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नए चेहरे के लिए कांग्रेस ने काट दिया था मंत्री विद्याभूषण का टिकट

प्रदेश में विधानसभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी है। ऐसे में जनता बीते विधानसभा चुनावों का जिक्र रुचि लेकर कर रही है। साथ ही समीकरणों व पुराने रणनीतिकारों पर भी चर्चा कर रही है। इस चुनाव में जहां भाजपा वर्तमान एमएलए और मंत्रियों के टिकट पर भरोसा जताकर जीत तय मानकर चल रही है वहीं मुजफ्फरनगर के इतिहास में कांग्रेस की सरकार में मंत्रियों के सामने नए चेहरों की तलाश का भी दौर लोगों को याद आता है। 1985 का ऐसा ही चुनाव सदर विधानसभा सीट पर हुआ जिसमें नए चेहरे ने कांग्रेस को विजय दिलाई थी।

By JagranEdited By: Published: Thu, 20 Jan 2022 12:12 AM (IST)Updated: Thu, 20 Jan 2022 12:12 AM (IST)
नए चेहरे के लिए कांग्रेस ने काट दिया था मंत्री विद्याभूषण का टिकट
नए चेहरे के लिए कांग्रेस ने काट दिया था मंत्री विद्याभूषण का टिकट

मुजफ्फरनगर, जेएनएन। प्रदेश में विधानसभा चुनाव की रणभेरी बज चुकी है। ऐसे में जनता बीते विधानसभा चुनावों का जिक्र रुचि लेकर कर रही है। साथ ही समीकरणों व पुराने रणनीतिकारों पर भी चर्चा कर रही है। इस चुनाव में जहां भाजपा वर्तमान एमएलए और मंत्रियों के टिकट पर भरोसा जताकर जीत तय मानकर चल रही है वहीं मुजफ्फरनगर के इतिहास में कांग्रेस की सरकार में मंत्रियों के सामने नए चेहरों की तलाश का भी दौर लोगों को याद आता है। 1985 का ऐसा ही चुनाव सदर विधानसभा सीट पर हुआ, जिसमें नए चेहरे ने कांग्रेस को विजय दिलाई थी।

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मुजफ्फरनगर की सदर विधानसभा सीट जिले के लिए महत्वपूर्ण मानी जाती है। यहां वैश्य उम्मीदवारों पर भरोसा जताकर उन्हें टिकट की दौड़ में भी आगे रखने की कोशिश रहती है। लंबे समय तक कांग्रेसी रहे और वर्तमान में सपा नेता उमादत्त शर्मा बताते हैं कि 1980 के विधानसभा चुनाव में विद्याभूषण सदर सीट से चुनाव जीते थे। वह पांच वर्ष तक कांग्रेस की सरकार में मंत्री पद पर रहे। कांग्रेस ने 1985 के विस चुनाव में नए चेहरे के लिए उनका टिकट काट दिया था। उस समय कांग्रेस की चारुशिला ने भाजपा के रामकुमार को शिकस्त देकर कांग्रेस को जीत दिलाई थी। भाग्य ने दिया था चारुशिला का साथ

कांग्रेस ने मंत्री विद्याभूषण का टिकट काट दिया था। तब स्व. पंडित जवाहर लाल नेहरू के करीबी रहे स्वतंत्रता सेनानी ब्रह्मप्रकाश शर्मा की पुत्रवधू सुभद्रा रंजन को सदर विधानसभा सीट से चुनाव लड़ाने की रणनीति बनी, लेकिन वह समय पर सिबल (चुनाव निशान) लेने नहीं पहुंच सकीं। इसके बाद एकदम नया चेहरा चारुशिला सामने आई, जो वैश्य समाज से ताल्लुक रखती थीं। कांग्रेस ने उन्हें 1985 में चुनाव लड़ाया और कांग्रेस को फिर से सदर सीट पर विजय मिली।


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