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पूर्व विधायक मटरू मियां का निधन

पूर्व विधायक सैयद मेहंदी असगर उर्फ मटरू मियां का निधन हो गया। वह 90 साल के थे। रविवार को पैतृक गांव जौली में सुपुर्द-ए-खाक किया गया। उनके जनाजे में बड़ी संख्या में लोगों ने शिरकत की। वह अस्वस्थ चल रहे थे। भाजपा रालोद समेत विभिन्न राजनीति दलों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी।

By JagranEdited By: Published: Sun, 22 Nov 2020 10:07 PM (IST)Updated: Sun, 22 Nov 2020 10:07 PM (IST)
पूर्व विधायक मटरू मियां का निधन
पूर्व विधायक मटरू मियां का निधन

जेएनएन, मुजफ्फरनगर। पूर्व विधायक सैयद मेहंदी असगर उर्फ मटरू मियां का निधन हो गया। वह 90 साल के थे। रविवार को पैतृक गांव जौली में सुपुर्द-ए-खाक किया गया। उनके जनाजे में बड़ी संख्या में लोगों ने शिरकत की। वह अस्वस्थ चल रहे थे। भाजपा, रालोद समेत विभिन्न राजनीति दलों ने उन्हें श्रद्धांजलि दी।

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मटरू मियां ने मोरना ग्राम प्रधान से लेकर विधानसभा तक का सफर तय किया। वह वर्ष 1980 में लोकदल से विधायक निर्वाचित हुए। उनके पिता मोहम्मद मुजतबा हसनैन स्वतंत्रता सेनानी व दादा मुर्तजा हसनैन ब्रिटिश राज में मजिस्ट्रेट रहे। पूर्व विधायक छह माह कांग्रेस में भी रहे। शहर में अंसारी रोड पर भी उनका आवास है। राज्यमंत्री कपिलदेव अग्रवाल, पूर्व विधायक मिथलेश पाल, पूर्व मन्त्री सईदुजमा, रालोद जिलाध्यक्ष अजित राठी, सपा जिलाध्यक्ष प्रमोद त्यागी ने श्रद्धांजलि दी। मिलनसार थे दिवंगत

मटरू मियां की मिलनसारिता के सभी लोग कायल थे। क्षेत्र में हर तबके के आदमी की उन तक सीधी पहुंच रहती थी। व्यवहारकुशलता के चलते विपक्षी दलों के नेताओं से भी मटरू मियां के मधुर संबंध थे।

ग्राम सभा से विधानसभा तक का सफर

जेएनएन, मुजफ्फरनगर। मटरू मियां ने लंबा सियासी सफर तय किया। भोपा थाना क्षेत्र के जौली गांव में प्रधान बनने से राजनीतिक सफर शुरू हुआ। अधिकांश समय उनका लोकदल में बीता, छह माह के लिए कांग्रेस में भी रहे। बेदाग छवि के नेताओं में उनकी गिनती होती है।

मटरू मियां वर्ष 1971 में जौली के प्रधान बने। वर्ष 1972 में मोरना ब्लाक से प्रमुख बने। 1980 में लोकदल के टिकट पर मोरना विधानसभा से विधायक चुने गए। 1989 में रालोद प्रमुख चौ. अजित सिंह ने उन्हें जिलाध्यक्ष बनाया और दो साल बाद प्रदेश कार्यकारिणी में अहमियत दी गई। पूर्व विधायक अपने पीछे चार पुत्र जावेद असगर, शहजाद असगर, उरूज असगर, कमाल असगर समेत भरा-पूरा परिवार छोड़ गए हैं। रालोद के झंडे में लपेटकर उन्हें सुपुर्दे-ए-खाक किया गया।


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