बरकत-रहमत का महीना रमजान, इबादत में गुजारें वक्त
रमजान का मुबारक महीना जल्द शुरू होने वाला है। यह महीना बरकत और रहमतों वाला है।
मुजफ्फरनगर, जेएनएन। रमजान का मुबारक महीना जल्द शुरू होने वाला है। यह महीना बरकत और रहमतों वाला है। इबादत, हर नेकी पर पर सवाब (पुण्य) मिलेगा। वैश्विक स्तर पर फैली कोविड-19 की बीमारी के कारण सामूहिक नमाज, तरावीह नहीं पढ़ी जाएंगी। दीनी उलमा, पुलिस व प्रशासन ने मुस्लिम समुदाय से एकांतवास में अपनी इबादत, नमाज अदा करने की अपील की है। रमजान को लेकर मुस्लिमों क्षेत्रों में तैयारियां शुरू हो गई हैं। इस बार चुनौती भी कम नहीं है, क्योंकि कोरोना वायरस के कारण कई कॉलोनियां, गांव सील है। ऐसे में यहां इफ्तार, सहरी के लिए पर्याप्त इंतजाम करना मुश्किल भरा रहेगा। हालांकि प्रदेश सरकार साफ किया है कि रमजान में हर किसी की जरुरत का ख्याल रखा जाए। इसके लिए प्रशासनिक स्तर पर जिम्मेदारियां तय की जाएंगी। शहरकाजी तनवीर आलम, कांग्रेस के पूर्व जिलाध्ययक्ष तारिक कुरैशी ने डीएम और एसएसपी से रमजान माह में सील क्षेत्रों के साथ मुस्लिम बस्तियों, मोहल्लों में खाद्यान्न सामग्री की होम डिलीवरी किए जाने की मांग रखी है।
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आज चांद पर निर्भर करेगी पहली सहरी
24 अप्रैल को रमजान का चांद होने की संभावनाएं है। इसको लेकर मुस्लिम समुदाय ने तैयारियां की है। लॉकडाउन में खाद्यान्न, फल, सब्जी आदि के लिए होम डिलीवरी, गांव, गलियों में फुटकर विक्रेता पहुंच रहे हैं। इन्हीं लोगों से रमजान की खरीदारी हो रही है। मुबारक माह में खजला, सेंवईयां, डबल रोटी, खजूर, शीरमाल आदि की दुकानें चांद दिखने से आठ दिन पहले सजना शुरू होती थी, लेकिन कोरोना के कारण यह नहीं हो सका है। चांद को लेकर कमेटी भी तैयार है। चांद होने के बाद इफ्तार और सहरी का मुकम्मल कैलेंडर जारी होगा।
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यह कहती है हदीस, समझें, अमल करें
हदीस-ए-पाक में साफ है कि मुस्लिमों पर यह महीना फर्ज किया गया है। हर तंदरूस्त इंसान रोजे रखे और इबादत करे। इस महीने में हर नेकी का अज्र सत्तर नेकियों में बदल दिया जाता है। यह सब्र का महीना है और सब्र का बदला जन्नत है। यह माह लोगों के साथ गम-ख्वारी करने का है। जो शख्स किसी को रोजा इफ्तार कराए, उसके गुनाह माफ होने और जहन्नुम की आग से निजाम का सबब होगा।
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तीन हिस्सों में है रमजान माह
रमजान माह का अव्वल हिस्सा (शुरू के दस दिन) रहमतें बरसना वाला है। दर्मियानी हिस्सा (मध्य दस दिन) गुनाहों से तौबा, मगफिरत के हैं, जबकि आखिरी हिस्सा (अंतिम दस दिन) जहन्नुम की आग से निजात पाने के हैं।