अब पानी सिर से ऊपर गुजर चुका है..
आसमान पर घिरते बादलों को देख चंद चेहरों पर जरूर मुस्कुराहट और चाय-पकौड़ी की उम्मीद तैर जाती हो लेकिन आज की तारीख में इससे ज्यादा चेहरों पर चिता की लकीरें उभरती दिख रही हैं। जरा-सी बारिश में सड़क पानी से तरबतर हो रही है जबकि सीधे तौर पर जिम्मेदार जनप्रतिनिधि दावे-दलीलों तक सिमटें हैं। गुरुवार रात हुई बारिश में शहर का हृदयस्थल शिव चौक ऐसा जलमग्न हुआ कि शायद चौराहे पर शहर की चौकीदारी कर रहे महाकाल भी भौचक्के रह गए होंगे।
जेएनएन, मुजफ्फरनगर। आसमान पर घिरते बादलों को देख चंद चेहरों पर जरूर मुस्कुराहट और चाय-पकौड़ी की उम्मीद तैर जाती हो, लेकिन आज की तारीख में इससे ज्यादा चेहरों पर चिता की लकीरें उभरती दिख रही हैं। जरा-सी बारिश में सड़क पानी से तरबतर हो रही है, जबकि सीधे तौर पर जिम्मेदार जनप्रतिनिधि दावे-दलीलों तक सिमटें हैं। गुरुवार रात हुई बारिश में शहर का हृदयस्थल शिव चौक ऐसा जलमग्न हुआ कि शायद चौराहे पर शहर की चौकीदारी कर रहे महाकाल भी भौचक्के रह गए होंगे। गुरुवार की बारिश को भी छोड़ दें तो जब-जब बारिश हुई है तब-तब शहर की पाश कालोनियों में शामिल गांधी कालोनी के कई मकानों में नगर को नरक बनाने वालों को लानत-मलानत पड़ी है। शहर के चोक सीवरों और नालों की सफाई के नाम पर खर्चा तो बहुत किया गया, लेकिन नतीजा हर बार की तरह सिफर ही रहा। शहरभर के बाल-गोपाल भले ही घर में कैद होकर रह गए, लेकिन पालिका के 'बाल-गोपाल' नगर विचरण पर निकले। हालांकि, तब तक पानी सुराखों से होते हुए जमीन में समा चुका था और बचा-खुचा किसी तरह बाशिदों ने मकानों से बाहर निकाला। अगर सारे दावे-दलीलों को सच मान भी लिया जाए, लेकिन शहर की अंसारी रोड, गांधी नगर, बचन सिंह कालोनी, प्रेमपुरी, कच्ची सड़क समेत अन्य इलाकों की हालत नगरपालिका के जिम्मेदारों को बारिश के दौरान देखनी चाहिए। शनिवार को शहर भ्रमण पर निकली पालिकाध्यक्ष अंजू अग्रवाल लोगों के बीच जाकर दावा किया कि उन्होंने शहर के सभी नालों की तली झाड़ सफाई कराई है। इसके पीछे पालिकाध्यक्ष ने खुद के गृहिणी होने का तर्क देते हुए बर्तन सफाई का उदाहरण तक दे डाला। नगरपालिका की ओर से बने वाट्सएप ग्रुप पर तैरती निरीक्षण की तस्वीरें और तर्क शहरवासियों को ठीक वैसी ही हंसी-ठिठोली का वैसा ही मौका दे गए, जैसे बारिश में शहर की सड़कों पर जमा दो से तीन फीट तक के पानी में बच्चों को कागज की नाव छोड़ने का मौका मिल गया हो। हालांकि इस बार उम्मीद जरूर है कि जलभराव के जिम्मेदार जनप्रतिनिधि और अफसर अगली बारिश के दरम्यान ही शहर का हाल जानेंगे। फिलवक्त तो हालात-ए-हाजिरा को बयां करने के लिए मशहूर शायर अहमद फराज का यह शेर याद आ रहा है..
वो जहर देता तो दुनिया की नजरों में आ जाता सो उसने यूं किया के वक्त पे दवा न दी