बच्चों पर न लादें अपनी उम्मीदों का पहाड़
संजय मिश्र, मुरादाबाद परीक्षा कोई भी हो, थोड़ी घबराहट तो होती ही है। तैयारियों के बावजूद परी
संजय मिश्र, मुरादाबाद
परीक्षा कोई भी हो, थोड़ी घबराहट तो होती ही है। तैयारियों के बावजूद परीक्षार्थी अक्सर दबाव में रहते हैं। वे यह सोचकर परेशान रहते हैं कि पता नहीं सवाल कैसे आएंगे। वे उनका उत्तर लिख भी पाएंगे या नहीं। दरअसल, परीक्षाओं को लेकर डर की यह कसौटी हमेशा से रही है। एक दौर ऐसा भी था जब किसी परीक्षा को पास कर लेना ही छात्र की कामयाबी माना जाता था, लेकिन बदलते जमाने में यह धारणा टूट चुकी है। पास होना ही नहीं, सर्वश्रेष्ठ होना लक्ष्य मान लिया गया है। माता-पिता और अन्य परिजन भी छात्र के सर्वश्रेष्ठ अंक लाने की उम्मीद में उलझे रहते हैं। यह उलझाव ही छात्र की प्रगति का रोड़ा है। इस दौर में अभिभावक की खुशी इस बात में कम ही दिखती है कि उसका पाल्य किसी परीक्षा को अच्छे नंबरों से पास करे, बल्कि लक्ष्य यह हो गया है कि पड़ोसी या आसपास के बच्चों से उसका पाल्य कम नंबर कदापि न प्राप्त करे। यह अंधी प्रतिस्पर्धा भले ही बच्चों को सपने दिखाती हो, लेकिन यह उनका उचित मार्गदर्शन नहीं कर पाती। सारी समस्या की जड़ यही है। हमें इस अंधी प्रतिस्पर्धा से बच्चों को निजात दिलाने की जरूरत है।
दो-तीन दशक पहले की शिक्षा व्यवस्था की बात करें तो उसमें मनुष्य बनाने की चिंता अधिक थी। छात्र के मनोविज्ञान के अनुरूप पाठ्यक्रमों का निर्धारण होता था। आज भले ही यह दावा किया जा रहा हो कि छात्र के मनोविज्ञान को समझते हुए ही पाठ्यक्रम तैयार किए जाते हैं, लेकिन यह पूरी तरह सच नहीं है। निजी शैक्षणिक संस्थाओं की गलाकाट प्रतिस्पर्धा के कारण प्राथमिक कक्षाओं से ही बच्चों पर बस्ते का बोझ लाद दिया जा रहा है। ऊपर की कक्षाओं में पहुंचते-पहुंचते वह बेहिसाब बोझ ढोने का आदती बन जाता है। समय-समय पर इस बोझ के खिलाफ आवाज भी उठी, लेकिन कोई बड़ा बदलाव नहीं हो सका। शिक्षा बोर्ड कोई हो, उसे ऐसी व्यवस्था करनी चाहिए जिससे छात्रों पर पाठ्यक्रम का बोझ कम किया जा सके।
यह अंधी प्रतिपर्धा ही है कि परीक्षाओं के समय छात्र के साथ उसका पूरा परिवार तनाव में आ जाता है। माता-पिता से लेकर परिवार के अन्य लोगों पर भी परीक्षा का दबाव हावी रहता है। परिवार में प्रोत्साहन के बजाय अधिक अंक लाने के लिए उम्मीदों का दबाव बनाया जाने लगता है। इसलिए कई बच्चे परीक्षा से पूर्व ही तनाव-अवसाद से घिर जाते हैं। उनमें आत्मविश्वास की कमी आने लगती है। हर अभिभावक के लिए यह समझना आवश्यक है कि सभी बच्चे एक समान नहीं होते। उनकी क्षमता व बौद्धिक स्तर भी एक जैसा नहीं होता। पढ़ाई में सबकी रुचि समान नहीं होती। प्रेरणा व प्रेरक तत्व भी समान नहीं होते। यदि सब कुछ एक समान नहीं होता तो फिर हम हर छात्र से एक जैसी अपेक्षा कैसे कर सकते हैं। शिक्षा को लेकर एक हद तक तो तनाव या चिंता को जायज कहा जा सकता है लेकिन, इसका हद से अधिक होना न सिर्फ हानिकारक है, बल्कि छात्र के स्वाभाविक विकास में बाधक है। हमें परीक्षा के इस तनाव को खत्म करने का प्रयास परिवार से ही करना चाहिए। माता-पिता को चाहिए कि वे अपने पाल्य की जरूरतें पूरी करें, परीक्षा की तैयारी में उसे आत्मबल दें, उसका सहयोग करें और अंकों का दबाव कदापि न बनाएं। जब छात्र पाठ्यक्रम की पढ़ाई मनोयोग से करेगा तो जाहिर है वह उससे जुडे़ सवालों के उत्तर ठीक ढंग से लिख सकेगा। इसी से वह अच्छे अंक भी अर्जित कर सकेगा। हमें अपने बच्चे की तुलना दूसरे से करने से भी खुद को रोकना होगा। जरूरी नहीं कि कक्षा में पढ़ने वाले हर छात्र की रुचि एक ही तरह की हो। किसी की रुचि स्वाभाविक रूप से गणित, विज्ञान में होती है तो किसी की साहित्य में। हमें अपने बच्चे के अंदर छुपी इसी प्रतिभा को पहचानने और उसे निखारने की जरूरत है। यदि छात्र की रुचि साहित्य में है तो उसे डाक्टर या इंजीनियर बनाने के लिए विज्ञान, गणित पढ़ने का दबाव क्यों डालें। हमें सोचना चाहिए कि माता-पिता के दबाव में यदि छात्र ने साहित्य के बजाय विज्ञान-गणित की पढ़ाई शुरू कर दी तो वह अपना सर्वश्रेष्ठ शायद न दे पाए। इस तरह न तो वह साहित्यकार बन सकता है और न ही डाक्टर व इंजीनियर। इसलिए जरूरी है कि माता-पिता अपने बच्चों की प्रतिभा को पहचाने और उसे आगे बढ़ाने में अपना योगदान दें। सपने देखना अच्छी बात है लेकिन, बंद आखों से सपने देखना ठीक नहीं। इससे कल्पना तो की जा सकती है लेकिन, कुछ हासिल नहीं किया जा सकता। इसीलिए पूर्व राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने कहा था कि सपने वे नहीं जो सोने में आते हैं, बल्कि सपने वे हैं जो सोने नहीं देते। हमें बच्चों के स्वाभाविक विकास में योगदान देने के लिए तैयार रहना चाहिए। हमें ऐसे लोगों से प्रेरणा लेनी चाहिए जिन्होंने असफलता में भी अपने बच्चों का खुलकर साथ दिया, उनका हौसला बढ़ाकर सफलता का मार्ग प्रशस्त किया।
--------
इनकी सफलता के पीछे परिवार की शक्ति
हमारे क्षेत्र के जनपद रामपुर के जिलाधिकारी महेंद्र बहादुर सिंह की सफलता उनके पिता और परिवार के इसी योगदान की दास्तान है। बकौल सिंह, वह अपने गाव के स्कूल में पढ़ते थे। उनके पिताजी फतेहपुर में डीडीसी के यहा पेशकार थे। एक दिन प्रधानाध्यापक के कहने पर पिता उन्हें फतेहपुर ले गए और सरस्वती शिशु मंदिर में चौथी कक्षा में दाखिला दिला दिया। इस स्कूल में अंग्रेजी पढ़ाई जाती थी, जबकि गाव के स्कूल में नहीं होती थी। अंग्रेजी के शिक्षक ने जब उनसे काऊ का अर्थ पूछा तो वह नहीं बता सके। अर्धवार्षिक परीक्षा में छह में से पाच विषय में फेल हो गए। इससे वह काफी निराश हो गए। घर आकर वह बहुत रोए। ऐसे समय पर उनके पिताजी ने उन्हें न सिर्फ दिलासा दी, बल्कि असफलता से सीख लेने की प्रेरणा दी। उनके बढ़ाए आत्मबल का नतीजा यह रहा कि न सिर्फ आगे की कक्षाओं में उन्हें सफलता मिली बल्कि सिविल सर्विसेज परीक्षा में सफल होकर भारतीय प्रशासनिक सेवा के अधिकारी बने।
---------
इल्मा की सफलता में मां का त्याग
अखिल भारतीय सिविल सेवा परीक्षा में सफल मुरादाबाद के कुंदरकी की इल्मा अफरोज की सफलता भी उनकी मा सुहैला अफरोज के त्याग से भरी है। खुद इल्मा बताती हैं कि उनकी मा ने उन्हें आगे बढ़ाने के लिए अपने सुख की चिंता नहीं की। कभी दबाव नहीं बनाया, बल्कि हमेशा उनके मन की बात पढ़ने की कोशिश की। आज सभी उनकी सफलता पर गर्व कर रहे हैं।
--------
अभिभावक इन बातों का रखें ध्यान
-अपने बच्चों के साथ दोस्त जैसा व्यवहार करें, उनके मन की बात जानने की कोशिश करें
-हर परिस्थिति में बच्चों का आत्मविश्वास बनाए रखें।
-बच्चे की प्रतिभा के अनुसार उसे प्रोत्साहित करें।
-बच्चों का हमेशा मनोबल बढ़ाएं ताकि व नकारात्मकता से दूर रह सके।
-छात्र की महत्वाकाक्षा को समझें और उसे हासिल करने में उसकी मदद करें।
-छात्र के सामने परीक्षा का हौवा कदापि न खड़ा करें। उस पर अधिक से अधिक समय तक केवल पढ़ते ही रहने का दबाव न डालें।
-छात्र के साथ संवाद बना कर रखें, लेकिन हर समय पढ़ाई को लेकर उसके पीछे न पड़ें।
-बच्चे को पढ़ाई के बीच थोड़ा-थोड़ा ब्रेक लेने और मनोरंजन से जुड़ने को कहें।
-हर समय बच्चे की तुलना पड़ोसी या रिश्तेदार के बच्चों से न करें।
-यदि लगता है कि आप के बच्चे को किसी काउंसलर की मदद की जरुरत है तो इसमें विलंब न करें।
-छात्र को खाने और सोने में कोताही न करने दें। उसके लिए सात से आठ घटे की नींद जरूरी है।
-परीक्षा का परिणाम आ चुका है इसलिए अपने बच्चों को पूरा समय दें। यदि उसे कम अंक मिले हो तो भी उसका हौसला बढ़ाएं।
- आपके पाल्य में खेलने, टीवी देखने, सोशल मीडिया पर जाने में रुचि न रह गई हो तो उसकी चिंता जरूर करें। खासकर परिणाम घोषित होने के बाद।
-----------
जागरण के अभियान का उद्देश्य
अपने बच्चों को हर माता पिता अच्छा करता हुआ देखना चाहते हैं , लेकिन इस अपेक्षा से जो एक अनकहा सा दबाव बनता है उससे वो अनजान रहते हैं। बच्चों पर बहुत अच्छे नंबर लाने का दबाव रहता है। इसका उन पर बुरा असर पड़ता है। इसी को देखते हुए मार्क्स से ज्यादा प्यारे हैं वो जागरण अभियान शुरू किया गया। जिसमें माता-पिता और अभिभावकों को यह समझाने का प्रयास किया गया कि मार्क्स ज्यादा बच्चे उनके लिए महत्वपूर्ण हैं।