बार्डर पर देशभक्ति के तरानों संग मनता था रेडियो दिवस
आधुनिकता के दौर में पीछे छूटता रेडियो का क्रेज आज भी उन लोगों को याद है जिन्होंने रेडियो को अपना मनोरंजन और सूचना का मजबूत माध्यम बनाया था। सन् 1990 के दशक के बाद पीछे छूटती रेडियो की तंरगों का महत्व पूर्व फौजी अधिक बेहतर जानते हैं।
जेएनएन, मुजफ्फरनगर। आधुनिकता के दौर में पीछे छूटता रेडियो का क्रेज आज भी उन लोगों को याद है, जिन्होंने रेडियो को अपना मनोरंजन और सूचना का मजबूत माध्यम बनाया था। सन् 1990 के दशक के बाद पीछे छूटती रेडियो की तंरगों का महत्व पूर्व फौजी अधिक बेहतर जानते हैं।
देश की रक्षा के लिए उडी सेक्टर से लेकर पुंछ और श्रीनगर तक बार्डर पर तैनात रहे इंदिरा कालोनी निवासी पूर्व फौजी कैप्टन सुरेश त्यागी रेडियो की बड़ी दिलचस्प कहानी बताते हैं। सुरेश त्यागी का कहना है कि रेडियो की महत्ता 90 के दशक तक फौजियों में जबरदस्त तरीके से रही है। उन्हें आज भी याद है जब वे 1973 में उड़ी सेक्टर में तैनात थे और वहां हमला हुआ था। उसकी पूरी खबर रेडियो पर प्रसारित हुई, जो देश के कोने-कोने तक पहुंची। वहीं रेडियो दिवस पर सैनिकों के सम्मान में विशेष कार्यक्रम आता था, जिससे हौसला बढ़ता था। देशभक्ति के संगीत प्रसार भारती की तरफ से प्रसारित होते थे। इसके अलावा किसान चर्चा, संगीत आदि कार्यक्रम भी फौजी बार्डरों पर सुनते थे, जो आज के समय में मोबाइलों में आ चुका है।
'मन की बात' ने बढ़ाई रेडियो की उपयोगिता
शहर के साईधाम कालोनी निवासी जयकुमार शर्मा बताते है कि रेडियो का स्वरूप अब बदल गया है, सारी सुविधा मोबाइल फोन में समाहित है, लेकिन हम जैसे पुराने लोगों के पास रेडियो आज भी है, जिससे एफएम के कार्यक्रम सुने जाते हैं। वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की का 'मन की बात' कार्यक्रम भी रेडियो से सुनते हैं, जिससे रेडियो की उपयोगिता बढ़ी है।