गन्ने में चने की बेल.. मिट्टी होगी उपजाऊ किसान धनवान
शुगर बाउल जनपद में गन्ने के बीच तिलहन-दहलन की फसल बोने का चलन बढ़ने लगा है। सहफसली खेती से जहां मिट्टी की सेहत सुधर रही है वहीं किसानों का मुनाफा भी बढ़ा है। साथ ही ट्रैंच विधि से सिचाई कर किसान जल संरक्षण की मुहिम में भी भागीदार बन रहे हैं। किसानों का सहफसली खेती की तरफ रुझान पैदा करने के लिए सरकार ने अनुदान योजना चलाई हुई है।
जेएनएन, मुजफ्फरनगर। शुगर बाउल जनपद में गन्ने के बीच तिलहन-दहलन की फसल बोने का चलन बढ़ने लगा है। सहफसली खेती से जहां मिट्टी की सेहत सुधर रही है, वहीं किसानों का मुनाफा भी बढ़ा है। साथ ही ट्रैंच विधि से सिचाई कर किसान जल संरक्षण की मुहिम में भी भागीदार बन रहे हैं। किसानों का सहफसली खेती की तरफ रुझान पैदा करने के लिए सरकार ने अनुदान योजना चलाई हुई है। खानजहांपुर के प्रगतिशील किसान ने गन्ने के साथ चने की फसल उगाई है। फसीह ने गन्ने में उगाई काबुली चने की फसल
खानजहांपुर के किसान फसीह मोहम्मद संपन्न रूपी किसान है। अभी तक वह अपने खेत में केवल गन्ना उगाते आ रहे थे। यह सीजनल फसल होने के साथ वार्षिक है। पहली बार सहफसली खेती का प्रयोग किया है। उन्होंने ने दो बीघा गन्ने के बीच काबुली चना (काला चना) की फसल लगाई है। फसीह बताते हैं कि वह खेत की सिचाई ट्रैंच विधि से कर रहे हैं। इससे पानी की बचत के साथ फसल बेहतर हो रही है। अक्टूबर में चना लगाया है, जो मार्च में पककर तैयार होगा। ऐसे में गन्ने की फसल के साथ वह चना से मुनाफा कमाएंगे। खेत में उन्होंने 42 इंच की दूरी पर नालियां बनाई हैं, जिनमें चना लगाया गया है, जबकि मेढ़ पर गन्ने की फसल खड़ी है।
सुधरेगी खेत की सेहत, अनुदान मिलेगा
तिलहन, दलहन की फसल से खेत की सेहत में सुधार होगा। एक ही फसल उगाने से मिट्टी में उर्वरता क्षीण होती है। सहफसली खेती के कारण मिट्टी की सेहत में इजाफा होगा। डीसीओ डा. आरडी द्विवेदी कहते हैं कि केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा मिशन के जरिये किसान को सहफसली खेती करने पर 60 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर भूमि पर अनुदान मिलेगा। खानजहांपुर में फसीह मोहम्मद के खेत का गन्ना विभाग के संयुक्त निदेशक डा. महेश कुमार ने भी निरीक्षण किया। 50 फीसद जल संरक्षण
गन्ना शोध संस्थान के संयुक्त निदेशक डा. वीर सिंह बताते हैं कि साधारण रूप से गन्ने की फसल में पांच से छह सिचाई होती है। ऐसे में ट्रैंच विधि के साथ सहफसली खेती की जाए तो पानी की खपत कम होती है। ट्रैंच विधि में सिचाई की संख्या बढ़ती है, लेकिन पानी कम लगता है। इससे फसल की पैदावार बढ़ती है, वहीं मिट्टी की उर्वरा शक्ति में भी बढ़ोतरी होती है।