखकर फैसला लेगा।
डॉ. अरुणवीर सिंह, सीईओ यमुना प्राधिकरण