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उच्च शिक्षा के लिए कस्बे से बाहर का रुख करने को मजबूर हैं युवा

शिक्षा के बढ़ते प्रसार के बीच समाज व व्यवहार में इसके प्रभाव व अहमियत देखते लोगों का रुझान इसकी ओर हुआ है। आजकल ज्यादातर अभिभावक बच्चों को शिक्षा दिलाने को लेकर जागरूक हुए हैं। वहीं बच्चे भी शिक्षा के क्षेत्र में नित नई ऊंचाइयों को हासिल कर रहे हैं। क्षेत्र के लोग बड़ी संख्या में यहां से शिक्षा लेकर उच्च पदों की शोभा बढ़ा रहे हैं।

By JagranEdited By: Published: Tue, 11 Aug 2020 12:17 AM (IST)Updated: Tue, 11 Aug 2020 06:05 AM (IST)
उच्च शिक्षा के लिए कस्बे से बाहर का रुख करने को मजबूर हैं युवा
उच्च शिक्षा के लिए कस्बे से बाहर का रुख करने को मजबूर हैं युवा

प्रदीप मित्तल, मुजफ्फरनगर।

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शिक्षा के बढ़ते प्रसार के बीच समाज व व्यवहार में इसके प्रभाव व अहमियत देखते लोगों का रुझान इसकी ओर हुआ है। आजकल ज्यादातर अभिभावक बच्चों को शिक्षा दिलाने को लेकर जागरूक हुए हैं। वहीं बच्चे भी शिक्षा के क्षेत्र में नित नई ऊंचाइयों को हासिल कर रहे हैं। क्षेत्र के लोग बड़ी संख्या में यहां से शिक्षा लेकर उच्च पदों की शोभा बढ़ा रहे हैं। वहीं आर्थिक रूप से कमजोर बच्चों को उच्च शिक्षा का लाभ नहीं मिल पा रहा है। अभी तक बड़े शहरों में ही उपलब्ध होने वाले उच्च शिक्षा संस्थान ग्रामीण क्षेत्र के इन बच्चों से दूर हैं। अब नई शिक्षा नीति से उम्मीद जताई जा रही है कि शिक्षा क्षेत्र की यह दूरी समाप्त हो सकेगी।

तहसील क्षेत्र के कस्बा बुढ़ाना, शाहपुर, सिसौली हो या जौला, परासौली, फुगाना, रतनपुरी जैसे बड़े गांव, कहीं भी इंटरमीडिएट से ऊपर की शिक्षा उपलब्ध नहीं है। कस्बों से खतौली, मुजफ्फरनगर, शामली आदि की दूरी 30-35 किमी है और मेरठ करीब 50 किमी दूर है। उच्च शिक्षा के लिए छात्रों को इन शहरों की ओर ही रुख करना पड़ता है। हां कस्बे में दो निजी शिक्षण संस्थान तो खुले हैं, परंतु वहां भी भारी भरकम फीस देने वालों का ही बोलबाला है। आर्थिक रूप से कमजोर परिवार को बालक इन शिक्षण संस्थाओं का रुख नहीं करता। सर्व शिक्षा अभियान पर सरकार का जोर है, लेकिन हकीकत कुछ ओर ही बयां करती है। बीए, बीएससी, बीकाम आदि के लिए छात्र तो इन शहरों में जाते भी हैं, परंतु सबसे अधिक कठिनाई तो छात्राओं को आती है। पहले ही परिवहन की समस्या झेल रहे क्षेत्र के लोगों को बसों में खड़े होकर छात्राओं का इन शहरों का सफर गंवारा नहीं करता। लोगों ने उच्च शिक्षा संस्थान खुलवाने के प्रयास भी किए थे, लेकिन उन प्रयासों को कोई अमली जामा नहीं पहनाया जा सका।

यह बोले छात्र-छात्राएं

बीएससी में प्रवेश का प्रयास कर रही छात्रा मनु डबास का कहना है कि हमारे क्षेत्र में उच्च शिक्षण संस्थान न होने से मुजफ्फरनगर या मेरठ में एडमिशन लेना पड़ेगा। आने-जाने में दो से तीन घंटे का समय लगेगा। प्रतिदिन शहर जाकर पढ़ाई करने के दौरान समय व पैसे की अधिकता लगने से अभिभावकों पर तो भार पड़ेगा। साथ ही वे आते जाते समय उनकी सुरक्षा को लेकर भी चितित हैं।

विज्ञान वर्ग से इसी वर्ष इंटरमीडिएट कर चुके छात्र यश बंसल का कहना है कि वह आगे की पढ़ाई को लेकर असमंजस में है। वैसे कई फार्म तो भरे हैं, परंतु उसके लिए भी बाहर ही रहकर शिक्षा लेनी होगी। फिलहाल शहर में कमरा लेकर पढ़ाई का मन बनाया है। यदि अपने क्षेत्र में ही कोई उच्च शिक्षा संस्थान होता तो उन्हें कठिनाई का सामना नहीं करना पड़ता।

गांव जौला निवासी ज्योति शर्मा ने इस वर्ष कक्षा 12वीं पास की है। उन्होंने बताया कि उनका मन कानून की पढ़ाई करने का है, परंतु आगे की पढ़ाई के लिए शामली, बड़ौत या मुजफ्फरनगर जाना संभव नहीं हो पाएगा। यदि कोई उच्च शिक्षा संस्थान क्षेत्र में होता तो उसे आगे की पढ़ाई के विषय में इतना सोचना नहीं पड़ता।

बीबीए में एडमिशन के ख्वाब संजोए छात्रा शालिनी चौधरी ने कहा कि उच्च शिक्षा के लिए प्रतिदिन शहर में कालेज जाकर शिक्षा ग्रहण करना सिरदर्द का काम होता है। कभी बस उपलब्ध नहीं होती तो कभी लेट होने से कक्षाएं छूट जाती है। क्षेत्र में कोई भी राजकीय उच्च शिक्षण संस्थान न होने के कारण 12वीं उत्तीर्ण करने वाली छात्राओं के लिए शिक्षा बड़ी गंभीर समस्या है।


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