कलम से बयां किया नारी का दर्द, दिखा रहीं आइना
किताबों से दोस्ती हुई तो हाथों ने कलम थाम ली लेकिन कलम में स्याही की जगह दर्द भरा है। एक-एक शब्द नारी की पीड़ा के इर्द-गिर्द घूमता है। अपने आलेख से डा. ज्योति समाज में नारी कल्याण की चेतना जगा रही हैं। वह अब तक अपने 150 से अधिक लेख नारी बाल समस्या व समाधान पर लिख चुकी हैं। कहती हैं कि समाज के जागरूक हुए बिना समाधान नहीं निकाला जा सकता है। इसके लिए सामूहिक सहभागिता आवश्यक है।
मुजफ्फरनगर, जेएनएन। किताबों से दोस्ती हुई तो हाथों ने कलम थाम ली, लेकिन कलम में स्याही की जगह दर्द भरा है। एक-एक शब्द नारी की पीड़ा के इर्द-गिर्द घूमता है। अपने आलेख से डा. ज्योति समाज में नारी कल्याण की चेतना जगा रही हैं। वह अब तक अपने 150 से अधिक लेख नारी, बाल समस्या व समाधान पर लिख चुकी हैं। कहती हैं कि समाज के जागरूक हुए बिना समाधान नहीं निकाला जा सकता है। इसके लिए सामूहिक सहभागिता आवश्यक है। पति की लाइब्रेरी से प्रेरित होकर बनीं लेखिका
खतौली कस्बे की रहने वाली डा. ज्योति जैन ने अपने पति डा. कपूरचंद जैन की समृद्ध लाइब्रेरी में किताबों का अध्ययन किया। अपना चौका-चूल्हा का कार्य निपटाकर वह किताबों, किस्सों को पढ़ने में मशगूल रहती थीं। इसके बाद मन में लेखिका बनने का जुनून पैदा हुआ, जिसके चलते डा. ज्योति जैन ने लेखन विधि को शौक बना लिया। वह अब तक 150 से अधिक आलेख, लेख और कविता आदि लिख चुकी हैं, जो विभिन्न पत्रिकाओं में प्रकाशित हुए हैं। वह बताती हैं कि उनके लेख में केंद्र बिदु बाल, नारी समाज की समस्याएं हैं। इनमें नारी की वर्तमान समाज में दशा-दिशा को बयां किया है। नारी समाज का उत्थान करने के लिए सामूहिक रूप से भागीदारी निभानी होगी। इसी तरह से बाल कल्याण में शिक्षा का सबसे मुख्य स्थान है। कानूनी आदेशों पर किया है शोध
डा. ज्योति जैन बताती हैं कि वह कोर्ट के दिए गए आदेशों पर शोध कर चुकी हैं, जिनमें महिला समाज समेत अन्य पहलूुओं पर शोध शामिल है। पति की मृत्यु के बाद कठिन संघर्ष किया, लेकिन अपने लेखन के शौक को कम नहीं होने दिया। उनके लेखों के कारण उन्हें आचार्य विमल सागर, महाकवि रईघू आदि पुरस्कार मिल चुके हैं।