तप मोक्ष का सबसे बड़ा साधन : प्रणम्य सागर
दशलक्षण महापर्व के सातवें दिन श्रद्धालुओं ने भक्तिभाव से उत्तम तप धर्म को अंगीकार किया। जैन मिलन विहार में ऑनलाइन प्रवचन करते हुए मुनि श्री प्रणम्य सागर महाराज ने कहा कि तप से ही कर्मों की निर्जरा व आत्मा की उन्नति होती है।
मुजफ्फरनगर, जेएनएन। दशलक्षण महापर्व के सातवें दिन श्रद्धालुओं ने भक्तिभाव से 'उत्तम तप धर्म' को अंगीकार किया। जैन मिलन विहार में ऑनलाइन प्रवचन करते हुए मुनि श्री प्रणम्य सागर महाराज ने कहा कि तप से ही कर्मों की निर्जरा व आत्मा की उन्नति होती है।
उत्तम तप धर्म के मर्म को समझाते हुए मुनिश्री प्रणम्य सागर महाराज ने कहा कि तप केवल बाहरी ही नहीं अंतरंग भी होता है। हमें उपवास के साथ अंतरंग तप का भी पालन करना चाहिए। तप कर्मों की निर्जला होती है। तप मोक्ष का सबसे बड़ा साधन है। ज्ञान, तप और संयम से मोक्ष की प्राप्ति होती है। तप को अग्नि की तरह कहा गया है। अग्नि में किसी भी पदार्थ की मौलिकता नष्ट नहीं होती। संसार में कोई भी वस्तु तप के माध्यम से ही श्रेष्ठ होती है। उन्होंने छह प्रकार के बाह्य और छह प्रकार के अंतरंग तप के बारे में विस्तार से बताया।
श्री दिगम्बर जैन अतिशय क्षेत्र वहलना की पावन धरा पर मंदिर कमेटी के अध्यक्ष राजेश जैन व महामंत्री राजकुमार जैन ने कहा कि आत्म शुद्धि के लिए इच्छाओं का रोकना तप है। बहिरंग व अन्तरंग दोनों ही तप आत्म शुद्धि के अमोध साधन हैं। हर व्यक्ति अपनी साधना के अनुसार तप कर सकता है। क्रोध न करना भी एक तप है। जिस प्रकार दूध को गर्म करने के लिये पतीली को तपाना जरूरी है, तेल को तपाने के लिये कढाई का तपाना जरूरी है उसी प्रकार धर्म प्राप्त कर कल्याण करने के लिए शरीर को तपाना जरूरी है। बाह्य तप के बिना अंतरंग तप नहीं हो सकता। जीव को उन्नति की ओर ले जाने के लिए तप ही एक सरल व सुगम माध्यम है। सभी महापुरुष तप अपनाकर ही हुए हैं। तप को संयम का एक अंग माना गया है, जो संयम की आराधना करते हैं, उनको तप की आराधना हो जाती है। दशलक्षण महापर्व में नित्य नियम अभिषेक, शान्तिधारा एवं विधान पूजन करने वालों में सुबोध जैन, मनीष जैन, विजय जैन, अभिषेक जैन, आदित्य जैन, विपलव जैन, चन्द्र कुमार जैन, अमित जैन, दिनेश जैन आदि शामिल रहे।