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हुनर के बूते छोटी सी उम्र में परिवार संभाला, बनाई पहचान

मुरादाबाद छोटी उम्र में पिता का साया सिर से उठ गया। परिवार की जिम्मेदारी आ गई। ऐसे में उसने हिम्मत नहीं हारी। सिलाई कढ़ाई और पैचवर्क के हुनर से अपने दिन सुधारे और अब अपनी जैसी दूसरी महिलाओं को भी यह हुनर सिखा रही हैं।

By JagranEdited By: Published: Fri, 22 Feb 2019 12:37 PM (IST)Updated: Fri, 22 Feb 2019 12:37 PM (IST)
हुनर के बूते छोटी सी उम्र में परिवार संभाला, बनाई पहचान
हुनर के बूते छोटी सी उम्र में परिवार संभाला, बनाई पहचान

मुरादाबाद : छोटी उम्र में पिता का साया सिर से उठ गया। परिवार की जिम्मेदारी आ गई। ऐसे में उसने हिम्मत नहीं हारी। सिलाई कढ़ाई और पैचवर्क के हुनर से अपने दिन सुधारे और अब अपनी जैसी दूसरी महिलाओं को भी यह हुनर सिखाना शुरू कर दिया।

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संघर्ष से सफलता की यह कहानी सिद्धार्थ नगर कालोनी ज्वालानगर निवासी सरला की है। उनके पिता हीरा लाल रेलवे में केबिनमैन थे। पिता के रहते तक सब कुछ ठीक था। संघर्ष तब शुरू हुआ, जब वर्ष 1990 में पिता की मृत्यु हो गई। मृतक आश्रित में बड़े भाई को नौकरी मिल गई। भाई पत्नी और बच्चों के साथ अलग रहने लगे। घर में मां मीरा देवी और छोटे भाई-बहन रह गए। सरला तब 15 साल की थी। अब परिवार की जिम्मेदारी उनके कंधों पर आ गई। उन्होंने सिलाई कढ़ाई सीख रखी थी तो उसी को रोजी-रोटी का साधन बनाने का विचार आया। शुरुआत में बहुत दिक्कत हुई। दुकानों और शोरूम पर जाकर कपड़े घर लाती थीं। सिलाई कढ़ाई और पैचवर्क से उन कपड़ों पर सुंदर डिजाइन बनाकर वापस दे आतीं। इससे आमदनी का जरिया तो शुरू हो गया, लेकिन रात-दिन मेहनत के बाद जितना मिलता, वह काफी नहीं था।

उन्होंने तय किया कि अपना माल तैयार करके खुद बेचेंगी। इसके लिए किसी प्लेटफार्म की जरूरत थी। तब किसी परिचित ने उन्हें हस्तशिल्प के बारे में जानकारी दी। इसके बाद जन कल्याण समिति के नाम से संस्था बनाई और जिला उद्योग केंद्र में हस्तशिल्पी के तौर पर पंजीकरण कराया। अपना माल तैयार कर दूसरे शहरों में लगने वाली प्रदर्शनी में उसे बेचने जाने लगीं। यहां से उनके हालात बदलने शुरू हो गए। हस्तशिल्पी के तौर पर पहचान बनने लगी। कपड़ों पर की गई सुंदर कारीगरी को पसंद किया जाने लगा।

कई शहरों में लगाई प्रदर्शनी में मिले ऑर्डर

दिल्ली, लखनऊ, राजस्थान, आगरा, अलीगढ़ आदि शहरों में प्रदर्शनी में उनके काम की तारीफ हुई और कपड़े के बड़े कारोबारी उन्हें आर्डर देने लगे। जिले में होने वाले प्रशिक्षण कार्यक्रम में उन्हें बुलाया जाने लगा। अपने हालात सुधरे तो दूसरी महिलाओं को भी यह हुनर सिखाने लगीं। वर्तमान में उनका अपना कारखाना है, जहां वह कई महिलाओं को यह हुनर सिखा रही हैं।

विशिष्ट हस्तशिल्प प्रादेशिक पुरस्कार

सरला बताती हैं प्रदेश सरकार ने वर्ष 2013-14 में उन्हें विशिष्ट हस्तशिल्प प्रादेशिक पुरस्कार दिया। वह बताती हैं कि दूसरे शहरों के कई बड़े कारोबारी उनके बनाए माल को विदेशों में बेच रहे हैं। अब उनका लक्ष्य एक्सपोर्ट का लाइसेंस लेकर खुद अपना माल विदेशों में निर्यात करने का है। कुम्भ नगरी में भी प्रदर्शनी लगाने का मिला मौका सरला को प्रयागराज में चल रहे कुम्भ मेले में भी प्रदर्शनी लगाने का मौका मिला है। उन्होंने बताया कि प्रदर्शनी के लिए हमारी संस्था को कुम्भ में जगह आवंटित हुई। वहां हमारे द्वारा बनाए कपड़ों की प्रदर्शनी लगाई गई है। यह हमारी संस्था के लिए गर्व की बात है।


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