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स्वास्थ्य विभाग का बेहतर सुविधाओं का दावा लेकिन डायलिसिस कक्ष में पूरे साल लटका रहा ताला

तमाम दावों के बाद भी संयुक्त चिकित्सालय में बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं की दरकार बनी रहीं। मुरादाबाद (मेहंदी अशरफी)। बजट को पूरा करने के लिए स्वास्थ्य विभाग ने आनन-फानन में योजना

By JagranEdited By: Published: Sat, 22 Dec 2018 07:11 AM (IST)Updated: Sat, 22 Dec 2018 07:11 AM (IST)
स्वास्थ्य विभाग का बेहतर सुविधाओं का दावा लेकिन डायलिसिस कक्ष में पूरे साल लटका रहा ताला
स्वास्थ्य विभाग का बेहतर सुविधाओं का दावा लेकिन डायलिसिस कक्ष में पूरे साल लटका रहा ताला

मुरादाबाद (मेहंदी अशरफी)। बजट को पूरा करने के लिए स्वास्थ्य विभाग ने आनन-फानन में योजनाओं का शुभारंभ तो करा दिया, लेकिन तमाम दावों के बाद भी संयुक्त चिकित्सालय में बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं की दरकार बनी रहीं। अस्पताल में एमआरआइ यूनिट शुरू नहीं हो सकी। वहीं डायलिसिस कक्ष में ताला ही लटका रहा। वहीं 300 बेड का अस्पताल भी वर्ष 2018 के लिए सपना ही बना रहा। मरीजों को नहीं मिल पाया लाभ जिला अस्पताल में डायलिसिस यूनिट बनकर तैयार है, लेकिन एजेंसी संचालकों के चक्कर में लोगों को उसका लाभ नहीं मिल पाया है। विभागीय अधिकारियों के मुताबिक डायलिसिस यूनिट का कार्य हमारे स्तर पर पूरा हो चुका है। मरीजों को सरकारी दर पर एमआरआइ की सुविधा उपलब्ध कराने के लिए काम तो शुरू हो गया है। ओपीडी के सामने एमआरआइ यूनिट की बिल्डिंग तैयार तो हो गई है, लेकिन अभी टेक्निकल कार्य शुरू नहीं हो पाया है। बर्न प्लास्टिक यूनिट बर्न प्लास्टिक यूनिट के लिए अभी काफी काम बाकी है। दो साल से बिल्डिंग बजट के इंतजार में अधूरी थी। पैसा आने के बाद प्लास्टर, खिड़की, दरवाजे और रंग-रोगन का काम पूरा हो चुका है। विभागीय अधिकारी उम्मीद जता रहे हैं कि जल्द ही इसका काम पूरा हो जाएगा। चिकित्सक और उपलब्ध हो जाए तो व्यवस्था ठीक हो जाएगी। सीटी स्कैन मुंबई से स्वीकृत नहीं जिला अस्पताल में सीटी स्कैन यूनिट शुरू करने के लिए रेडियो फ्रीक्वेंसी का प्रमाण पत्र नहीं मिल पाया है। इसके लिए मुंबई मुख्यालय से इजाजत लेनी पड़ती है। अस्पताल में डबल सीटी स्कैन यूनिट तैयार तो हो चुकी है, लेकिन पत्र के बिना उसे शुरू नहीं किया जा सकता है। ट्रॉमा सेंटर के लिए चिकित्सकों का अभाव जिला अस्पताल में गंभीर मरीजों के इलाज के लिए ट्रॉमा सेंटर तो तैयार हो गया है। व्यवस्थाएं भी ठीक हैं, लेकिन उसमें चिकित्सक नहीं हैं। ट्रॉमा सेंटर के लिए न्यूरोलॉजिस्ट, न्यूरोसर्जन, हृदय रोग विशेषज्ञ चिकित्सकों की आवश्यकता है, लेकिन दो साल बीतने के बाद भी चिकित्सक उपलब्ध नहीं हो पाए हैं। लक्ष्य से आधे हुए प्रसव स्वास्थ्य मुख्यालय ने संस्थागत प्रसव पर जोर दिया है, लेकिन अधिकारी सिर्फ आधे की संस्थागत प्रसव करा पाए हैं। संस्थागत प्रसव का लक्ष्य 24, 840 था, लेकिन 12, 564 संस्थागत हुए। इससे आप अंदाजा लगा सकते हैं कि विभागीय कर्मचारी संस्थागत प्रसव को कितना गंभीर हैं। सिर्फ 13 लोगों की हुई नसबंदी स्वास्थ्य विभाग नसबंदी कराने में सबसे फिसड्डी रहा। पुरुष नसबंदी का लक्ष्य 1,415 था, लेकिन 13 की ही नसबंदी हो पाई। महिला नसबंदी का लक्ष्य, 12, 740 लेकिन महिला नसबंदी 911 ही हुई। वहीं कंडोम वितरण का लक्ष्य 23,140 होना था, लेकिन 12, 650 ही वितरित हो पाए। उधार के मोतियाबिंद आपरेशन पर थपथपाई पीठ सरकारी अस्पतालों में मोतियाबिंद के आपरेशन का लक्ष्य तो पूरा नहीं कर पाए, लेकिन निजी डॉक्टरों की मेहनत के आकड़ों की रिपोर्ट मुख्यालय भेजकर खुद की पीठ थपथपा ली। हकीकत में हालात बहुत खराब हैं। सरकारी अस्पताल में सिर्फ 139 मोतियाबिंद के आपरेशन हुए जबकि निजी डॉक्टरों ने तकरीबन सात हजार आपरेशन कर दिए। वहीं स्वैच्छिक संस्थाओं ने भी ढाई हजार से ज्यादा आपरेशन किए हैं। स्वास्थ्य अधिकारियों ने रिपोर्ट मुख्यालय भेजकर खानापूर्ति तो कर ली, लेकिन अब भी टारगेट के नाम पर मरीजों को रेफर किया जा रहा है। ये हुए मोतियाबिंद के आपरेशन जिले में आपरेशन का लक्ष्य, 24, 369 शासन को भेजी रिपोर्ट, 10, 901, सरकारी अस्पताल में आपरेशन 139, निजी डॉक्टरों द्वारा किए आपरेशन 6, 979, स्वैच्छिक संस्थान में आपरेशन 2,532

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