Move to Jagran APP

देशभक्ति से बंधा था हर शख्स..गूंजी थी मां भारती की जय

जंग-ए-आजादी के लिए पहले माहौल बदला था आज इंसान बदल गया है। वयोवृद्ध आचार्य गुरुदत्त आर्य बताते हैं कि देशभक्ति की डोर से हर शख्स बंधा था। चहुंओर मां भारती की जयकार थी और गली-गली से ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ नारे गूंज रहे थे। क्रांतिकारियों के बलिदान से आजादी तो मिल गई लेकिन उनके सपनों का भारत नहीं बन पाया है। संस्कार और संस्कृति की ज्योति भी आजादी की मशाल के साथ उठी थीं जो आधुनिक भारत में दब सी गई हैं।

By JagranEdited By: Published: Fri, 14 Aug 2020 10:55 PM (IST)Updated: Fri, 14 Aug 2020 10:55 PM (IST)
देशभक्ति से बंधा था हर शख्स..गूंजी थी मां भारती की जय
देशभक्ति से बंधा था हर शख्स..गूंजी थी मां भारती की जय

मुजफ्फरनगर, दिलशाद सैफी।

loksabha election banner

जंग-ए-आजादी के लिए पहले माहौल बदला था, आज इंसान बदल गया है। वयोवृद्ध आचार्य गुरुदत्त आर्य बताते हैं कि देशभक्ति की डोर से हर शख्स बंधा था। चहुंओर मां भारती की जयकार थी और गली-गली से ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ नारे गूंज रहे थे। क्रांतिकारियों के बलिदान से आजादी तो मिल गई, लेकिन उनके सपनों का भारत नहीं बन पाया है। संस्कार और संस्कृति की ज्योति भी आजादी की मशाल के साथ उठी थीं, जो आधुनिक भारत में दब सी गई हैं। स्त्री-पुरुष, सब चरित्र की मर्यादा रखते थे। आने-जाने के साधन कम थे। लोग पैदल चलते थे, कुएं पर पानी पीते थे। लूट, अपराध नहीं था। आजादी के वक्त ऐसा माहौल था। गरीबी के बावजूद एक-दूसरे का सम्मान था, जाति का भेद नहीं था। दूरदराज स्कूल होने से शिक्षा की कमी थी। लोग चिट्ठी, संदेश पढ़ने वाले ढूंढते थे।

स्वतंत्रता के जश्न में डूबा था गांव

गांव मुंडभर में जन्मे 86 वर्षीय सेवा निवृत्त शिक्षक आचार्य गुरुदत्त आर्य बताते हैं कि वर्ष 1947 की सुबह अनोखी थी, जो जीवन में आज तक लौटकर नहीं आई है। गांव के प्राथमिक स्कूल में आजादी मिलने पर हवन हुआ था। लड्डू बंटे, तिरंगा फहराया गया था। किसान, मजदूर, ग्रामीण, बच्चे गलियों में भारत माता की जय के नारे लगाकर जुलूस निकाल रहे थे। लोगों में क्रांतिकारियों, स्वतंत्रता सेनानियों के प्रति श्रद्धा थी। देश गरीब था, कच्चे मकान थे, पैसे का अभाव था, मगर लोगों में देशभक्ति के संस्कार थे। वर्षाें तक यातनाएं झेलने के बाद आजादी मिली थी। उस समय ईमानदारी, चरित्र, अनुशासन और परिश्रम करने की आदत थी। लोगों में धर्म-कर्म की मर्यादा थी।

क्रांतिकारियों के सपनों नहीं बना भारत

आचार्य बताते हैं कि क्रांतिकारियों के सपनों का भारत नहीं बन पाया। युवा पीढ़ी ने महापुरुषों, देशभक्तों के आदर्श भुला दिए। संस्कारों की कमी से अपराध बढ़ गया। बाजारीकरण, फैशन, पाश्चात्य संस्कृति के कारण शोषण बढ़ गया। नैतिक मूल्यों में कमी आई। राष्ट्र की एकता, अखंडता को खतरा पैदा हुआ है। भ्रष्टाचार की वंशबेल बढ़ रही है। वह कहते हैं कि गरीब, वंचित, शोषित समाज के उत्थान से ही देश मजबूत, सशक्त बन पाएगा।


Jagran.com अब whatsapp चैनल पर भी उपलब्ध है। आज ही फॉलो करें और पाएं महत्वपूर्ण खबरेंWhatsApp चैनल से जुड़ें
This website uses cookies or similar technologies to enhance your browsing experience and provide personalized recommendations. By continuing to use our website, you agree to our Privacy Policy and Cookie Policy.