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आईए जानते हैं चुनावी माहौल कैसे बच्चों के लिए होता था मनोरंजन का साधन, किस तरह से होता था प्रचार

UP Chunav 2022 उन दिनों चुनावी नारे लगाते हुए बच्चे मनोरंजन करते हुए गलियों में घूमते थे। चुनावी झंडियां लेकर खेल खेलते थे। यह बात है एक-दो दशक के पहले के चुनाव की। बच्चों को जीत हार से मतलब नहीं होता था।

By Samanvay PandeyEdited By: Published: Sun, 23 Jan 2022 01:29 PM (IST)Updated: Sun, 23 Jan 2022 01:29 PM (IST)
आईए जानते हैं चुनावी माहौल कैसे बच्चों के लिए होता था मनोरंजन का साधन, किस तरह से होता था प्रचार
UP Election 2022 : चुनावी नारे लगाने से बच्चों को जीत-हार से मतलब नहीं बल्कि करते थे मनोरंजन

मुरादाबाद, जेएनएन। UP Vidhan Sabha Election 2022 : जीतेगा भई जीतेगा...वाला जीतेगा। यह चुनावी शोर पार्टी के समर्थकों की ओर से तो गूंजता ही था। लेकिन, यह चुनावी नारे लगाते हुए उन दिनों बच्चे मनोरंजन करते हुए गलियों में घूमते थे। चुनावी झंडियां हाथ में लेकर छुकछुक गाड़ी वाला खेल खेलते थे। यह एक-दो दशक से पहले तक की बात है कि बच्चों को जीत हार से मतलब नहीं होता था, उन्हें यह चुनावी नारे खेलने का एक नया तरीका दे जाते थे। राजनीतिक दल अपने-अपने चुनाव चिह्न वाली टोपी, बिल्ले, बैज, झंडी घर-घर बांटते थे। यह चुनाव सामग्री बच्चों के खिलौने होते थे।

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इनसे बच्चे मिलकर खेलते थे। टोपी लगाकर बच्चा नेता बनता था तो खूब हंसी ठिठोली करते थे। गलियों में बच्चों का यह शोर पार्टियों के चुनाव चिह्न का नाम लेकर होता तो एक तरह से बच्चों का यह मनोरंजन प्रत्याशी का चुनाव प्रचार भी करता था। घरों के दरवाजे पर लगी झंडियां तक भी बच्चे उतारकर उनसे खेलते थे। जनसंपर्क करने आए प्रत्यािशियों के साथ जितने बढ़े होते थे, उनसे अधिक पीछे से बच्चे भी हो जाते थे। मुहल्लों में चुनावी शोर गुल और बच्चों की मस्ती का वह दौर अब नहीं रहा। अब तो प्रत्याशियों की चुनाव सामग्री तो दूर स्वयं प्रत्याशी भी नहीं जनसंपर्क करने बहुत कम निकलते हैं। तकनीकी के इस युग में स्मार्ट फोन और चुनाव आयोग की सख्ती से बच्चों का मनोरंजन सिमट गया।

आचार संहिता व स्मार्ट फोन ने चुनावी मनोरंजन छीनाः आज की पीढ़ी स्मार्ट फोन के युग की है। आचार संहिता की कड़ी बंदिशों में जब से यह नारे गूंजना बंद हुए तब से बच्चों का मनोरंजन बने, यह चुनावी नारे भी उनकी जुबां से नहीं सुनाई देते। स्मार्ट फोन के इस युग में बच्चे मोबाइल पर खेलते हैं, लेकिन, पहले जैसा भौतिक आनंद कहां। प्रत्याशियों का चुनाव प्रचार अब आइटी कंपनियों के हाथों में है। वह आकर्षक वीडियो बनाकर फेसबुक, वाट्सएप ग्रुप, इंस्टाग्राम, यू ट्यूब समेत अन्य तरीकों से प्रचार कर रहे हैं।


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